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दशहरे का व्यावहारिक अर्थ!

आज दशहरा अर्थात् विजय दशमी का पर्व है जिसे बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार राम-रावण युद्ध में आसुरी शक्ति रावण की पराजय का यह जयनाद भी माना जाता है

आज दशहरा अर्थात् विजय दशमी का पर्व है जिसे बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार राम-रावण युद्ध में आसुरी शक्ति रावण की पराजय का यह जयनाद भी माना जाता है और मां दुर्गा के द्वारा राक्षसी शक्तियों पर विजय का उल्लास पर्व भी कहा जाता है। इसका मन्तव्य यही निकलता है कि समाज में सद् प्रवृत्ति के प्रवाह हेतु कुत्सित मानसिकता का विनाश आवश्यक है। आधुनिक वैज्ञानिक युग में धार्मिक रीति-रिवाजों की प्रासंगिकता मनुष्य को सद्‍व्यवहार के लिए प्रेरित करने हेतु ही होती है जिससे नितान्त भौतिकता के जाल में उलझ कर वह जीवन को नीरसता की ओर न धकेले। जीवन में सरसता बनाये रखने के लिए ही सांस्कृतिक संस्कारों की आवश्यकता होती है जिससे सम्पूर्ण समाज लगातार समावेशी बना रहे। इन त्यौहारों को हम संकीर्णता के उस दायरे में नहीं धकेल सकते हैं जिससे समाज में विद्वेष फैले क्योंकि इनका अन्तिम ध्येय सामाजिक समरसता और एकता ही होता है । परन्तु आज हम देख रहे हैं कि इन त्यौहारों को भी सामाजिक विद्वेष की आग में झोंका जा रहा है जो पूरी तरह भारतीय संस्कृति के विपरीत है क्योंकि सहिष्णुता और सहनशीलता इस धरती का अप्रतिम गुण है। 
यह बेवजह नहीं है कि भारत ने स्वतन्त्रता के साथ ही जिस प्रणाली को अपनाया उसे लोकतन्त्र कहा जाता है और यह लोकतन्त्र भारत की मिट्टी से ही उपजा है। हमारा इतिहास गवाह है कि लिच्छवी गणराज्य से लेकर मुगल शासनकाल तक किसी न किसी रूप में लोकतन्त्र की लहर इस देश की शासन प्रणाली की मुख्य आभा रही है जिसकी वजह से भारतीय संस्कृति निर्बाध रूप से बहती रही। हम इसमें धर्म की सीमाएं बांध कर विकृत नहीं कर सकते क्योंकि मध्यकाल में हिन्दू राजाओं के सेनापति मुसलमान रहे और मुसलमान शासकों के सिपहसालार हिन्दू रहे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण महाराणा प्रताप थे जिनका सेनापति वीर  मुसलमान योद्धा हाकिम खां सूर था और मुगल सम्राट अकबर का सिपेहसालार राजा मानसिंह था। इन दोनों के नेतृत्व में ही ऐतिहासिक हल्दी घाटी का युद्ध हुआ था। इससे पहले मुगल शासक हुमाऊं मेवाह की रानी कर्मवती की राखी के  बुलावे पर भाई बन कर उनकी मदद करने चित्तौड़ आया था। 
भारत का इतिहास ऐसी हृदयस्पर्शी घटनाओं से भरा पड़ा है। आज के भारत में सामाजिक समरसता व एकता बनाये रखने के लिए हमें इतिहास की इन घटनाओं को ऊपर लाकर भारत के विकास में जुट जाना चाहिए और प्रत्येक हिन्दू-मुसलमान को इसमें सहभागी बनना चाहिए क्योंकि यह देश मूलतः उन 130 करोड़ हिन्दोस्तानियों का है  जिनका धर्म तो अलग-अलग हो सकता है मगर देश एक है। यह देश ही उन्हें जीवन की तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराता है। इन सुविधाओं पर सभी नागरिकों का बराबर का अधिकार है इसे हमारा संविधान सुनिश्चित करता है जो कि स्वतन्त्र भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि है क्योंकि यह कोई आसमानी किताब नहीं है बल्कि इस देश के लोगों द्वारा जमीनी सच्चाई और व्यावहारिकता की परख के साथ लिखी गई है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि भारत का शासन चलाने के लिए भारत के लोग जिस राजनीतिक पार्टी को भी सत्ता पर बैठाते हैं वह इसी किताब की कसम उठाकर हुकूमत इस भाव से संभालती है कि वह इस देश के सरमाये को जनता की अमानत समझेगी और इसकी हिफाजत एक संरक्षक की तरह करेगी न कि मालिक की तरह। यह विशिष्टता भारत की इस तरह है कि इसमें रहने वाले सभी धर्मों के लोग निर व बेखौफ होकर निजी रूप से अपने-अपने धर्म का पालन कर सकेंगे। यह तथ्य समझने की जरूरत है कि भारत का संविधान निजी धार्मिक स्वतन्त्रता की इजाजत देता है सामूहिक नहीं। अतः जब सांस्कृतिक रीति रिवाजों का प्रश्न आता है तो वे धर्म के दायरे से अलग हो जाती है और हिन्दू-मुसलमानों को आपस में मिल कर इन त्यौहारों को मनाने के लिए प्रेरित करती है। संभवतः यही कारण था कि सिख धर्म के संस्थापक महान गुरू नानक देव जी ने भारत की विविधता को देख कर वाणी कही,
‘‘कोई बोले राम-राम, कोई खुदाये
कोई सेवें गुसैयां,  कोई अल्लाये।’’ 
अतः स्वतन्त्र भारत में हमें सबसे पहले यही सोचना होगा कि दशहरे का असली अर्थ क्या है ? प्रागैतिहासिक काल में राम-रावण के बीच का हुआ युद्ध भारत का पहला जनयुद्ध था जिसमें रावण की अपार राजसी व सशक्त सेना का मुकाबला राम ने इस देश की साधारण जनशक्ति ( बानर व भालू प्रतीक रूप में) की सेना के साथ किया था जिससे राम को लोगों ने भगवान की उपाधि से विभूषित किया और उनकी पूजा युगों से जारी रखी। अतः स्पष्ट है कि भारत में लोकतन्त्र रामायण काल से ही पल्लवित होता रहा, मगर अंग्रेजों ने अपने दो सौ साल के शासन के दौरान इस देश की संस्कृति को विध्वंस करने का जो षड्यन्त्र रचा उसके परिणाम स्वरूप धर्म के आधार पर पाकिस्तान का निर्माण हुआ। आज के भारत को यह समझना चाहिए कि पाकिस्तान के हाथ में आज कटोरा है और भारत के हाथ में दुनिया के शक्तिशाली देशों तक को देने के लिए निवेश आमन्त्रण। अतः राष्ट्र आराधन ही इस पर्व का पवित्र सन्देश है।

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