प. बंगाल में चुनावी हिंसा? - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

प. बंगाल में चुनावी हिंसा?

NULL

प. बंगाल का भारत की राजनीति में अनूठा स्थान इसलिए है कि इस राज्य की राजनीति आम जनता की जमीनी सच्चाई से चलती है और इस तरह चलती है कि इसमें ‘इंसानियत’ का दर्द सर्वोपरि रहता है। यही वजह है कि यहां के लोग जातिवाद और साम्प्रदायिक दुराव को कोई महत्व नहीं देते हैं। हालांकि 1947 में बंगाल के पूर्वी भाग को साम्प्रदायिक आधार पर ही मुहम्मद अली जिन्ना ने पूर्वी पाकिस्तान बना दिया था मगर 1971 के आते-आते ही यह धर्मनिरपेक्ष ‘बांग्लादेश राष्ट्र’ बन गया। इसकी मूल वजह ‘महान बांग्ला संस्कृति’ ही थी जिसमें गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर का लिखा हुआ गीत इस नवोदित राष्ट्र का ‘राष्ट्रीय गान’ बना और आसनसोल में जन्मे ‘जनकवि’ काजी नजरुल इस्लाम इसके ‘राष्ट्रकवि’ बने जिनसे 1972 में बांग्लादेश की सरकार ने अपने यहां आकर बसने का आग्रह किया था। आजकल रमजान का महीना है और ‘नजरुल संगीत’ भारत व बांग्लादेश की सीमाओं को तोड़ते हुए यहां की फिजाओं को महका रहा है।

काजी साहब ने हिन्दू-मुस्लिम के धार्मिक विभेद को अपनी ‘श्याम संगीत’ भजनावली में अल्लाह और मां काली की शान में रचनाएं लिखकर और उन्हें संगीतबद्ध करके बांग्ला संस्कृति का मानवीय स्वरूप दैदीप्यमान कर दिया और ब्रिटिश हुकूमत को खुली चुनौती दी परन्तु विश्व की सबसे बड़ी त्रासदी हुई और बंगाल ‘पाकिस्तान व हिन्दोस्तान’ में बंट गया। मैं यहां नजरुल इस्लाम की जीवनी लिखने नहीं जा रहा हूं बल्कि केवल यह बताना चाहता हूं कि प. बंगाल महान लोकतान्त्रिक देश भारत का ऐसा ‘कोहिनूर’ है जिसकी कीमत नकद रोकड़ा में आंकी नहीं जा सकती।

बेशक बंगाल की जमीन पर ऐसे भी वाकये हुए हैं जब हिन्दू-मुस्लिम एकता तार-तार हुई है मगर ऐसे हादसे अंग्रेजी शासन के दौरान ही हुए हैं जब मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा ने 1937 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुए पहले प्रान्तीय एसेम्बली चुनावों के दौरान एक-दूसरे का गला काटने का प्रचार करते हुए चुनाव परिणाम आने के बाद ‘कृषक मजदूर पार्टी’ के नेता मौलाना फजलुल हक के नेतृत्व में सांझा सरकार बनी जिसमें मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा दोनों शामिल हुए थे और वित्त मन्त्री डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी बनाये गये थे। अतः वोटों की सियासत का सितम महात्मा गांधी के जीवित रहते हुए भी भारत में होता रहा मगर इसके पीछे अंग्रेजों की कुटिल ‘बांटो और राज करो’ नीति ही प्रमुख भूमिका निभाती थी क्योंकि मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा जैसे राजनैतिक दलों को वे भारत पर अपनी हुकूमत कायम रखने के लिए जरूरी मानते थे परन्तु स्वतन्त्र भारत में स्वयं प. बंगाल के लोगों ने ही इस राजनीति को अलविदा कह दिया और यहां की सियासत में इस राज्य की गरीबी के मुद्दों पर ही कम्युनिस्टों और कांग्रेस में खींचातानी होने लगी जो अभी तक किसी न किसी रूप में जारी है परन्तु मौजूदा चुनावों में इसमें भाजपा का नया तेवर शामिल हुआ है कि केन्द्र व राज्य आकर आमने-सामने खड़े हो गये हैं।

