कोरोना वायरस को मात देने के लिए लागू किया गया लाॅकडाऊन 14 अप्रैल तक जारी रहेगा और इस दौरान भारत के लिए चिन्ता की बात यह है कि अभी तक इस महामारी से संक्रमिक लोगों की साढे़ तीन हजार के लगभग संख्या में से तबलीगी जमात के इज्तमा में शामिल होने वाले लोगों की तादाद लगभग आधी है।
तबलीगी इज्तमा में शामिल होने के बाद पूरे देश में फैल गये क्योंकि ये विभिन्न राज्यों से दिल्ली के निजामुद्दीन में आये थे। अभी मुख्य जिम्मेदारी यह है कि इस बीमारी को इज्तमा में शामिल जमातियों से दूसरे लोगों में फैलने से रोका जाये। इसी वजह से सरकार के चिकित्सा कर्मचारियों से लेकर पुलिस बल के लोग उन लोगों की निशानदेही कर रहे हैं जिनके जमातियों के सम्पर्क में आने का अन्देशा है।
इस बारे में पहले भी आगाह किया गया है कि तबलीगी जमात इस्लाम के कट्टरपंथी वहाबी फिरके से सम्बन्ध रखती है जो दकियानूसी रवायतों को वक्त से ऊपर मान कर चलती है मगर वक्त कभी किसी का इन्तजार नहीं करता और अपना रंग दिखा कर ही मानता है।
कोरोना वायरस ने सभी रवायतों को चुनौती देते हुए जो तस्वीर पेश की है उसमें कोई भी आदमी सबसे पहले इंसान है और उसके बाद हिन्दू या मुसलमान है। इससे भी बड़ा चैलेंज इसने यह फैंका है कि दुनिया का ताकतवर से ताकतवर मुल्क अपने सरमाये और फौजों की अकड़ लेकर बैठा रह सकता है मगर इसके कहर से बचने के लिए उसे वही रास्ता अपनाना होगा जो कोई कमजोर या गरीब मुल्क अपनाता है।
अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश अपने फौजी असले के जखीरे के साथ दुनिया में अपना सानी नहीं रखता और इसकी मुद्रा डालर दुनिया के सभी देशों की मुद्राओं को अपने दमदार रुतबे की बदौलत बेदम तक करने की कूव्वत रखती है, मगर कोरोना का सबसे ज्यादा कहर इसी मुल्क पर होने से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि कोरोना ऐसा छिप कर वार करने वाला दुश्मन है जिसके खिलाफ न फौज कुछ कर सकती है और न सरमाये की ताकत।
बेशक अमेरिकी डालर का भाव बढ़ रहा है मगर कोरोना का शिकार होने वाले लोगों की संख्या भी सबसे ज्यादा इसी मुल्क में होती जा रही है। इसका मुकाबला सिर्फ लोगों की ‘अलहदगी’ के नुस्खे से ही हो सकता है और भारत ने इसी नुस्खे पर समय पर अमल करके पूरे देश में संक्रमिक लोगों की संख्या को सीमित रखने में कामयाबी हासिल की लेकिन बीच में तबलीगी जमात का सिलसिला जुड़ने की वजह से यह संख्या एक हफ्ते के भीतर ही दुगनी हो गई।
इसलिए जमात के लोगों को समझना चाहिए कि जिस दुश्मन का मुकाबला अमेरिका जैसा देश करने में पसीना बहा रहा है वे उसे अपनी दकियानूसी जहनियत से कैसे पछाड़ सकते हैं। कोरोना दुश्मन की ताकत इस कदर तूफानी है कि इसने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला कर रख दिया है। इसकी वजह से खरबों डालर का नुकसान अभी तक हो चुका है और इटली व स्पेन जैसे मुल्कों की जड़ें हिल गई हैं।
भारत ने सिर्फ 21 दिन का लाॅकडाऊन करके इस छिपे हुए दुश्मन का अभी तक सफलतापूर्वक मुकाबला किया है। हालांकि दिक्कतें बहुत ज्यादा दरपेश हैं जिनका हल जल्दी ही ढूंढना होगा और गांवों से लेकर शहरों तक में कारोबारी व कारखानों और कम्पनियों का चक्का तेजी से घुमाना होगा।
इसकी तैयारी रक्षा मन्त्री श्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में गठित मन्त्रिमंडलीय समूह या कमेटी द्वारा बहुत एहतियात के साथ की जा रही है। काबिले गौर हकीकत यह है कि भारत में कोरोना सामुदायिक दर्जे पर नहीं फैल पाया अर्थात एक आदमी से दूसरे आदमी को यह संक्रमण नहीं पहुंच पाया और तबलीगियों को छोड़ कर केवल उन्हीं लोगों में फैल पाया जो विदेशी नागरिकों के सम्पर्क में आये थे।
उन लोगों को अलग-थलग या एकान्तवास में पहुंचा कर हमने कोरोना के प्रसार को थामने में किसी हद तक सफलता हासिल कर ली, परन्तु अर्थ व्यवस्था पर जो इसका असर हुआ है उसे थामने में हम असमर्थ इसलिए रहे कि अलहदगी के नुस्खे की वजह से सभी उत्पादन गतिविधियां बन्द करनी पड़ीं। अब इन्हें पुनः शुरू करने के इन्तजाम माननीय राजनाथ सिंह के नेतृत्व में खोजने की कवायद शुरू हो गई है।
भारत के कुल 700 से अधिक जिलों में से दो सौ के करीब ही ऐसे जिले हैं जिनमें कोरोना से लोग संक्रमिक हुए हैं। अतः इन जिलों में सामान्य गतिविधियां इस प्रकार 14 अप्रैल के बाद शुरू हो सकती हैं कि उन पर संक्रमित लोगों के जिलों की छाया न पड़ पाये लेकिन यह कार्य बहुत मुश्किल और जटिल है क्योंकि लोगों का एक जिले से दूसरे जिले में आना-जाना बन्द नहीं किया जा सकता है।
राजनाथ समूह या कमेटी इन सब तथ्यों पर गौर करने के बाद ही कोई फैसला लेगी। कहीं फसलों की कटाई के लिए मजदूरों की कमी को दूर करने के प्रयास भी इसमें शामिल होंगे और जो मजदूर या कामगार शहरों में ही रह गये हैं उनकी खाद्य व वित्तीय सुरक्षा को भी मजबूत करना होगा जिससे वे उत्पादनशील गतिविधियों में लगने के लिए बेफिक्र होकर आगे आ सकें।
राजनाथ सिंह भी जमीन के नेता हैं और वे भारत की इस हकीकत को जानते हैं कि इसकी 60 प्रतिशत के लगभग आबादी लम्बे लाॅकडाऊन को बर्दाश्त नहीं कर पायेगी इसलिए ऐसे उपाय खोजने होंगे जिनसे कुछ राहत की सांस निकलती हो। रक्षा मन्त्री ये उपाय खोजने में ही आजकल लगे हुए हैं।
यह मोदी सरकार की चौतरफा सावधान रहते हुए कोरोना को परास्त करने की रणनीति है जिससे लाॅकडाऊन को सफल बनाते हुए आगे का साफ रास्ता तैयार किया जा सके और आर्थिक गतिविधियों को पटरी पर लाया जा सके, मगर यह जरूर ध्यान रखना होगा कि दैनिक दिहाड़ी करने वाले करोड़ों कामगारों को लाॅकडाऊन अवधि की दिहाड़ी मिले। सरकार को इसके पुख्ता इन्तजाम करने होंगे और देखना होगा कि लाॅकडाऊन की वजह से किसी की नौकरी भी न जाये।