रेलवे सुरक्षा कवच पर सवाल - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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रेलवे सुरक्षा कवच पर सवाल

भारत का रेल नेटवर्क आम जनता का लाइफ लाइन माना गया है जिसमें रोजाना करोड़ों यात्री सफर करते हैं। सामान्य जनजीवन में ट्रेनों की अहमियत कभी कम नहीं होती, क्योंकि नौकरीपेशा से लेकर आर्थिक रूप से सम्पन्न लोग भी ट्रेनों से वास्ता रखते हैं।

भारत का रेल नेटवर्क आम जनता का लाइफ लाइन माना गया है जिसमें रोजाना करोड़ों यात्री सफर करते हैं। सामान्य जनजीवन में ट्रेनों की अहमियत कभी कम नहीं होती, क्योंकि नौकरीपेशा से लेकर आर्थिक रूप से सम्पन्न लोग भी ट्रेनों से वास्ता रखते हैं। वर्ष 2016-17 के बाद पिछले करीब सात वर्षों से ट्रेन हादसों पर विराम लग गया था। रेल नेटवर्क का लगातार विस्तार हो रहा था। आधुनिक सुविधाओं से लैस आरामदेह नई ट्रेनें पटरियों पर दौड़ रही हैं जिससे यात्रियों का आना-जाना काफी सहज हो गया है। भारतीय रेलवे ने यात्रियों को दी जाने वाली सुविधाओं में लगातार बढ़ौतरी की है और ट्रेनों और यात्रियों की सुविधा के लिए रेल मंत्रालय लगातार नई-नई तकनीक पर काम कर रहा है लेकिन 2 जून की शाम करीब सात बजे ओडिशा के बालासोर के पास दो यात्री ट्रेनों और एक मालगाड़ी में हुई भीषण टक्कर में 290 के करीब यात्रियों की मौत और 900 के लगभग यात्रियों के घायल होने से रेलवे की सुरक्षा कवच स्कीम पर अनेक प्रश्न चिन्ह खड़े हो गए हैं। चारों तरफ करंदन, कानों को चीर देने वाली आवाजें, हर तरफ कटी, दबी लाशें भयानक मंजर के दृश्य टीवी चैनलों पर देख दिमाग सुन्न होने लगता है। किसी ने अपने मां-बाप खोये तो किसी ने अपने बहन-भाई या रिश्तेदार, किसी के पांव कट गए तो किसी के हाथ। लोग बदहवास होकर अपने परिजनों को खोज रहे हैं।
 हालांकि हादसे के बाद सेना और आपदा राहत दल के जवान तेजी से काम कर रहे हैं लेकिन इस भयानक मंजर के चश्मदीद सारी उम्र इसे भुला नहीं पाएंगे। इस भयंकर दुर्घटना ने रेलतंत्र की कमियों को फिर से उजागर कर ​दिया है। रेल हादसों पर हमारे पास पुराना इतिहास है। हर हादसे के बाद यात्रियों के परिजनों को मुआवजा देने की घोषणा कर दी जाती है लेकिन मुआवजे का यह मरहम हादसों को रोकने का विकल्प नहीं हो सकता। इस रेल दुर्घटना में भी ऐसा ही होगा। मृतकों के परिजनों काे मुआवजा देकर जिन्दगी फिर उसी मोड़ पर चलने के लिए छोड़ दी जाएगी। जिन लोगों की जानें गई हैं उनके परिजनों के दर्द का कोई दूसरा अंदाजा नहीं लगा सकता। 
अब सवाल यह है कि तीन ट्रेनें एक ही समय पर कैसे टकरा गईं। हावड़ा जा रही सुपर फास्ट एक्सप्रेस के कई डिब्बे पटरी से उतर गए और दूसरी लाइन पर जा गिरे। पटरी से उतरे यह डिब्बे चेन्नई जा रही शालीमार चेन्नई कोरोमंडल एक्सप्रेस से टकरा गए। इनमें से मालवाहक ट्रेन भी आकर इनसे भिड़ गई। यह भी कहा जा रहा है कि ट्रेन में टक्कर रोधी उपकरण नहीं लगा था। दरअसल चालक ट्रेन को कंट्रोल रूम के निर्देश पर चलाता है और कंट्रोल रूप से संदेश पटरियों पर ट्रैफिक को देखकर दिया जाता है। हर रेलवे कंट्रेल रूम में बड़ी सी डिस्प्ले लगी होती है, जिस पर दिख रहा होता है कि कौन सी पटरी पर ट्रेन है और कौन सी पटरी खाली है। केन्द्रीय रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव ने घटना स्थल पर जाकर पूरी स्थिति का जायजा लिया और जांच के आदेश दिए। जांच के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जाएगा कि हादसे के कारण क्या थे? 
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने राज्यसभा में कहा था कि भारतीय रेलवे की दुर्घटना रोधी प्रणाली ‘कवच’ को चरणबद्ध तरीके से देशभर में लागू किया जा रहा है। आरडीएसओ यानी रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन के प्लान के तहत दक्षिण मध्य रेलवे पर 1,455 रूट किलोमीटर पहले ही कवर किए जा चुके हैं। देशभर में इस संगठन की तरफ से काम तेजी से चल रहा है। दरअसल देश में रेल मार्गों पर दुर्घटनाओं से बचने के लिए रेलवे बोर्ड ने 34,000 किलोमीटर रेल मार्ग के साथ कवच प्रौद्योगिकी को मंजूरी दी थी। इसका लक्ष्य मार्च 2024 तक देश की सबसे व्यस्त ट्रेन लाइनों पर कवच प्रौद्योगिकी स्थापित करना है। कवच की अनूठी विशेषता यह है कि इसका उपयोग करने से ट्रेनें आमने-सामने या पीछे से नहीं टकराती। कवच ऐसी परिस्थितियों में ट्रेन को अपने आप पीछे की ओर ले जाता है। कवच तकनीक को स्थापित करने के लिए साल 2021-22 में 133 करोड़ रुपये रिलीज किए गए। वहीं साल 2022 2023 में कवच की स्थापना के लिए 272.30 करोड़ का बजट अलग से रखा गया।
इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय रेलवे ट्रेन सुरक्षा और चेतावनी प्रणाली मजबूत बनाने का काम कर रही है लेकिन जब हम देश में बुलेट ट्रेन चलाने के सपने देख रहे हैं तो हमें ऐसे रेल सुरक्षा कवच की जरूरत है जिससे दुर्घटनाएं न हों और लोगाें की यात्रा सुखद साबित हो। इसके अलावा पटरियों के रखरखाव और अन्य व्यवस्थाओं पर भी ध्यान देना जरूरी है ताकि रेल ​सिस्टम कराहता नजर न आए।

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