राम मन्दिर पर राजनीति वर्जित - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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राम मन्दिर पर राजनीति वर्जित

जाहिर है कि जब राम जन्मभूमि विवाद पिछले लम्बे अर्से से न्यायालय में चल रहा है तो उसके अन्तिम फैसले का इन्तजार किया जाना चाहिए और किसी भी पक्ष को नाजायज दबाव नहीं बनाना चाहिए।

अयोध्या के राम जन्मभूमि विवाद के बारे में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने उन राजनैतिक ‘बयानबहादुरों’  की खबर ली है जो पिछले समय से बिना सोचे समझे ऐसी बयानबाजी कर रहे हैं जिससे देश के सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमे चल रहे इससे सम्बन्धित तार्किकता पर गलत प्रभाव पड़ता है। अतः श्री मोदी का भाजपा के ही कार्यक्रम में महाराष्ट्र के नासिक शहर में यह कहना कि ‘राम के लिए देश की न्यायपालिका का सम्मान करो’  बताता है कि सरकार इस सम्बन्ध में कोई ऐसा काम करना नहीं चाहती जिससे किसी भी समुदाय को यह लगे कि वह किसी का पक्ष लेना चाहती है। 
जाहिर है कि जब राम जन्मभूमि विवाद पिछले लम्बे अर्से से न्यायालय में चल रहा है तो उसके अन्तिम फैसले का इन्तजार किया जाना चाहिए और किसी भी पक्ष को नाजायज दबाव नहीं बनाना चाहिए। उच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ इस मुकदमे की दैनिक आधार पर सुनवाई कर रही है जिसकी अध्यक्षता स्वयं मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई कर रहे हैं और उन्होंने कह दिया है कि आगामी 18 अक्टूबर तक सुनवाई का काम पूरा हो जायेगा और वह अपने अवकाश प्राप्त करने से पूर्व फैसला सुना देंगे। श्री गगोई आगामी 7 नवम्बर को रिटायर हो रहे हैं तो फिर किसी को भी हाय-तौबा करने की क्या जरूरत है? 
भारत संविधान से चलने वाला देश है और इसके अनुसार गठित किसी भी राजनैतिक दल की बनने वाली सरकार केवल संविधान के अनुसार ही शासन करने की हकदार है। अतः किसी भी पार्टी के नेता अथवा धार्मिक नेता को यह कहने का अधिकार नहीं है कि राम जन्मभूमि पर मन्दिर निर्माण करने के लिए सरकार अति उत्साह में आ जाये और इसके अनुसार कोई तरीका निकाले। दरअसल महाराष्ट्र शिव सेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पिछले दिनों यह बयान दिया था कि मोदी सरकार जब इतनी ताकतवर है कि वह जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटा सकती है तो फिर वह अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण के लिए कानूनी रास्ता क्यों नहीं निकाल सकती। 
श्री ठाकरे यह भूल गये थे कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और किसी भी सरकार को संविधान के मूल ढांचे के साथ छेड़छाड़ करने की संविधान इजाजत नहीं देता है। सरकारों का काम मन्दिर और मस्जिद निर्माण कराना नहीं होता बल्कि यह कार्य समाज में कार्यरत संगठनों का होता है। बेशक कोई भी राजनैतिक दल कह सकता है कि वह राम मन्दिर निर्माण करेगा मगर कोई भी सरकार यह नहीं कह सकती क्योंकि संविधान उसे इसकी इजाजत नहीं देता। सत्ताधारी दल उसकी सरकार में मूलभूत अंतर यही होता है कि एक राजनैतिक संगठन की हैसियत से वह अपनी समर्थक जनता के हित में समझे जाने वाले विषयों पर कोई ऐसा वादा कर सकता है जिससे उसकी भावनाएं सन्तुष्ट होती हों मगर उसी राजनैतिक दल के सत्ता में आने पर उसकी पहली बाध्यता संविधान होता है और उसकी सरकार इसी संविधान के दायरे से एक क्षण के लिए भी बाहर नहीं जा सकती। 
जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने का कार्य संविधान के दायरे में ही किया गया और इसके  लिए सभी आवश्यक नियमों का पालन संवैधानिक तरीकों से किया गया। अतः राम मन्दिर निर्माण से इसकी तुलना करना पूरी तरह बचकाना सोच है जिसकी अपेक्षा  किसी  सुलझे हुए राजनीतिज्ञ से नहीं की जा सकती। शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे अपना राजनैतिक स्वार्थ साधने के लिए ऐसी फिजूल बयानबाजी कर रहे हैं इसका आधार यह है कि महाराष्ट्र के अलावा शिवसेना का कोई नामलेवा नहीं है और दिसम्बर महीने में इस राज्य की विधानसभा के चुनाव होने हैं। राज्य में फिलहाल भाजपा और शिवसेना की मिलीजुली सरकार श्री देवेन्द्र फड़णवीस के नेतृत्व में चल रही है। 
288 विधानसभा में शिवसेना चुनावों के लिए ज्यादा से ज्यादा सीटें लेना चाहती है और श्री फड़णवीस उसे तीस प्रतिशत से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं हैं। इसी वजह से भाजपा को धर्म संकट में डालने के लिए श्री ठाकरे दबाव की राजनीति करना चाहते हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में भी यह खेल हुआ था और शिवसेना व भाजपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था मगर इसमें भाजपा का ही लाभ हुआ था और उसकी सर्वाधिक सीटें 120 से ज्यादा आयी थीं। आखिरकार 2019 के लोकसभा चुनावों में क्या हुआ था? झक मार कर उसे भाजपा का दामन थामना पड़ा था। उस समय भी चुनाव प्रचार के दैरान ही उद्धव ठाकरे अयोध्या में पूरे लाव-लश्कर के साथ पहुंच गये थे और ‘पहले मन्दिर फिर सरकार’ की जुमलेबाजी करने लगे थे। 
मगर हुआ क्या? श्री मोदी ने तभी कह दिया था कि मन्दिर निर्माण संविधान का सम्बन्ध संविधान के सम्मान से जुड़ा हुआ है। दरअसल अयोध्या राजनैतिक मुद्दा है ही नहीं तो फिर इसे लेकर राजनीति करने की क्या तुक है। सर्वोच्च न्यायालय जो भी फैसला देगा वह देश के हर नागरिक को मान्य होगा और सबसे पहले सरकार को मान्य होगा। इसलिए न्यायालय का सम्मान करना प्रत्येक भारतीय का कर्त्तव्य है। 

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