रक्षा मन्त्री श्री राजनाथ सिंह ने लद्दाख में भारत-चीन सीमा क्षेत्र में पहुंच कर साफ कर दिया है कि भारत रणनीतिक ‘कौशल’ के साथ ही कूटनीतिक ‘कर्ण प्रियता’ पर भरोसा रखने वाला देश है जिससे दूसरे किसी देश के साथ उसका कोई भी विवाद हल किया जा सके। चीन के साथ पिछले तीन महीने से लद्दाख क्षेत्र में जो तनाव का माहौल बना हुआ है उसे समाप्त करने के लिए भारत दृढ़ता के साथ आगे इस तरह बढ़ना चाहता है कि उसके आत्म सम्मान पर कोई आंच न आ पाये लेकिन रक्षा मन्त्री का यह कहना अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि चीन के साथ सैनिक व कूटनीतिक वार्ताओं का दौर जारी है जिसके चलते विवाद का हल निकलना चाहिए मगर वह इस बात की गारंटी नहीं दे सकते कि इसका अन्तिम परिणाम क्या निकलेगा?
भारत की संसदीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा की गारंटी देशवासियों को देना रक्षा मन्त्री का ही प्रथम दायित्व होता है। लद्दाख पहुंच कर माननीय राजनाथ सिंह ने अपनी इसी जिम्मेदारी को निभाया है और 130 करोड़ देशवासियों को आश्वस्त किया है कि भारत की एक इंच भूमि भी किसी को हड़पने नहीं दी जायेगी। वैसे गौर से देखा जाये तो चीन के कब्जे में 1962 से ही अक्साई चिन की 40 हजार वर्ग कि.मी. भूमि है और 1963 में पाक अधिकृत कश्मीर की लगभग 500 वर्ग कि.मी. और भूमि का कब्जा हुआ, जो कि पाकिस्तान ने अपनी ‘जागीर’ समझ कर उसे ‘तोहफे’ में दे दी। अतः फिलहाल लद्दाख के जिस क्षेत्र पेंगोंग झील और अक्साई चिन से लगते देपसंग पठार के सपाट इलाकों में चीनी सेनाएं भारतीय क्षेत्र में घुसी हुई हैं उन्हें वहां से खदेड़ना बहुत जरूरी है। पेंगोंग झील के किनारे से होते हुए चुशुल के रास्ते भारत ने दौलतबेग ओल्डी तक सड़क का निर्माण किया है जो इस क्षेत्र में तैनात हमारी फौजों की जीवन रेखा कही जा सकती है क्योंकि दौलतबेग ओल्डी का इलाका उस काराकोरम क्षेत्र से मिलता है, जिसे 1963 में पाकिस्तान ने चीन को भेंट में दिया था। यहीं पर भारतीय फौजों ने दुनिया के सबसे ऊंचे हैलीपैड का निर्माण किया है जिससे चीन के साथ ही पाकिस्तान पर भी निगाह रखी जा सके। काराकोरम में चीन ने सत्तर के दशक तक ही दुनिया की सबसे ऊंची सड़क का निर्माण कर लिया था। राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भारत के लिए यह क्षेत्र अति संवेदनशील और महत्वपूर्ण है। अतः रक्षामन्त्री ने साफ कर दिया है कि पूरी दुनिया में भारत एकमात्र ऐसा देश है जो संसार के सभी लोगों को अपना परिवार मानता है (वसुधैव कुटुम्बकम्) परन्तु इसका मतलब यह नहीं निकाला जाना चाहिए वह अपनी भौगोलिक सीमाओं के बारे में एक इंच का भी समझौता कर सकता है। शान्ति प्रियता का यह मतलब नहीं होता कि हम अपने वाजिब हक के प्रति ही उदासीनता का भाव अपने मन में आने भर भी दें। राजनाथ सिंह का लद्दाख में सैनिकों के बीच यह कहना कि राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा हेतु भारत के 130 करोड़ देशवासी फौज के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर खड़े हैं, बताता है कि चीन की सीनाजोरी के खिलाफ आम भारतीयों के मन में किस कदर रोष है।
रक्षा मन्त्री ने लद्दाख की धरती पर खड़े होकर जन भावनाओं का ही प्रदर्शन किया है और इस तरह किया है कि चीन की समझ में यह आ जाये कि चाहे वार्ता की मेज हो या रणभूमि उसकी चालाकी किसी कीमत पर नहीं चलेगी। हर परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए भारतीय सेनाएं पूरी तरह हर समय तैयार हैं। राजनाथ सिंह की एक राजनीतिज्ञ के रूप में सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह तथ्यों की रोशनी में साफगोई पसन्द करने वाले सियासत दां हैं। एनडीए की पिछली सरकार में जब वह पूरे पांच साल गृह मन्त्री रहे तो आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर उन्होंने साफ कर दिया था कि आतंकवाद के लिए भारतीय समाज में लेशमात्र भी स्थान नहीं है। अतः इसे किसी विशेष धर्म के आइने में देखने की गलती जो भी करता है वह भारत के मूल को पहचानने में भूल करता है।
भारतीय संस्कृति सभी हिन्दू-मुसलमानों को राष्ट्रीय फलक पर ऐसा ‘एक तारा’ बनाती है जिसका ‘एक तार’ छेड़ने पर सात सुरों की रसीली फुहार बहने लगती है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों के बारे में भी एकाधिक बार स्पष्ट किया कि केवल कश्मीर ही हमारा नहीं बल्कि प्रत्येक कश्मीरी भी हमारा है। विचारों की स्पष्टता उनकी विशेषता मानी जाती है इसीलिए चीन के सन्दर्भ में भी उन्होंने यही तेवर दिखाते हुए साफ कर दिया कि मित्रतापूर्ण वातावरण में काम करोगे तो हमसे अच्छा मित्र नहीं मिलेगा मगर यदि दिल में फरेब रख कर पेश आओगे तो भारत का राष्ट्रीय गौरव और आत्म सम्मान इस तरह जागेगा कि होश ठिकाने आ जायेंगे मगर हकीकत यह है कि चीन के साथ सैनिक कमांडरों की वार्ता में अभी तक ‘देपसंग’ के पठार का मुद्दा नहीं उठा है जहां चीनी 18 कि.मी. तक भीतर घुस आये हैं जबकि पेंगोंग झील इलाके में वे आठ कि.मी. तक के क्षेत्र में गहरे तक घुसे हुए हैं। जाहिर है कि रक्षा मन्त्री के सामने ये तथ्य प्रकट हैं और यह भी स्पष्ट है कि इन्हीं तथ्यों की रोशनी में राजनाथ सिंह का लद्दाख से बयान आया है। इसका मतलब यही निकलता है कि चीन का यह दायित्व बनता है कि वह भारत के साथ हुए अपने सभी सीमा सम्बन्धी समझौतों का सच्ची नीयत से पालन करे और ऐसी स्थिति पैदा न होने दे जिससे कूटनीति को रणनीति में स्थानान्तरित होना पड़े। चीन की यह फितरत रही है कि वह सीमा पर स्थायी समझौतों से कन्नी काटता रहा है। यही वजह है कि केवल सीमा विवाद सुलझाने के लिए ही बने विशेष वार्ता तन्त्र की पिछले 15 साल में अभी तक 22 बैठकें होने के बावजूद एक इंच भी प्रगति नहीं हुई है। अतः चीन की नीयत को देखते हुए ही राजनाथ सिंह का समयोचित बयान आया है जिसमें चेतावनी भी निहित है।