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श्मशान की छत कर रही सवाल?

गाजियाबाद के मुरादनगर के श्मशान घाट में हुए हादसे में 25 लोगों की मौत के बाद कुरालसी मोहल्ले के हर दूसरे घर में मातम पसरा हुआ है। लगभग 8 घर ऐसे हैं जिनमें किसी न किसी सदस्य की मौत इस हादसे में हुई है।

गाजियाबाद के मुरादनगर के श्मशान घाट में हुए हादसे में 25 लोगों की मौत के बाद कुरालसी मोहल्ले के हर दूसरे घर में मातम पसरा हुआ है। लगभग 8 घर ऐसे हैं जिनमें किसी न किसी सदस्य की मौत इस हादसे में हुई है। मरने वालों के परिजनों में आक्रोश है और आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे। किसी का पिता तो किसी के भाई की मौत हुई। विधवाओं का क्रंदन हवाओं को चीर रहा है। उनके सामने परिवार को चलाने का संकट खड़ा हो गया। लोगों का गुस्सा फूटा और परिजनों ने जगह-जगह शव सड़क पर रखकर प्रदर्शन किए। अपने एक संबंधी की अंत्येष्टि के बाद मारे गए लोग मौन रहकर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे थे। दो मिनट के मौन के बाद वे हमेशा के लिए मौन हो गए। श्मशान उनके लिए श्मशान ही साबित हुआ। हर श्मशान में बहुत सी बातें लिखी होती हैंः
‘‘मंजिल तो तेरी यही थी
बस जिन्दगी गुजर गई आते-आते
क्या मिला तुझे इस दुनिया से?
अपनों ने ही जला दिया तुझे जाते-जाते।’’
जो जन्म लेता है उसको एक न एक दिन यहीं आना होता है, लेकिन श्मशान घाट की छत गिरने से असमय हुई मौताें का जिम्मेदार कौन है? यद्यपि श्मशान में गैलरी की छत डालने वाले ठेकेदार को गिरफ्तार कर लिया गया है। मुरादनगर नगर पालिका की अधिशासी अधिकारी, जेई और सुपरवाइजर समेत सम्बन्धित अधिकारियों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया है। इस गैलरी का लैंटर 15 दिन पहले ही खोला गया था। इतना ही नहीं अभी इसका लोकार्पण भी नहीं हुआ था। गिरफ्तार ठेकेदार काे गाजियाबाद नगर निगम और मुरादनगर नगर पालिका में काफी रसूखदार माना जाता है। किसी भी निर्माण कार्य में ठेकेदार से लेकर ऊपर तक के अधिकारी शामिल रहते हैं। निर्माण के समय भी तमाम तरह की जांच-पड़ताल के ​नियम हैं। निर्माण कार्य में सामान की गुणवत्ता तक को परखना जरूरी होता है लेकिन श्मशान घाट में बनी इस गैलरी में कितनी खराब सामग्री का इस्तेमाल किया गया इसे हादसा स्थल की तस्वीरों से समझा जा सकता है। गिरी हुई छत की तस्वीरों से पता चलता है कि निर्माण में कितनी घटिया किस्म का सामान इस्तेमाल किया गया है। सीमेंट और बालू का मसाला एक चूरा के सिवाय कुछ नहीं नजर आ रहा। सवाल यह है कि इतने सारे नियम कानून होने के बावजूद भ्रष्टाचार इतना क्यों फैला हुआ है। कोई भी भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा होने को तैयार नहीं है। इस गैलरी के निर्माण कार्य में घटिया सामग्री के इस्तेमाल की शिकायत भी की गई थी तब भी कोई जांच-पड़ताल नहीं हुई। श्मशान की छत भ्रष्टाचार की छत थी।
गिरी हुई छत सवाल कर रही है कि क्या किसी के भीतर पैसे की भूख इतनी ज्यादा हो सकती ​है कि उसे इस बात की कोई चिंता नहीं कि उसके लालच और भ्रष्टाचार की वजह से कितने लोग असमय ही काल का ग्रास बन सकते हैं। गिरी हुई छत इस बात का प्रमाण है कि सरकारी या स्थानीय निकायों में निर्माण कार्य का ठेका देने से लेकर समूची प्रक्रिया किस हद तक भ्रष्टाचार का शिकार है। देशभर में हर क्षेत्र में माफिया काम कर रहे हैं। कहीं टैंडर माफिया सक्रिय हैं तो कहीं खनन माफिया, कहीं कोल माफिया तो कहीं बिल्डर माफिया। निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार और लापरवाही की वजह से हादसे होना कोई नया नहीं है। जिस देश में उद्घाटन वाले पुल तक भी बहते रहे हैं। यह छत तो 55 लाख के टैंडर से बनी थी, करोड़ों की परियोजनाओं में कितने फीसदी भ्रष्टाचार होता है, यह सब लोग जानते हैं। यद्यपि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने आरोपिओ पर सख्त कार्रवाई के आदेश दिए हैं। आरोपियों पर रासुका लगाने और नुक्सान की भरपाई भी ठेकेदार और इंजीनियर से करने के लिए भी कदम उठाने की बात की जा रही है। मुख्यमंत्री ने मृतकों के परिजनों को दस-दस लाख, जिनके पास अपना घर नहीं, उन्हें आवास उपलब्ध कराने का ऐलान किया है, परन्तु सवाल उठता है कि परिजनों के आंसू  उम्र भर इससे सूख पाएंगे। पूर्व में हुए ऐसे हादसों के बाद की गई कार्रवाई कभी उदाहरण नहीं बनी।
दिन बीतने के साथ-साथ जन आक्रोश ठंडा हो जाता है और आरोपी कानूनी पेचीदगियों का सहारा लेकर बच निकलते हैं। मृतकों के परिजनों को मुआवजा बांट कर मौत की कीमत चुका दी जाती है। दोषीओ  के खिलाफ कार्रवाई की घोषणा कर सभी औपचारिकताये पूरी कर ली जाती हैं। फिर जांच को छिन्न-भिन्न किया जाता है। जिस महिला ईओ के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है, उस पर पहले भी अपने चहेतों को टैंडर देने के आरोप लग चुके हैं। इसी बात को लेकर नगर ​पालिका अध्यक्ष और ईओ के बीच एक महीने तक विवाद रहा था। बड़े स्तर पर ईओ को हटाने की मांग की गई थी। उस पर नगर पालिका के लिए खरीदे गए उपकरणों में भी अनियमितता के आरोप लगे थे।
आश्चर्य की बात तो यह है कि आरोपों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई क्योंकि भ्रष्टाचार के हमाम में सब नंगे हैं। हादसे के बाद यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने फैसला किया है कि किसी भी निर्माण कार्य की तीन बार जांच की जाएगी। अगर निर्माण कार्य में गुणवत्ता खराब पाई जाती है  तो ठेकेदार को ब्लैक लिस्ट कर दिया जाएगा। अगर मुरादनगर नगर पालिका हादसे से पहले सतर्क रहती तो हादसा होता ही नहीं और बेशकीमती जानें नहीं जातीं। गिरी हुई छत सवाल कर रही है कि क्या दोषियों को दंड मिलेगा या नहीं। इस हादसे को महज हादसा करार नहीं दिया जा सकता क्योंकि यह निर्दोष लोगों की हत्या का मामला है।

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