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पॉजिटिव-निगेटिव का खेल

कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन के दौरान कोई खबर नहीं आती थी, जैसे ही लॉकडाउन अनलॉक हुआ ढेर सारी खबरें आने लगीं।

कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन के दौरान कोई खबर नहीं आती थी, जैसे ही लॉकडाउन अनलॉक हुआ ढेर सारी खबरें आने लगीं। बाजारों में भीड़ लगने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करने, मास्क नहीं पहनने की खबरों के साथ अपराध की खबरें भी आने लगीं।
कोरोना जैसी महामारी के दौरान उम्मीद थी कि इंसान पहले से भी अधिक संवेदनशील और परिपक्व बनेगा, लोगों की मानसिकता बदलेगी, इन्सान दूसरे इन्सान की भावनाओं को समझेगा। यह भी सोचा जा रहा था कि कोरोना काल से बाहर आने के बाद सब कुछ अच्छा हो जाएगा लेकिन अब सारे भ्रम टूट गए।
लोग भूल गए हैं कि जिन्दगी और मौत के बीच महीन अंतर को समझने वाला यह विषाणु अभी दुनिया से गया नहीं बल्कि वह और खतरनाक हो रहा है। कोरोना काल में लोगों ने अपनी इंसानियत कहीं खो दी। कोरोना मरीजों के उपचार में प्राइवेट अस्पतालों, प्राइवेट प्रयोगशालाओं ने जो लूट मचाई है, उसकी पीड़ा लोगों के चेहरों पर साफ नजर आ रही है।
कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच स्वास्थ्य मामलों पर संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि महामारी के बीच निजी अस्पतालों ने इलाज के नाम पर मनमाने पैसे वसूले। पर्याप्त सरकारी सुविधा न होने से लोगों को भारी मुश्किलें हुईं और बड़ी संख्या में मरीजों की मौत हो रही है।
कोरोना काल में यह समस्या और जटिल हुई। लोगों को निजी अस्पतालों की मनमानी का शिकार होना पड़ा। इलाज संबंधी स्पष्ट दिशा निर्देश न होने से प्राइवेट अस्पतालों में कोई रोक-टोक नहीं रही। इसमें गरीब और मध्यम वर्ग पिस कर रह गया। संसदीय समिति ने यह भी कहा है कि 130 करोड़ की आबादी की स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्चा बहुत कम है।
जर्जर स्वास्थ्य सुविधायें महामारी से निपटने में सबसे बड़ी बाधा हैं। समिति ने जन स्वास्थ्य सुविधाओं पर सरकारी खर्च बढ़ाने की सिफारिश करते हुए कहा है कि अगले दो वर्ष तक स्वास्थ्य सुविधाओं पर जीडीपी का 2.5 प्रतिशत खर्च करने की जरूरत है। प्राइवेट अस्पतालों और टैस्ट लैबोरेट्रीज ने कोरोना पॉजिटिव और निगेटिव का बहुत खेल खेला। निजी अस्पतालों ने वेंटिलेटर बैड के बदले तीन लाख से 12 लाख तक का बिल लोगों को थमाया।
लोग लुट-पिट कर घरों को लौटे। अनेक कर्ज के जाल में फंस गए। कोरोना वायरस का खौफ दिखा कर लोगों को कंगाल बना दिया गया। गुरुग्राम में ऐसी फर्जी लैब पकड़ी जो 1400 से 5 हजार रुपए लेकर कोरोना की मनचाही रिपोर्ट आधे से एक घण्टे में तैयार कर देेती थी। सीएम फ्लाइंग स्क्वायड को सूचना मिली तो उसने अपने एक कर्मचारी को जांच कराने के लिए भेजा। जैसी सूचना मिली थी वैसा ही काम चल रहा था।
एक घण्टे के भीतर कर्मचारी को कोरोना की निगेटिव रिपोर्ट दे दी गई। जब कर्मचारी ने कहा कि उसे तो कोरोना पाॅजिटिव रिपोर्ट चाहिये क्योंकि उसने छुट्टियां लेनी हैं तब आधे घण्टे के भीतर रिपोर्ट दे दी गई। हैरानी की बात तो यह भी है कि कोरोना के टैस्ट के लिए  स्वाब लिया जाता है ब्लड नहीं। फिर भी लोगों से ब्लड के सैम्पल लिए जाते थे। लोगों के जीवन से खुला खिलवाड़ किया जा रहा था।
आरोपियों के मोबाइल पर उपलब्ध रिपोर्ट के मुताबिक कुछ लोगों ने विदेश जाने के लिए कोरोना निगेटिव ​रिपोर्ट  बनवाई, जिनमें से दो तो विदेश जा भी चुके हैं। अब यह जांच का विषय है कि आरोपियों के तार दिल्ली और गुरुग्राम की किन-किन लैब से जुड़े थे क्योंकि फर्जी लैब वाले दिल्ली की प्रतिष्ठित लैब के नाम का इस्तेमाल कर रहे थे।
देश भर में ऐसी फर्जी लैब कई अन्य जगह भी संचालित हो रही होंगी, इसका पता लगाने के लिए व्यापक स्तर पर जांच-पड़ताल होनी ही चाहिए। दिल्ली की प्राइवेट लैब वालों ने भी खूब चांदी काटी है। यह बात सर्वविदित हो चुकी है कि इन लैब वालों का एक ही फार्मूला है। यदि परिवार के एक सदस्य को कोरोना पॉजिटिव हो जाए तो परिवार के सभी जांच कराने लैब आएंगे ही।
पॉजिटिव-निगेटिव के खेल में निजी अस्पताल लूट का अड्डा बन चुके हैं। आम आदमी की मानसिकता भी पुराने ढर्रे पर लौट आई है। देशभर से ऐसी खबरें आ रही हैं कि भीड़ ने रेहड़ी वाले के फल लूट लिए। जो इंसान अपने परिवार का पेट पालने के लिए रेहड़ी पर फल-सब्जी या कोई अन्य वस्तुएं बेचने के लिए निकला, उसकाे भीड़ द्वारा लूटा जाना अमानवीय तो है ही बल्कि शर्मसार करने वाला भी है। लॉकडाउन खुलते ही अन्य गंभीर आपराधिक घटनाओं की खबरों की भरमार हो गई है। मानवता, इंसानियत कहीं गुम हो गई है, लोगों को लूटना ही पेशा बन चुका है। कवि प्रदीप की पंक्तियां याद आ रही हैंः
आया समय बड़ा बेढंगा, आज आदमी बना लफंगा
कहीं पे भगदड़ कहीं पे दंगा, नाच रहा नर होकर नंगा
छल और कपट के हाथों अपना बेच रहा ईमान
कितना बदल गया इंसान…
पूरा देश आज गंभीर संकट में है, जिसमें मानव जाति के अस्तित्व की लड़ाई लड़ी जा रही है। यह लड़ाई इतनी जल्दी खत्म होने वाली भी नहीं। जब टैस्ट रिपोर्ट ही फर्जी बनेगी तो फिर लड़ाई कैसे लड़ी जाएगी?

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