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मोहन भागवत का सवाल?

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कश्मीर वादी में आतंक की जड़ों को मजबूत होते देख सुरक्षा बलों द्वारा चलाए गए ‘ऑपरेशन ऑल आउट’ में काफी कामयाबी मिल रही है। जून 2017 के महीने में सुरक्षा बलों ने कश्मीर के आतंकियों की एक लिस्ट तैयार की थी। इसमें 12 आतंकी कमांडरों के नाम थे। इन आतंकी कमांडरों में केवल दो ही जीवित हैं। सेना और अन्य सुरक्षा बलों के लिए आतंकियों की संख्या कोई मायने नहीं रखती, ऐसे में आतंकी कमांडरों का खात्मा उनके लिए बड़ी सफलता है। एक कमांडर का खात्मा करके सेना 100 नए युवाओं को आतंकी बनने से रोक देती है। ऑपरेशन ऑल आउट से पाकिस्तान भी बौखलाया हुआ है और आतंकवादियों में भी खलबली मची हुई है वहीं जम्मू-कश्मीर के कुछ राजनीतिक दलों में बेचैनी साफ देखी जा रही है।

पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती मारे जा रहे आतंकवादियों को कश्मीर के बच्चे बता रही है। उनके घरों में जाकर उनके परिजनों को सांत्वना देती है। उमर अब्दुल्ला, फारूक अब्दुल्ला औरउनकी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के अन्य नेता राज्य में सत्ता मिलने पर ऑपरेशन ऑल आउट रोकने का वादा कर रहे हैं। यह सब सियासत का हिस्सा है। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा है कि ‘‘आतंकवादियों के खिलाफ सुरक्षा अभियान के विरोध में बोलना राजनीतिज्ञों की राजनीतिक मजबूरी होती है लेकिन जब एक आतंकवादी फायरिंग करता है या कोई विस्फोट करता है तो हम उसे फूल या गुलदस्ता नहीं देंगे। हमारी तरफ से हमने कोई ऑपरेशन ऑल आउट नहीं चलाया है। आतंकियों को यह रास्ता छोड़ देना चाहिए क्योंकि इससे कुछ हासिल नहीं होगा।

इस देश के लोग वोट के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।’’ राज्यपाल की बात भी सही है कि आतंक को खत्म करने के लिए सुरक्षा बलों को मुंहतोड़ जवाब देना ही सही है। सुरक्षा बलों को आतंकवादियों की गोली का जवाब गोली से ही देना पड़ता है। पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस को कश्मीर घाटी में ऐसा माहौल तैयार करना चाहिए ताकि कश्मीर अवाम के युवा बंदूक थामे ही नहीं, वे हिंसा का रास्ता छोड़ें तो किसी ऑपरेशन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। साल 2018 के अन्त तक सेना ने 250 आतंकियों को मार गिराया है। दूसरी ओर आतंकवाद से जूझते शहीद हो रहे जवान भी भारत मां के बेटे हैं, उनकी शहादत पर जम्मू-कश्मीर में सक्रिय सियासतदान क्यों आंसू नहीं बहाते? सीमाओं की रक्षा करते जवान शहीद हो रहे हैं। आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान जवान अपनी शहादतें दे रहे हैं। तिरंगों में लिपटे उनके शव जब उनके पैतृक आवास पर पहुंचते हैं तो हजारों लोग नम आंखों से उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।

भारत माता की जय के उद्घोष के बीच उन्हें अन्तिम विदाई दी जाती है। भारतीय सेना के जवान अपनी जान पर खेलकर देश और राज्य के आम नागरिकों की रक्षा करते हैं। आतंकियों के साथ मुठभेड़ के समय स्थानीय पत्थरबाज सेना का विरोध करते हैं। सेना संयम से काम लेते हुए इस बात का पूरा ध्यान रखती है कि स्थानीय लोगों को चोट नहीं पहुंचे। आतंकियों के हमदर्द पत्थरबाज इस बात को नहीं समझते कि सेना उनकी ही सुरक्षा के लिए है। आतंकी वारदातों में उनके ही अपने मरते हैं। सेना के जवान हमारी आजादी के रखवाले हैं। अपने सीने पर गोली खाने को वह हमेशा तैयार रहते हैं।

दुश्मन को धूूल चटाने का जज्बा उनमें है,
मिट्टी का कर्ज चुकाने का हौसला उनमें है,
जब भी जिक्र आता है उनके त्याग का तो,
अहसास प्रबल हो जाता है उनके सम्मान का।

आंकड़े बताते हैं कि पिछले चार वर्षों में जम्मू-कश्मीर की आतंकी वारदातों और सीमाओं पर गोलीबारी के चलते लगभग 300 से ज्यादा जवानों को अपनी शहादत देनी पड़ी। पाकिस्तान सीमाओं पर लगातार युद्ध​विराम का उल्लंघन कर रहा है। शहादत देने वाले जवानों की संख्या हमारे लिए चिन्ता का विषय होनी चाहिए।

इसी बीच सरसंघचालक मोहन भागवत ने नागपुर में आयोजित कार्यक्रम में सवाल उठाया है कि जब किसी के साथ युद्ध नहीं हो रहा तो फिर सीमा पर सैनिक शहीद कैसे हो रहे हैं? उन्होंने कहा कि जब देश को अंग्रेजों से आजादी नहीं मिली थी तो उस दौरान वतन की स्वतंत्रता के लिए जान कुर्बान कर देने का दौर था या फिर आजादी के बाद अगर कोई युद्ध हुआ या होता है तो वहां भी सीमा पर दुश्मनों से लड़ते हुए सैनिक अपनी जान की बाजी लगाते हैं। युद्ध के दौरान सैनिकों की शहादत होती है, लेकिन जब इस समय हमारे देश में कोई युद्ध नहीं हो रहा और फिर भी सेना के जवान शहीद हो रहे हैं तो इसका मतलब यह है कि हम अपना काम सही ढंग से नहीं कर रहे। उन्होंने आह्वान भी किया कि सीमा पर जवानों की शहादत रोकने के लिए कदम उठाए जाने चाहिएं।

संघ प्रमुख ने जो सवाल उठाया है ​वह काफी महत्वपूर्ण हैै। पाकिस्तान की गोलीबारी लगातार हमारे जवानों का खून बहा रही है। यह सही है कि भारतीय सेना भी मुंहतोड़ जवाब दे रही है और दुश्मन देश के सैनिक भी मार गिराए जा रहे हैं लेकिन हमारे जवान देश के लिए बहुमूल्य हैं। उनकी जान को सस्ता नहीं समझा जाना चाहिए। मोहन भागवत के सवाल ने नई बहस का मौका जरूर दिया है। अब तो पाकिस्तान जवानों को मारने के लिए स्नाइपर्स का इस्तेमाल भी करने लगा। सीमांत गांवों में पाकिस्तानी गोलीबारी के चलते दहशत का माहौल है। रक्षा मंत्रालय, भारतीय सेना और केन्द्र सरकार को इस तरफ ध्यान देना होगा और अपने जवानों की रक्षा के लिए नई रणनीति बनानी होगी।

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