श्रीलंका में प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की बर्खास्तगी न केवल हैरान कर देने वाली रही बल्कि भारत समर्थक माने जाने वाले राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना जिस महिंदा राजपक्षे को हराकर शीर्ष पद पर पहुंचे थे, उन्हें ही प्रधानमंत्री नियुक्त करना और भी हैरान कर देने वाला रहा। महिंदा राजपक्षे चीन समर्थक हैं। महिंदा राजपक्षे ने राष्ट्रपति पद पर रहते चीन की मदद से ही लिट्टे के खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ी। यद्यपि यह घटनाक्रम श्रीलंका की आंतरिक राजनीति का परिणाम है लेकिन यह भारत को झटका भी है। राष्ट्रपति सिरिसेना द्वारा रानिल विक्रमसिंघे की बर्खास्तगी संविधान के दायरे में है या नहीं इस पर बहस चल ही रही थी कि महिंदा राजपक्षे ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर कामकाज भी संभाल लिया।
श्रीलंका की संसद के स्पीकर कारू जयसूर्या ने देश में चल रही उठापटक को लेकर चेतावनी दी है कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के बीच सत्ता संघर्ष को अगर संसद के माध्यम से नहीं सुलझाया गया तो हम इसे सड़कों पर ले जाएंगे तो वहां भयंकर रक्तपात होगा। जयसूर्या ने कहा कि रानिल विक्रमसिंघे संविधान के तहत प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने राष्ट्रपति सिरिसेना से आग्रह किया कि वह विक्रमसिंघे को सदन में अपना बहुमत साबित करने का मौका दें। राष्ट्रपति सिरिसेना ने संसद की कार्यवाही 16 नवम्बर के लिए स्थगित कर दी। श्रीलंका में राजनीतिक तख्तापलट के बाद बहुकोणीय तनाव पैदा हो गया है। राष्ट्रपति ने संसद की कार्यवाही स्थगित इसलिए की ताकि राजपक्षे बहुमत का जुगाड़ कर सकें। संसद में राजपक्षे आैर सिरिसेना के पास कुल 95 सीटें हैं जो 225 सदस्यों वाले सदन में साधारण बहुमत के आंकड़े से भी कुछ पीछे है।
इसी बीच रानिल विक्रमसिंघे के विश्वसनीय माने जाने वाले पैट्रोलियम मंत्री और पूर्व क्रिकेटर अर्जुन रणतुंगे को गिरफ्तार कर लिया गया है। महिंदा राजपक्षे के समर्थकों ने अर्जुन रणतुंगे को बंधक बनाने का प्रयास किया तो रणतुंगे के अंगरक्षक ने गोली चला दी, जिससे एक व्यक्ति की मौत हो गई। श्रीलंका चीन और भारत के बीच वर्चस्व की लड़ाई का अखाड़ा बना हुआ है। राजपक्षे के दौर में चीन को वहां प्रभाव जमाने में काफी सहूलियत हुई। चीन ने वहां बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत बंदरगाह, बिजली केन्द्र आैर हाइवे बनाए ताकि वह इसके जरिए बाकी एशियाई देशों से सम्पर्क कायम कर सके। मौजूदा राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के शासन में श्रीलंका में चीन का दबदबा कम हुआ था। चीन ने श्रीलंका को कर्ज दिया और हंबनटोटा को शानदार बंदरगाह के तौर पर विकसित किया। इसके बाद 2015 के चुनाव में चीन ने राजपक्षे पर फिर दांव लगाया। उसने राजपक्षे को चुनाव के लिए भरपूर फंड भी दिया लेकिन सिरिसेना ने उन्हें हरा दिया। सिरिसेना के चुनाव जीतते ही चीन परेशान हो गया और उसने कर्ज चुकाने के लिए दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया।
परेशान श्रीलंका ने हार कर हंबनटोटा बंदरगाह चीन के हवाले कर िदया। श्रीलंका चीन की गिरफ्त से मुक्त होने के लिए छटपटा रहा है। भारत ने पहल की आैर श्रीलंका में गरीबों के लिए घर और सड़कें बनानी शुरू कीं। श्रीलंका की जनता भी चीन की नीतियों से नाराज है। श्रीलंका ने हंबनटोटा बंदरगाह के निकट बने हवाई अड्डे का संचालन भारत के हवाले करने का ऐलान किया तो चीन तिलमिला उठा। चीन भारत को झटका देने का मौका ढूंढ रहा था। प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति सिरिसेना और राजपक्षे में पक रही खिचड़ी की कोई भनक ही नहीं लगी। अब सरकार पर एक तरह से महिंदा राजपक्षे का नियंत्रण हो गया है। दूसरी ओर विक्रमसिंघे ने चुनौती दी है कि संविधान के अनुच्छेद 19 में संशोधन के बाद राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री को बर्खास्त करने का हक नहीं रह गया। चीन मालदीव में अपने समर्थक राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के चुनाव हारने से पहले ही निराश था लेकिन श्रीलंका में उसने ऐसी कूटनीतिक चाल चली कि राजपक्षे प्रधानमंत्री बन गए।
चुनाव के दौरान राष्ट्रपति सिरिसेना ने राजपक्षे पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे। यह भी आरोप लगाया था कि उनके कार्यकाल में मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया था। सवाल यह है कि अब सिरिसेना की राजपक्षे को प्रधानमंत्री बनाने के पीछे आखिर मजबूरी क्या है? राजपक्षे श्रीलंका के लिए नहीं बल्कि चीन के एजेंट के तौर पर काम करते रहे हैं। सवाल यह भी है कि अब भारत की भूमिका क्या होनी चाहिए। हाल ही में महिंदा राजपक्षे ने भारत का दौरा किया था आैर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी। राजपक्षे का प्रधानमंत्री बनना वहां के तमिलों को भी झटका है। तमिल अलायंस राष्ट्रीय संसद में विपक्ष में है। भारत अभी देखो और इंतजार करो की नीति पर चल रहा है।
हिन्द महासागर में अपना वर्चस्व बनाने की रणनीति के दृष्टिगत चीन के लिए श्रीलंका और मालदीव बेहद अहम देश हैं। श्रीलंका अभी भी भारी कर्ज में फंसा हुआ है। भारत ने उम्मीद जताई है कि श्रीलंका में लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन होगा। अभी यह भी देखना होगा कि सिरिसेना और विक्रमसिंघे में सत्ता संघर्ष के परिणाम क्या निकलते हैं। भारत के लिए जरूरी होगा कि वह अपने हितों के अनुरूप अपनी नीति तय करे। वक्त आने पर भारत को आक्रामक रुख भी अपनाना पड़ सकता है क्योंकि हमारे अधिकांश पड़ोसी चीन के जाल में फंस चुके हैं।