राज्य की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता दीदी को बंगाली जनता ने ही कम्युनिस्टों के लम्बे चले 37 वर्ष के शासन के बाद जमीनी बदलाव के लिए सत्ता सौंपी थी। ममता दी भी जमीन पर संघर्ष करने के बाद ही यहां की जनता की नेता बनी हैं और इस तरह बनी हैं कि कभी कम्युनिस्ट शासन के दौरान उन्हंे ‘बालों से पकड़ कर’ राज्य सचिवालय से बाहर फिंकवाया गया था परन्तु भाजपा वहां हिदुत्व के एजेंडे पर चल रही है। चुनाव में हिंसा का माहौल ज्यादा प्रचार पा रहा है जबकि हकीकत यह है कि चुनावी हिंसा इस राज्य में यहां के बागी तेवरों का प्रतिनिधित्व 1952 से ही करती रही है। इसकी वजह यहां के लोगों का राजनैतिक रूप से प्रबुद्ध होना ही नहीं है बल्कि किसी भी विमर्श को थोपे जाने का खुलकर विरोध करना भी है। यह विचार बांग्ला संस्कृति का प्रमुख हिस्सा है जो 1924 में तब उभरा जब काजी नजरुल इस्लाम ने एक हिन्दू युवती प्रमिला देवी से विवाह किया और ‘ब्रह्म समाज’ जैसी समाज सुधारक संस्था ने उसका विरोध किया किन्तु बंगाली जनता ने इसके बाद काजी साहब को ‘जन कवि’ बना डाला। इसका प्रमाण हमें यहां की मिट्टी देती है।

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय ने ‘वन्दे मातरम्’ गीत 1902 में अंग्रेजों द्वारा किये प्रथम ‘बंग-भंग’ के विरोध में सम्पूर्ण बंगाल की सांस्कृतिक, सामाजिक व भौगोलिक एकता को अक्षुण्ण रखने के लिए बहुत पहले ही लिख दिया था और इसमें ‘बंग’ भूमि के सौन्दर्य का वर्णन किया था। अतः ‘वन्दे मातरम्’ यहां के हर-हिन्दू मुसलमान का राष्ट्रीय नारा बन गया। यहां के चुनावी जलसों में ‘वन्दे मातरम्’ जिस उत्साह से हिन्दू बोलते हैं उतने ही आवेश से मुस्लिम भी बोलते हैं परन्तु वन्दे मातरम् का स्थान जाहिर तौर पर कोई और उद्घोष नहीं ले सकता। अतः चुनावी हिंसा का जो स्वरूप हम इस राज्य में देख रहे हैं उसका सीधा सम्बन्ध यहां की जनता पर किसी विमर्श को थोपे जाने से इस तरह हो गया है कि पोलिंग बूथों पर भाजपा के प्रत्याशियों के पहुंचते ही उनका विरोध होने लगता है। यह तब हो रहा है जबकि प्रत्येक पोलिंग बूथ पर केवल केन्द्रीय सुरक्षा बलों का ही पहरा है और चुनाव आयोग बेधड़क तरीके से जिले के जिलाधीशों के तबादले पर तबादले कर रहा है। यहां की राजनीति भारत के किसी भी अन्य राज्य की तरह सरल समीकरणों पर निर्भर कभी भी नहीं रही है, इसे हमें इस तरह समझना चाहिए कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा स्थापित पार्टी फारवर्ड ब्लाक भी यहां हाशिये पर ही रही है। बंगाल का राष्ट्रवाद बंाग्ला संस्कृति से उपजता है, किसी मजहब से नहीं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

5 × four =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।