राम मन्दिर और राम के लोग ! - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

राम मन्दिर और राम के लोग !

NULL

सर्वोच्च न्यायालय में आज देश के उन दो महत्वपूर्ण मामलों में सवाल-जवाब हुए हैं जिनका सम्बन्ध भारतीय लोकतन्त्र की संवैधानिक सत्ता की सदाकत या पवित्रता से जुड़ा हुआ है। अयोध्या का राम जन्मभूमि विवाद का मामला भी संविधान की उस संरचना के घेरे में आता है जिसे ‘कानून का राज’ कहा जाता है जबकि राफेल लड़ाकू विमानों का मामला कानून के राज को चलाने वाली सरकार की अपनी कार्यवाही के इसी पैमाने पर खरा उतरने का मुद्दा है परन्तु दोनों मामलों में एक मूलभूत अंतर भी है।

राम मन्दिर का विवाद देश के करोड़ों हिन्दुओं की अास्था से जुड़ा हुआ है। यह हिन्दू-मुस्लिमों के बीच बहुत पुराना विवाद है जिसमें इतिहास की घटनाओं के छोड़े हुए निशानों को बतौर सबूत पेश किया जा रहा है। अतः सर्वोच्च न्यायालय ने इस विवाद का हल मध्यस्थता से निकालने की तजवीज पेश की है क्योंकि सबूतों का आधार ही आस्था बनी हुई है। यह पेचीदा मामला इस तरह है कि जिस तरह 1947 से पहले के पूरे संयुक्त भारत (पाकिस्तान समेत) की तकरीबन 756 रियासतें आज यह कहने लगें कि उनकी हुकूमत में अब भी ये जागीरें चलनी चाहिए चाहे उन्होंने खुद उनका विलय 1947 में बने दो देशों हिन्दोस्तान व पाकिस्तान में कर दिया हो।

अतः इतिहास की घटनाएं या दुर्घटनाएं किसी भी तौर पर कोई सबूत नहीं हो सकतीं, इसलिए राम मन्दिर विवाद का निपटारा मध्यस्थता से आज की हकीकत की रोशनी में किया जाना जरूरी है और हकीकत यह है कि अयोध्या में 6 दिसम्बर 1992 तक मस्जिद थी जिसे ढहा दिया गया और हकीकत यह भी है कि इसी मस्जिद के एक भाग में 1949 में एक रात को भगवान राम की मूर्तियां प्रकट होने की खबर फैली थी जिसके बाद शहर में तनाव बढ़ने पर मामला फैजाबाद की अदालत में चला गया था और इसने उस हिस्से में ताला लगाने के आदेश दे दिये थे जहां श्रीराम की मूर्तियां आधी रात को रखी गई थीं। हकीकत यह भी है कि उस दौरान इस जिले में नियुक्त जिलाधीश ने अपने रिटायर होने के बाद 1967 में बहराइच लोकसभा क्षेत्र से जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ा था।

उनकी पत्नी ने भी तब पास की दूसरी सीट से जनसंघ के टिकट पर ही चुनाव लड़कर लोकसभा में प्रवेश किया था। यह सब पुख्ता इतिहास है और ताजा इतिहास है जिसका खंडन कोई भी नहीं कर सकता है। अतः अयोध्या विवाद का हल यदि बातचीत या मध्यस्थता के जरिये निकलता है तो इसमें क्या बुराई हो सकती है मगर ऐसा नहीं है कि सिर्फ यही हिन्दू और मुसलमानों की समस्या है जिस पर पूरा देश गरजता और लरजता रहे। इसी उत्तर प्रदेश में 2013 में पुलिस कांस्टेबलों की भर्ती के लिए परीक्षा में उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को अभी तक नियुक्ति पत्र नहीं मिला है और वे न जाने कितनी बार सड़कों पर प्रदर्शन करके ​नियुक्ति पत्र की मांग करते आ रहे हैं। उनकी मांग सुनने वाला कोई नहीं है।

समस्या यह भी है कि विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में अनुसूचित जाति व जनजाति व पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण एक मजाक बन चुका है। इन शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के पदों पर इन वर्गों के लोगों को नियुक्त ही नहीं किया जा रहा है जबकि आरक्षण बाकायदा लागू है। नुक्ता यह है कि फार्मूला बदल दिया गया है। इसे रोस्टर नाम देकर यह कमाल किया जा रहा है। एक साल पहले ही यह कमाल हुआ और आरक्षण को इस प्रकार लुप्त करने की विधि विकसित की गई कि ‘नाम’ भी चलता रहे और ‘काम’ भी चलता रहे। समस्या यह भी है कि आदिवासियों को जल-जंगल-जमीन से बेदखल करने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद ये सब निरीह और बेचारे सीधे-सादे लोग सकते में हैं कि सदियों से जंगलों के बीच रह कर गुजर-बसर करने के उनके हक को पढ़े-लिखे और सभ्य समझे जाने वाले लोगों ने किस तरह लूटा है कि अदालत से ही उनके खिलाफ आदेश उन सबूतों के आधार पर करा दिये जिन पर उनका पूरा जिस्म तो दिखाई देता है मगर सिर्फ अंगूठे का निशाना नहीं दिखाई देता।

राज्य सरकारों ने जमीन के पट्टे उनके नाम लिखे ही नहीं तो क्या खाक उनका दावा अदालत में सही पाया जाता? दर्द इस मुल्क के लोगों का ही है और राम-रहीम की उपासना करने वालों का ही है मगर इस दर्द की दवा तो सरकार जब चाहे कर सकती है, उसके सामने कोई मजबूरी नहीं है। एक और समस्या महाराष्ट्र के किसानों की है जो पिछले चार साल में चार से भी ज्यादा बार सड़कों पर निकल कर अपना दर्द बयान कर चुके हैं और लिख-लिख कर दे चुके हैं कि उनकी जान बख्शी जाये और उनके पसीने से उपजे अनाज के दानों में बन्द जिन्दगी की कीमत आंकने में पूरा न्याय किया जाये मगर इन प्रदर्शनों को तो जैसे सरकार अपनी शान में कहे जाने वाले मुजाहिरे समझती है? क्योंकि मीडिया न तो सुर्खियां देता है और न इन मसलों को जरूरी समझता है। राष्ट्रीय समस्या और भी है लेकिन राम मंदिर मीडिया का मुद्दा बन चुका है, अगर मध्यस्थता से हल निकलता है तो फिर एक प्रयास और सही।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

three + eight =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।