दक्षिण भारत की राजनीति में हमेशा ही फिल्मी दुनिया के लोग छाये रहे हैं। 1977 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर काबिज होने वाले अन्नाद्रमुक प्रमुख एमजी रामचन्द्रन तमिल सिनेमा के लोकप्रिय अभिनेता थे। वह 1977 से 1987 तक मुख्यमंत्री रहे। उनकी शिष्या अभिनेत्री रहीं जयललिता 1991 से 1996, 2001 में 2002 से 2006 तक और 2011 से 2014 तक मुख्यमंत्री पद पर रहीं। 2016 में एक बार फिर उन्हें तमिलनाडु का मुख्यमंत्री चुना गया। इसके अलावा द्रमुक (द्रविड़ मुनेत्र कडगम) प्रमुख करुणानिधि भी तमिल फिल्मों के पटकथा लेखक थे। वह भी मुख्यमंत्री पद पर रहे। इन सभी का तमिलनाडु की जनता ने खुली बाहों से स्वागत किया। राज्य के लोगों का दो चीजों से बड़ा जुड़ाव है, वह है-राजनीति और सिनेमा। जब दोनों एक साथ जुड़ जाती हैं तो सोने पर सुहागा हो जाता है।
तमिलनाडु की खास बात यह है कि वहां रील लाइफ हीरो रियल लाइफ के हीरो बन जाते हैं। लोग जयललिता को देवी की तरह पूजते थे और अम्मा कह कर सम्मान देते थे। उनकी मौत के बाद उनके कई समर्थकों ने आत्महत्याएं भी कीं। तमिलनाडु की जनता का अपने सिनेमा और राजनीति के स्टार के लिए प्यार है और जुनून भी है। ऐसा कई बार देखा गया कि दक्षिण भारत के सुपर स्टार रजनीकांत के जन्मदिन पर लोग उनके आदमकद पोस्टर बनवाते हैं। उनके ऊपर दूध, फूल माला चढ़ा कर उनकी पूजा करते हैं। जब भी उनकी नई फिल्म रिलीज होती है तो लोग रात को ही सिनेमाघरों के आगे लाइन लगा लेते हैं।
अब रजनीकांत ने अपनी नई पार्टी लांच कर राजनीति में एंट्री मार ली है। यद्यपि उन्होंने पार्टी के नाम का ऐलान तो नहीं किया लेकिन राजनीति को लेकर अपनी योजनाएं जरूर बनाईं। उनका कहना है कि उन्होंने कभी मुख्यमंत्री पद का सपना नहीं देखा, वे सिर्फ राजनीति में बदलाव चाहते हैं। वे एक ऐसी पार्टी बनाना चाहते हैं जिसमें सरकार और पार्टी प्रमुख अलग-अलग होंगे और अलग-अलग काम करेंगे। रजनीकांत ने कहा कि तमिलनाडु की राजनीति में दो नए खिलाड़ी थे जयललिता और करुणानिधि। लोगों ने दोनों का बड़ा सम्मान किया लेकिन दोनों के अवसान के बाद राजनीति में शून्य यानी खालीपन आ चुका है। बदलाव के लिए एक बड़ा आंदोलन शुरू करना होगा। उन्होंने राजनीति में ऐसी व्यवस्था करने का संकल्प लिया जो उसे भ्रष्टाचार मुक्त बनाएगी।
अभिनेता कमल हासन पहले ही अपनी राजनीतिक पार्टी बना चुके हैं। तमिलनाडु की द्रविड़ राजनीति और तमिल अस्मिता का कॉकटेल राज्य में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों की सफलता में सबसे बड़ी बाधा है। यहां की राजनीति क्षेत्रवाद और द्रविड़-आर्य आधारित राजनीति पर केन्द्रित रही है। जिसका तोड़ निकाले बिना भाजपा या कांग्रेस के लिए राजनीतिक घुसपैठ करना काफी मुश्किल रहा है। यही कारण रहा कि राज्य में अन्नाद्रमुक और द्रमुक का ही शासन रहा। क्षेत्रीय अस्मिता के उफान में इन