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नेपाल में फिर राजनीतिक अस्थिरता

पड़ोसी देश नेपाल में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच नेपाल में राजनीतिक संकट ने अब नई करवट ले ली है और चीन समर्थक प्रधानमंत्री केपी शर्मा और विपक्ष दोनों को ही झटका लगा है।

पड़ोसी देश नेपाल में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच नेपाल में राजनीतिक संकट ने अब नई करवट ले ली है और चीन समर्थक प्रधानमंत्री केपी शर्मा और विपक्ष दोनों को ही झटका लगा है। सरकार बनाने के पेच के बीच राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने बड़ा कदम उठाते हुए प्रतिनिधि सभा यानि संसद को भंग कर मध्यावधि चुनावों का ऐलान कर दिया। नेपाल में अब 12 और 19 नवम्बर को चुनाव होंगे। राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने यह फैसला प्रधानमंत्री ओली की आधी रात में हुई कैबिनेट की बैठक के बाद लिया। इस बैठक में सदन भंग करने की सिफारिश की गई थी। राष्ट्रपति ने यह फैसला उस समय लिया जब नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देऊबा ने अपने लिए प्रधानमंत्री पद का दावा किया था और 149 सांसदों के समर्थन का पत्र साैंपा था। आधी रात में कैबिनेट की बैठक के बाद संसद भंग करना असंवैधानिक और लोकतंत्र विरोधी है। राष्ट्रपति भंडारी और केपी शर्मा ओली की करीबियां किसी से छिपी हुई नहीं हैं।  राष्ट्रपति ने ओली को प्रधानमंत्री बनने में मदद की है। नेपाल की प्रमुख विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्रपति के इस फैसले को असंवैधानिक करार देते हुए इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया है। इस तरह का कदम राष्ट्रपति की ओर से पिछले वर्ष दिसम्बर में भी उठाया था और ओली की सिफारिश पर सदन भंग कर दिया था लेकिन नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने इसे संवैधानिक करार ​दिया था और संसद पुनः बहाल कर दी थी। तब ओली को विश्वासमत हासिल करने को कहा था लेकिन ओली ​विश्वासमत हासिल नहीं कर सके थे।
विपक्ष द्वारा तीन दिन में सरकार बनाने का दावा पेश नहीं करने पर राष्ट्रपति ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर ओली को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था। ओली को 30 दिन में पुनः विश्वासमत हासिल करना था लेकिन वह पुनः विश्वासमत हासिल करने के पक्ष में नहीं थे। इसलिए राष्ट्रपति ने संसद भंग कर मध्यावधि चुनाव का ​विकल्प चुन लिया था। कोरोना वायरस की महामारी कब तक चलेगी? इसकी कितनी लहरें आएंगी? महामारी के बाद लोगों का जीवन कैसा होगा? इन सभी सवालों का उत्तर ढूंढने के लिए अभी बहुत काम करना होगा। इस त्रासदी का अंत तो एक न एक दिन निश्चित है लेकिन महामारी के दौरान नेपाल में जिस  तरह से सत्ता की लड़ाई चली, उसे नेपाल की जनता हमेशा याद रखेगी। अन्य देशों की तरह नेपाल में भी हालात बहुत बुरे हैं। दवाइयां नहीं, वैक्सीन नहीं, अस्पतालों में बुनियादी सुविधाएं तक नहीं। लोग मर रहे हैं। पशुपतिनाथ मंदिर के मुख्य समन्वयक ने अपने जीवन में सबसे बड़ी संख्या में शवों को श्मशानघाट पर जलते देखा। गरीब लोगों के संक्रमण और मौतों को बढ़ाने के लिए लगभग पूरी तरह राजनीतिक अस्थिरता औरनीतिगत अपंगता जिम्मेेदार है।
नेपाल की राजनीति में लोगों को पशुपतिनाथ के भरोसे छोड़ राजनीतिज्ञ आपस में उलझ गए। पूरी दुनिया में कोरोना संक्रमण और सियासत एक-दूसरे में घुलमिल गई है, जिसमे बड़ी संख्या में दक्षिण पंथी राष्ट्रवादी सत्ता में हैं। नेपाल का मामला केवल इस मायने में अलग है कि सत्तारूढ़ वामपंथी जातीय राष्ट्रवादियों की बदौलत संकट में आ गया है, क्योंकि वे रुढ़िवादी की तरह ही हैं और मार्क्स और माओ के अनुयायी हैं। अफसोस इस बात का है कि बंदूक की नली से निकली क्रांति ने नेपाल की राजशाही को तो खत्म कर दिया। नेपाल का हिन्दू राष्ट्र का दर्जा खत्म कर दिया गया लेकिन एक गणतंत्र और संसदीय लोकतंत्र के रूप में नेपाल कभी भी स्थिर रहने में सक्षम नहीं हुआ, बल्कि अनिश्चितकाल तक भारी कलह और राजनीतिक अस्थिरता का शिकार हो गया। तराई आधारित पार्टियों की भूमिका काफी पेचीदा रही है। ठाकुर एवं अन्य तराई आधारित समूहों ने संविधान की घोषणा के बाद नेपाल में भारत विरोधी भावनाएं बढ़ने के बीच अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। संविधान का विरोध कर रहे 60 से अधिक लोगों की जान चली गई थी और भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में इस मुद्दे को उठाया था। ठाकुर और उनकी पार्टी ने तब घोषणा की थी कि ओली तराई के लोगों के सबसे बड़े दुश्मन हैं। मुश्किल स्थिति मुख्य रूप से ओली के कारण आई, जिन्होंने सभी शक्तियों को अपने हाथों में केन्द्रित कर लिया और बीच में पद छोड़ने की प्रतिबद्धता का सम्मान करने से इंकार करते हुए पार्टी सहयोगियों को धोखा दिया। वह अपने साथ ताकतों का ध्रुवीकरण करते रहे और अपने भड़काऊ बयान एवं कामकाज से बाहर अपना कद बढ़ाने का प्रयास किया। नेपाल को चीन की गोद में डाल दिया। भारत के कुछ क्षेत्रों को नेपाल के नक्शे में दिखा और श्रीराम के जन्मस्थल को लेकर अनर्गल बातें कर राष्ट्रवादी भावनाओं का ज्वार पैदा किया।
नेपाल में भविष्य की राजनीति कैसी होती है, यह स्वयं नेपाल के लिए महत्वपूर्ण होगा। भारत के लिए भी महत्वपूूर्ण होगा कि नेपाल की राजनीति क्या मोड़ लेती है। चीन चाहेगा कि नेपाल में उसकी मनपसंद की सरकार आए लेकिन नेपाल की सियासत में चीन के हस्तक्षेप से वहां पर चीन विरोधी भावनाएं भड़की हुई हैं। नेपाल की जनता को ऐसा जनादेश देता है जिससे नेपाल में राजनीतिक इस्थिरत्त आए। आगामी चुनाव नेपाल की जनता की परीक्षा है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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