कोरोना काल में राजनीतिक रैलियां - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

कोरोना काल में राजनीतिक रैलियां

कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर के साथ ही ओमीक्राेन के बढ़ते हुए मामलों को देख कर विभिन्न राजनीतिक दलों को चुनावी राज्यों में बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है जिससे आम लोगों को इस बीमारी की चपेट में आने से बचाया जा सके।

कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर के साथ ही ओमीक्राेन के बढ़ते हुए मामलों को देख कर विभिन्न राजनीतिक दलों को चुनावी राज्यों में बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है जिससे आम लोगों को इस बीमारी की चपेट में आने से बचाया जा सके। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में कांग्रेस पार्टी द्वारा आयोजित बालिकाओं की मैराथन दौड़ प्रतियोगिता में जिस तरह भगदड़ का हादसा होते-होते बचा उसे देखते हुए बहुत जरूरी है कि सभी राजनीतिक दल अपनी चुनाव प्रचार की भूख पर काबू रखें और लोगों को अधिकाधिक संख्या में एकत्र करने के विभिन्न कार्यक्रमों पर लगाम लगायें। यह कहने की जरूरत नहीं है कि पिछले वर्ष मार्च महीने से शुरू हुई कोरोना की दूसरी लहर ने जुलाई महीने तक जो कोहराम मचाया था उसकी चपेट में लाखों भारतीय नागरिक आये थे और हजारों काल का ग्रास भी बने थे। उस समय प. बंगाल विधानसभा के चुनाव हो रहे थे जिसमें कोरोना अनुरूप व्यवहार का पालन नहीं हो रहा था। राजनीतिक दल बड़ी-बड़ी चुनाव सभाएं आयोजित कर-करके एक-दूसरे को पटखनी देने के नुस्खे तलाश रहे थे। रैलियों भीड़ इकट्ठा करने की प्रतियोगिता चली हुई थी जिनमें कोरोना के अनुरूप व्यवहार का पालन नेतागण तक नहीं कर रहे थे। 
चुनाव आयोग ने भी आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद ही कोरोना नियमों का पालन करने का नियम राजनीतिक दलों पर लगाया था मगर अफसोस,नाकहकीकत यह रही कि किसी भी राजनीतिक दल ने इसे तब तक गंभीरता से नहीं लिया जब तक कि संक्रमण ने खुल कर अपना रंग दिखाना शुरू नहीं किया। लोकतन्त्र में चुनावों का महत्व निश्चित रूप से होता है मगर देखने वाली बात यह होती है कि चुनाव किसी भी रूप में लोगों के जीवन के लिए संकट न बन पायें। इसके लिए चुनाव प्रचार भी जरूरी होता है मगर यह प्रचार लोगों की जान से ऊपर किसी भी तरह नहीं हो सकता। बेशक किसी भी महामारी के दौर में चुनाव कराना एक बहुत बड़ी चुनौती होती है जिसका सामना केवल चुनाव आयोग ही कर सकता है मगर किसी भी राज्य में चुनाव आदर्श आचार संहिता लगने से पहले राज्य सरकारों और केन्द्र की जिम्मेदारी होती है कि वह लोगों की जान की सुरक्षा करने हेतु आवश्यक कदम उठाये। अतः जिन राज्यों पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर, पंजाब व उत्तर प्रदेश में चुनाव हो रहे हैं, इसकी राज्य सरकारों की जिम्मेदारी बनती है कि वे सार्वजनिक कार्यक्रमों विशेषकर राजनीतिक कार्यक्रमों में भीड़ से बचाव के ऐसे इन्तजाम करें जिससे लोगों को एकत्र किये बिना ही कार्यक्रमों को सफल बनाया जा सके। 
यह टैक्नोलोजी का युग है जिसमें कम्प्यूटर व इंटरनेट की विशेष महत्ता हो गई है। इंटरनेट के माध्यम से लोग एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं। यह टैक्नोलोजी चुनाव प्रचार में अधिकाधिक प्रयोग की जानी चाहिए जिससे महामारी के समय लोगों के बीच कम से कम मिलाप हो। राजनीतिक दलों के लिए भी जरूरी नहीं है कि वे अपनी ताकत दिखाने के लिए बड़े-बड़े खर्चीले कार्यक्रम करें। आखिरकार चुनाव प्रचार का उद्देश्य लोगों को राजनीतिक रूप से सजग करने का ही होता है जिसमें विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने सिद्धान्तों के प्रति लोगों का ध्यान आकृष्ठ कराते हैं मगर भारत में आजकल जिस राजनीति का दौर चल रहा है उसमें राजनीतिक दल बजाये कोई दीर्घकालीन नीतिगत सिद्धान्त पेश करने के एक-दूसरे पर आरोप व प्रत्यारोप लगा कर व्यक्तिगत स्तर पर एक-दूसरे के नेताओं की आलोचना अधिक करते हैं। इसी काम के लिए हर राजनीतिक दल ज्यादा से ज्यादा लोगों को इकट्ठा करके अपने विरोधी पर रुआब गांठने का उपक्रम करता है। बेशक लोकतन्त्र इसकी इजाजत देता है मगर यह कार्य आम जनता की राजनीतिक शिक्षा के लिए होना चाहिए। 
यदि हम स्वतन्त्र भारत का इतिहास देखें तो 1952 के पहले आम चुनाव अक्तूबर 1951 से लेकर मार्च 1952 तक चले थे और इनमें हिन्दू नागरिक आचार संहिंता या ‘हिन्दू कोड बिल’ प्रमुख चुनावी मुद्दा था। अंग्रेजी दासता से निकले भारत के लोगों की यह पहली लोकतान्त्रिक शिक्षा थी जिसे बड़ी खूबी के साथ तत्कालीन राजनीतिक नेताओं ने निभाया था। अब हम विगत 74 वर्षों से इसी पद्धति पर चल रहे हैं मगर हमारे राजनीतिज्ञों के प्रचार का स्तर गिरता जा रहा है। अतः कोरोना काल में हमें इस विषय पर भी गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए और लोगों को राजनीतिक रूप से अधिकाधिक सुविज्ञ बनाना चाहिए। मगर फिलहाल सबसे अहम मसला यह है कि राजनीतिक दल कोरोना की भयावहता को देखते हुए अपने वोट के लालच पर नियन्त्रण रखें और राजनीतिक रैलियों का आयोजन करने से बचें। इस बारे में बरेली की घटना के बाद कांग्रेस पार्टी ने अपनी सभी राजनीतिक रैलियों पर रोक लगा दी है जिसका अनुसरण उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी ने भी किया है और आगामी दिनों में आयोजित होने वाली अपनी सभी रैलियों को स्थगित कर दिया है। मगर यह केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि पंजाब समेत अन्य चुनावी राज्यों में भी होना चाहिए। इसमें सत्तारूढ़ और विपक्ष का कोई सवाल नहीं है बल्कि समूची सियासी जमात का सवाल है। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ten + four =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।