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विश्व मंचों पर पाक को फटकार

यह इसी बात का प्रमाण है कि राष्ट्रसंघ स्वयं स्वीकार करता है कि कश्मीर किसी भी रूप में अंतर्राष्ट्रीय विषय नहीं है और यह भारत-पाक के बीच का आपसी मामला है।

पाकिस्तान जिस तरह कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने की कोशिश कर रहा है उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि वह भारत के साथ मधुर सम्बन्ध बनाना नहीं चाहता है और भारतीय उपमहाद्वीप को आतंकवाद के साये में ढके रहना चाहता है। दो दिन पहले ही राष्ट्रसंघ में इसकी स्थायी प्रतिनिधि मलीहा लोधी ने इस विश्व संस्था के महासचिव श्री अन्तानियों गुतारेस से मुलाकात करके जो रोना रोया उसके जबाव में उन्होंने साफ कह दिया कि वह दोनों देशों के बीच तनाव के बढ़ने के विरुद्ध हैं और चाहते हैं कि भारत व पाक आपसी बातचीत से किसी भी समस्या का हल निकालें अर्थात पाकिस्तान जो उनसे मध्यस्थता या दखलन्दाजी की उम्मीद कर रहा था उसे श्री गुतारेस ने सिरे से खारिज कर दिया। 
यह इसी बात का प्रमाण है कि राष्ट्रसंघ स्वयं स्वीकार करता है कि कश्मीर किसी भी रूप में अंतर्राष्ट्रीय विषय नहीं है और यह भारत-पाक के बीच का आपसी मामला है। पाकिस्तान इस नुक्ते से 1972 में हुए शिमला समझौते से पूरी तरह बन्धा हुआ है जिसमें कश्मीर समेत सभी विवाद केवल बातचीत द्वारा हल किये जाने का अहद किया गया था। श्री गुतारेस ने मलीहा लोधी को यह भी स्पष्ट कर दिया कि कुछ दिनों पहले ही भारत के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी से उनकी भेंट फ्रांस में हुए जी-7 देशों के सम्मेलन के अवसर पर हुई थी और उसमें श्री मोदी ने स्पष्ट कहा था कि जम्मू-कश्मीर राज्य में धारा 370 समाप्त करने से क्षेत्रीय शान्ति का कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि यह पूरी तरह भारत का अन्दरूनी मामला है। 
जिसका अंतर्राष्ट्रीय  व्यवस्था से किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं है मगर पाकिस्तान की समझ में यह बात नहीं आ रही है और वह दौड़-धूप करने में लगा हुआ है लेकिन इसके साथ ही पाकिस्तान दुनिया को यह आश्वासन नहीं दे पा रहा है कि वह आतंकवाद  को अपनी जमीन से मिटाने के सभी उपाय करेगा उल्टे हाफिज सईद जैसे अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी को वह खुली छूट दे रहा है। इसका एक ही मतलब निकलता है कि पाकिस्तान की फौज हर हालत में दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ाना चाहती है क्योंकि आतंकवाद को जिन्दा रख कर ही उसकी रोजी-रोटी चल रही है जिससे  वह पाकिस्तान के चुने हुए हुक्मरानों तक को भी अपने डंडे के नीचे रख सकती है। 
पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान की विदेश व रक्षा नीति की कमान इसकी फौज का जनरल ही पकड़े रहता है जिसमें कथित चुने हुए प्रधानमन्त्री की दखलन्दाजी नामुमकिन है। ऐसी हालत पाकिस्तान में 1977 से तब से चल रही है जब वहां मरहूम जुल्फिकार अली भुट्टो को अपदस्थ करके जनरल जिया उल हक ने हुकूमत को कब्जाया था। इसके बाद भुट्टो को फांसी दे दी गई और बाद में जनरल जिया की एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के बाद जिस प्रकार का जम्हूरी निजाम पाकिस्तान में 1999 तक चला उसमें फौज की शह पर ही इस मुल्क के हुक्मरानों ने कश्मीर  मुद्दे को सुलगाये रखने के लिए आतंकवाद को जमकर फलने-फूलने की इजाजत दी और अपने कब्जे में किये गये कश्मीर को दहशतगर्दों की पनाहगाह बना डाला। 