दोनों क्षेत्रीय पार्टियों ने अपने आप को राज्य तक सीमित कर लिया । दोनों दलों की आपसी रंजिश ने भी िसयासत को नए आयाम दिए। तमिलनाडु में कभी के. कामकाज जैसे कद्दावर नेता कांग्रेस के पास थे लेकिन पार्टी पिछले कई दशकों से राज्य की राजनीति में हाशिये पर है। द्रमुक यूपीए में कांग्रेस की सहयोगी पार्टी रह चुकी है। भाजपा अभी भी तमिलनाडु में हाथ-पांव मार रही है। अभिनेता कमल हासन का जोर द्रविड़ राजनीति पर है, वो द्रविड़ विचारधारा को लेकर चल रहे हैं। रजनीकांत सियासत में बदलाव चाहते हैं।
विडम्बना यह भी है कि रजनीकांत का झुकाव भाजपा की तरफ है। वह पहले भी कह चुके हैं कि वह आध्यात्मिक राजनीति करेंगे जबकि कमल हासन भाजपा के धुर विरोधी हैं। अब सवाल यह है कि रजनीकांत क्या एमजीआर, जयललिता और करुणानिधि जैसा कद प्राप्त कर पाएंगे। एमजीआर से मिलने जाने वाले लोग कभी उनसे निराश नहीं लौटते थे। उन्होंने गरीबों, मजदूरों की जमकर सेवा की। जयललिता ने भी पार्टी का संगठनात्मक ढांचा खड़ा करने में बहुत मेहनत की लेकिन वह अकूत धन हासिल करने की लालसा का शिकार हो गई। इसमें कोई संदेह नहीं कि राज्य के लोगों को सस्ता भोजन, सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराने और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के चलते उन्हें जनता ने बहुत बड़ा सम्मान दिया। करुणानिधि ने तमिलनाडु के गांव-गांव का दौरा किया। राज्य में बाढ़ और सुनामी जैसी आपदाओं में वह जनता के साथ खड़े दिखाई दिए। 90 वर्ष की आयु में भी करुणानिधि राजनीति में सक्रिय रहे। विधानसभा चुनावों में उन्होंने लगातार रैलियां कीं। प्रशंसकों के बीच थलाइवा नाम से मशहूर रजनीकांत क्या जनता के बीच जाकर इतना सीधा संवाद स्थापित कर पाएंगे जितना तमिलनाडु के दिग्गज नेताओं ने किया हुआ था? यह सब बातें भविष्य के गर्भ में हैं लेकिन इतना तय है कि रजनीकांत जो भी करेंगे वह ब्लाकबस्टर की तरह ही होगा।
तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव अगले वर्ष में होने हैं तब तक रजनीकांत के पास पर्याप्त समय है कि वह जनता के बीच जाएं और उसका विश्वास हासिल करें। रजनीकांत में जनता को अपनी तरफ खींचने की क्षमता है और वह राजनीति में अपनी छाप छोड़ सकते हैं। अगर वह जन-जन की आवाज बनते हैं तो राज्य में एक नई पार्टी का उदय होगा। भाजपा ने रजनीकांत को बहुत लुभाने की कोशिश की थी लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया था। सवाल यह भी है कि क्या भविष्य में रजनीकांत और कमल हासन एक साथ आ सकते हैं। देखना होगा कि भविष्य में सियासी समीकरण क्या बैठते हैं। फिलहाल तमिलनाडु की राजनीति में एक और स्टार का प्रवेश हो चुका है। उनकी विचारधारा क्षेत्रवाद की संकुचित मानसिकता से काफी ऊपर है। राज्य में राष्ट्रवादी विचारधारा का जो अकाल पड़ा हुआ है उसमें रजनीकांत की विचारधारा एक नई जान डाल सकती है।