95 साल की उम्र तक पंजाब की सियासत में सक्रिय रहने वाले और राजनीति का बाबा बोहड़ (वट वृक्ष) माने गए प्रकाश सिंह बादल के निधन से पंजाब की राजनीति का एक बड़ा अध्याय समाप्त हो गया। प्रकाश सिंह बादल को पंजाब ही नहीं भारतीय राजनीति में सभी दलों के बीच सम्मानित व्यक्ति के तौर पर जाना जाता था। यह एक ऐसा रुतबा था जिसे पंजाब का कोई दूसरा सियासतदान हासिल नहीं कर सका। उन्होंने सात दशक तक पंजाब और भारत की राजनीति पर अमिट छाप छोड़ी और उन्होंने कई रिकार्ड बनाए। देश को आजादी मिलने के वक्त 1947 में उनकी उम्र महज 20 साल थी, जब उन्होंने सरपंच का चुनाव जीतकर अपना राजनीतिक करियर शुरू किया था। उन्होंने सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री और सबसे उम्रदराज मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड भी बनाया। वह केन्द्र में मंत्री पद पर भी रहे।
खास बात यह है कि प्रकाश सिंह बादल 1970 में जब 43 साल की उम्र में पहली बार मुख्यमंत्री बने तो वह देश में उस समय किसी भी राज्य के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री थे। वहीं साल 2012 में जब वह पांचवीं बार मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने देश का सबसे उम्रदराज मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड बनाया था। पिछले साल 2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने सबसे उम्रदराज कैंडिडेट होने का रिकार्ड अपने नाम किया था। 2015 में उन्हें भारत सरकार द्वारा दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया। 2011 में अकाल तख्त ने उन्हें पंथरतन फखर-ए-कौम (सचमुच धर्म का गहना और समुदाय का गौरव) की उपाधि दी थी। बादल को यह उपाधि लम्बे समय तक जेल में रहने और विभिन्न अकाली आंदोलनों के दौरान अत्याचारों का सामना करने के लिए दी गई थी।
स्वर्गीय प्रकाश सिंह बादल की जनता के बीच विशाल समर्थन और लोकप्रियता हासिल करने के पीछे उनकी प्रगतिशील साेच की बहुत बड़ी भूमिका रही। उनके साथ काम करने वाले लोग और उनके राजनीतिक विरोधी भी उनकी राजनीतिक समझ के कायल रहे। यद्यपि उन्होंने अपना पहला चुनाव 1957 में पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर लड़ा था और वे विधायक बने थे लेकिन बाद में उन्हें पंजाब की िसयासत से लेकर पंथक मोर्चे पर हमेशा कांग्रेस से संघर्ष करना पड़ा। उनके समय में कई दिग्गज नेता थे लेकिन प्रकाश सिंह बादल उन नेताओं की श्रेणी में आते थे जो क्षेत्रीय दलों को मजबूत करने के पक्ष में रहे। उन्होंने हमेशा अकाली दल को मजबूत बनाने के लिए काम किया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल लगाने के कारण कांग्रेस के खिलाफ बने माहौल का फायदा गैर कांग्रेसी पार्टियों को हुआ था। उन्होंने आपातकाल के दौरान जेल भी काटी। 1977 के चुनाव में अकाली दल और जनता पार्टी ने मिलकर सरकार बनाई और प्रकाश सिंह बादल दूसरी बार पंजाब के मुख्यमंत्री बने थे, तब मेरे पूजनीय दादा जी अमर शहीद रमेश चन्द्र जी जालंधर से जनता पार्टी के टिकट पर विधायक बने थे। बादल परिवार से मेरे परदादा लाल जगत नारायण जी के मैत्रीपूर्ण संबंध रहे। बादल परिवार के मेरे पिता श्री अश्विनी कुमार जी से बहुत ही घनिष्ठ संबंध रहे। मेरे माता-पिता की शादी के अवसर पर भी प्रकाश सिंह बादल की उपस्थिित रही और दिल्ली में मेरे परिवार द्वारा आयोजित राजनीतिज्ञों, सम्पादकों और मित्रों की पार्टी में भी प्रकाश सिंह बादल उपस्थित रहे थे, तब कांग्रेस नेता श्रीमती सोनिया गांधी ने सत् श्रीअकाल कहकर उनका अभिवादन किया था।
प्रकाश सिंह बादल की सबसे बड़ी खूबी उनका संवाद कौशल रहा। वे पार्टी के प्रति हमेशा वफादार रहे और उन्होंने मास्टर तारा सिंह, संत फतेह सिंह जैसे बड़े नेताओं के नेतृत्व में पंजाबी सूबा मोर्चा, कपूरी मोर्चा और धर्मयुद्ध मोर्चा में सक्रिय रूप से भाग लिया और कई साल जेलों में गुजारे। 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में प्रकाश सिंह बादल की उपस्थिति में उन्हें भारत का नेल्सन मंडेला कहकर सम्बोधित किया था। जब भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उनसे मिलते थे तो वह चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लेते थे। अगर उनकी शासन की उपलब्धियों को देखा जाए तो देश में समुदाय भवन बनाने की सोच उन्हीं द्वारा स्थापित उदाहरण पर ही आधारित है। उन्होंने सबसे पहले अपने गांव में गरीब जनता की शादी विवाह के लिए पहला समुदाय भवन स्थापित किया था। आज के मुख्यमंत्री जो जनता दरबार लगाते हैं वह भी प्रकाश सिंह बादल की सोच का परिणाम है। स्वर्गीय बादल ने मुख्यमंत्री रहते हुए संगत दर्शन का कार्यक्रम शुरू किया था जिसके तहत वह गांव-गांव जाकर जनता के दर्शन करते और उनकी समस्याओं का निपटारा उसी समय कर देते थे। उन्होंने पंजाब में गरीबों को चार रुपए किलो गेहूं और 20 रुपए किलो दाल देने का कार्यक्रम शुरू किया, जिसका अनुसरण बाद में केन्द्र की सरकारों ने भी किया। उन्होंने कृषि क्षेत्र, लड़कियों की शिक्षा और खेलों के विकास के लिए काफी काम किया। आतंकवाद के चलते पंजाब में हिन्दू-सिखों के बीच खराब हुए सौहार्द को बनाने में उनका अहम योगदान रहा। उन्होंने 1996 में जब भाजपा के नेतृत्व में एनडीए बना तो उसके मुख्य सूत्रधार वही रहे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को सबसे पहले समर्थन देने वाले वही थे। प्रत्येक राजनीतिज्ञ के साथ अपवाद और विवाद तो जुड़े ही रहते हैं। परिवारवाद और भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे लेकिन उनका राजनीतिक कद कभी भी प्रभावित नहीं हुआ। जनता से लगातार जुड़े होने के चलते उनकी लोकप्रियता हमेशा कायम रही। पंथक चुनावों में भी उन्होंने कभी मात नहीं खाई। उनके द्वारा पंजाब में किए गए कार्यों और सामाजिक सौहार्द में भूमिका के लिए उन्हें हमेेेशा याद किया जाता रहेगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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