2000 से 2007 के बीच फिर से पाकिस्तान फौजी बूटों के तले कुचला गया जिसने वहां के लोकप्रिय सियासतदानों को बेनंग-ओ-नाम करने की हर तजवीज भिड़ाई और भुट्टो की बेटी बेनजीर भुट्टो तक को आतंकवादियों ने अपना शिकार बना डाला। 2007 के बाद इस मुल्क में लोकतन्त्र को बहाल किये जाने की घोषणा के बाद 2008 नवम्बर में मुम्बई में पाकिस्तान के कराची से समुद्री मार्ग से आये आतंकवादियों ने जो कहर बरपाया उससे भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के कान सुन्न हो गये और यह देश ‘दहशतगर्द मुल्क’ होने के मुहाने पर पहुंच गया। 
यह कार्य उस समय के विदेश मन्त्री पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने बहुत सफलतापूर्वक किया था परन्तु भारत के इन प्रयासों का असर पाकिस्तान की अवाम पर पड़ा था जिसका सबूत 2012 में हुए इस मुल्क के राष्ट्रीय एसेम्बली के चुनाव थे। इन चुनावों का प्रमुख मुद्दा था कि पाकिस्तान को भारत के साथ दोस्ताना ताल्लुकात बनाने चाहिए। दरअसल दोनों देशों के इतिहास में ये चुनाव एक खूबसूरत पड़ाव भी कहे जा सकते हैं जिसमें पाकिस्तान में ही भारत के साथ अपना भाग्य बांधने का माहौल बन गया था परन्तु इस मुल्क की फौज के लिए यह खतरे की घंटी थी। 
अतः 2012 में चुनाव जीत कर गद्दीनशीं हुए मियां नवाज शरीफ को इसने बड़े करीने से बेनंग-ओ-नाम  करने की साजिश को अंजाम देकर उन्हें जेल की सींखचों में भिजवा दिया और अपने हुक्मबरदार इमरान खान की पार्टी तहरीके इंसाफ को पर्दे के पीछे से मदद देकर भारत के खिलाफ जहर पैदा करने में कश्मीर में दहशतगर्दी फैला कर वह काम किया जिससे दोनों मुल्क दोस्ती की बात ही न कर सकें। 
नतीजा यह हुआ कि 2017 के पाकिस्तानी राष्ट्रीय एसेम्बली चुनावों में मुद्दा भारत के खिलाफ नफरत बना और इमरान की पार्टी ने नारा दिया कि ‘बल्ला घुमाओ-भारत हराओ’ और ‘नवाज शरीफ मोदी का दोस्त’ जबकि श्री मोदी ने 2014 में सत्तारूढ़ होते ही पाकिस्तान के साथ सम्बन्ध सुधारने की दिशा में निर्णायक कदम उठाने शुरू कर दिये थे किन्तु पाकिस्तानी फौज को ये कदम अपने वजूद के लिए ही खतरा लगने लगे। यह पूरा वृत्तान्त लिखने का मकसद यही है कि यदि भारत की मजबूत सरकार ‘अखंड भारत’ के प्रयासों की तरफ आगे बढ़ती है तो उसे पाकिस्तानी अवाम का भी परोक्ष समर्थन किसी न किसी मुकाम पर जरूर मिलेगा। 
खास कर सिन्ध, ब्लूचिस्तान, खैबर फख्तूनवा आदि इलाकों के लोगों का। यह तो ऐतिहासिक सत्य है कि पख्तून बहुल इलाकों को बंटवारे के समय पाकिस्तान को दिये जाने पर सरहदी गांधी ‘खान अब्दुल गफ्फार खां’ ने महात्मा गांधी से अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए कहा था कि ‘बापू आपने हमें किन भेड़ियों के हवाले कर दिया है’ और ब्लूचिस्तान 1956 तक पाकिस्तान का सही मायनों में हिस्सा नहीं था। यह राज्य ‘संयुक्त राज्य ब्लूचिस्तान’ कहलाता था। इसी प्रकार सिन्ध राज्य अभी तक भारत के राष्ट्रगान का हिस्सा है।  
कहने का आशय केवल इतना है कि पाकिस्तान जिस भारतीय कुलभूषण जाधव को जासूस बता कर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के आदेश के विपरीत अपनी फौजी अदालत द्वारा उसे दी गई फांसी की सजा को लागू करने का भय दिखाकर भारत को कश्मीर मुद्दे पर हिलाना-डुलाना चाहता है, उससे वह खुद ही टूट-फूट सकता है। उसे मालूम होना चाहिए कि कश्मीर के लोग मुसलमान बेशक हो सकते हैं मगर वे ‘दरवेशी संस्कृति’ के ध्वजवाहक है और सदियों से भारतीय हैं। पाकिस्तान को बनाये जाने का कड़ा विरोध भी कश्मीरी अवाम ने ही किया था।

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