जहरीली दवा : जिम्मेदार कौन? - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

जहरीली दवा : जिम्मेदार कौन?

जम्मू-कश्मीर स्वास्थ्य विभाग की जांच में पाया गया कि कोल्डवेस्ट पीसी नाम के कफ सीरप में जहरीला डायइथिलीन ग्लायकोल मौजूद था।

जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में जहरीले कफ सीरप से 9 बच्चों की मौत हो जाने के बाद 8 राज्यों से कफ सीरप की 5 हजार बोतलें वापस मंगा ली गई हैं। जम्मू-कश्मीर स्वास्थ्य विभाग की जांच में पाया गया कि कोल्डवेस्ट पीसी नाम के कफ सीरप में जहरीला डायइथिलीन ग्लायकोल मौजूद था। हिमाचल की एक फार्मा कंपनी द्वारा तैयार कफ सीरप की सप्लाई हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा, मेघालय और तमिलनाडु में की जा चुकी थी। 
अब इन राज्यों को सूचना दे दी गई है कि यह सुनिश्चित किया जाए​ कि किसी को यह सीरप नहीं दिया जाए। जहरीली शराब से मौतों की खबरें तो अक्सर आती रहती हैं, बीमारी के चलते भी लोगों की मृत्यु हो जाती है, मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेवन से भी लोगों की मौतें हो जाती है लेकिन अगर दवाओं से मौत होने लगे तो जवाबदेही किसकी होनी चाहिए। जम्मू-कश्मीर में 9 बच्चों की मौत की जिम्मेदार फार्मा कंपनी तो है ही लेकिन मौजूदा सिस्टम भी इसके लिए कोई कम जिम्मेदार नहीं। 
​जिस देश में खाने के निवाले के साथ जहर का व्यापार हो रहा हो, जिस देश में दवाइयां भी अशुद्ध और विषाक्त हो जाएं या फिर बाजार में नकली दवाओं का धंधा चल रहा हो तो निश्चित रूप से इस पर बड़ी बहस तो होनी ही चाहिए। क्या मौत के सौदागर हमेशा की तरह बच निकलते रहेंगे। यह बात पहले ही सामने आ चुकी है कि देश में बि​कने वाली दवाओं में 0.1 प्रतिशत से 0.3 प्रतिशत नकली हैं जबकि चार से पांच प्रतिशत दवायें मानकों पर खरी नहीं उतरती। नकली दवाओं के बाजार में सबसे ज्यादा एंटीबायटिक्स बेची जा रही हैं। 
भारत में दवा का व्यापार एक लाख दस हजार करोड़ से भी ऊपर का है। इसके बाजार पर मुनाफाखोरों की गिद्ध दृष्टि लगी रहती है। दुःखद बात यह है कि नकारा सिस्टम के चलते दवा बाजार में नकली दवाओं की मौजूदगी खत्म नहीं हो रही। हिमाचल की फार्मा कंपनी का कफ सीरप तो नकली नहीं था बल्कि वह कम्पनी का ही उत्पाद था तो फिर सीरप खेप राज्यों को भेजने से पहले उसका सैम्पल चैक क्यों नहीं किया गया। अगर सैम्पल चैक किया जाता तो उसके जहरीले होने का पता चल सकता था।
बच्चों की मौत के बाद ही फार्मा कंपनी का लाइसैंस रद्द किया गया है। नकली दवाओं का धंधा क्रूर अपराध, अमानवीय और घिनौने कला कौशल से परिपूर्ण है। इसमें ऊपर से नीचे तक मुनाफा ही मुनाफा है। भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में जब स्वर्गीय श्रीमती सुषमा स्वराज स्वास्थ्य मंत्री पद पर थी तो उन्होंने कड़े नियम बनाकर नकली दवाओं पर लगाम लगाने के प्रयास किए थे। तब कहा गया था कि यह अपराध गैर जमानती होगा। 
तब सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए माशेलकर समिति का गठन किया था जिसकी सिफारिशों में नकली दवा के अपराध के ​िलए मृत्युदंड की सिफारिश की गई थी। माशेलकर समिति की सिफारिशों पर कितना अमल हुआ यह बाजार जानता है, इसी कारण नकली दवाओं का बाजार फैलता गया और दाम भी उछलते रहे। जब भी जाली दवाओं के सैम्पल लिए गए, तो वह गुणवत्ता पर खरे नहीं उतरे। 
टायफाइड से लेकर मामूली बुखार की दवाइयों को सौ प्रतिशत नकली पाया गया। ड्रग्स कंट्रोल विभाग को नकली दवाओं के बाजार का पता भी है लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती क्योंकि सिस्टम में नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार है। नामी गिरामी कंपनियां ब्रांड के नाम पर लोगों को ठग रही हैं। अपनी दवाओं की बिक्री बढ़ाने के लिए डाक्टरों को महंगे टूर पैकेज दिए जाते हैं।
 इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय फार्मा सैक्टर उच्च गुणवत्ता की दवाओं के उत्पादन में वै​श्विक बाजार को चुनौती दे रहा है लेकिन यह भी सच है कि ड्रग्स कंट्रोल विभाग भी कर्मियों की कमी से जूझ रहा है, कई जिलों में औषधि नियंत्रण निरीक्षक तक नहीं हैं। जांच करने के लिए प्रयोगशालायें नहीं हैं। सैम्पल की जांच के लिए साल भर लग जाता है। 
विश्व बैंक की एक परियोजना के मापदंड के अनुसार 150 कैमिस्टों तथा 50 दवा निर्माताओं के बीच एक ड्रग इंस्पैक्टर होना चाहिए जबकि असल में1500 कैमिस्टों और 150 दवा निर्माताओं के बीच भी एक औषधि निरीक्षक नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो कोई देखने वाला है ही नहीं। नामी कंपनियों के मिलते-जुलते नामों से दवायें ग्रामीण बाजार में खप जाती हैं। दवाओं की गुणवत्ता की जांच के लिए बड़ा सिस्टम स्थापित करना होगा। भारत खाद्य पदार्थों से लेकर दवाओं तक में शुद्धता केलिए युद्ध लड़ रहा है। शुद्धता से युद्ध तो हमें लड़ना ही होगा ताकि लोगों की जान से खिलवाड़ न हो सके।
आदित्य नारायण चोपड़ा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

eight + fifteen =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।