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राष्ट्रीय लाॅकडाउन की प्रासंगिकता

कोरोना संक्रमण ने जो राष्ट्रीय संकट का माहौल पैदा किया है उससे निपटने के उपाय भी निश्चित रूप से राष्ट्रीय स्तर पर जरूरत के मुताबिक असाधारण कदम उठा कर ही किये जा सकते हैं।

कोरोना संक्रमण ने जो राष्ट्रीय संकट का माहौल पैदा किया है उससे निपटने के उपाय भी निश्चित रूप से राष्ट्रीय स्तर पर जरूरत के मुताबिक असाधारण कदम उठा कर ही किये जा सकते हैं। भारत इस समय पूरी दुनिया में कोरोना संक्रमण का केन्द्र बन चुका है और इसकी सभी चिकित्सीय सुविधायें महामारी को रोकने में अधूरी पड़ रही हैं। निश्चित रूप से यह चिकित्सा इमरजेंसी का दौर है जिसे आपातकालीन कदमों से ही नियन्त्रित किया जा सकता है। जिस प्रकार कोरोना संक्रमण के मामले प्रतिदिन बढ़ रहे हैं और विश्व रिकार्ड बना रहे हैं उसे देखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि देशभर की सरकारों के सभी अंग एकजुट होकर केवल इस महामारी की शृंखला को तोड़ने के प्रयासों में जुट जाये और देशवासियों की जान की रक्षा के लिए सभी कार्यक्रमों को किनारे करते हुए केवल कोरोना को हराने के प्रयास करें। इस राष्ट्रीय आपदा की घड़ी में सब कुछ इंतजार कर सकता है मगर मानव का जीवन इंतजार नहीं कर सकता क्योंकि अन्ततः यही जीवन किसी भी राष्ट्र का निर्माता होता है। जिस तरह कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या चार लाख से ऊपर पहुंच चुकी है उसे देखते हुए अब यह निर्णय लेने का वक्त आ गया है कि पूरे भारत में कुछ सप्ताहों के लिए पुनः ‘लाॅकडाउन’ लागू किया जाये जिससे इस संक्रमण की शृंखला को तोड़ा जा सके। यह समय नुक्ताचीनी करने का नहीं है बल्कि सभी मतभेद भुला कर भारतीयों की जान बचाने का है। जब सारी चिकित्सा सुविधाएं दम तोड़ रही हैं और लोग अस्पतालों में पड़े हुए आक्सीजन की गुहार लगा रहे हैं तथा मरीजों के लिए अस्पताल कम पड़ रहे हैं तो हमें उन उपायों की तरफ जल्दी ही ध्यान देना होगा जिससे संक्रमण की गति थम सके। 
संक्रमण की गति को थामने का एक तरीका अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन की सरकार के मुख्य चिकित्सा सलाहकार डा. अंथोनी एस फाकी ने बताया है कि भारत को तुरन्त पूरे देश में  लाॅकडाउन की घोषणा कर देनी चाहिए। डा. अंथोनी इससे पहले भी अमेरिका के सात राष्ट्रपतियों के साथ काम कर चुके हैं और विश्व के जाने-माने चिकित्सा प्रबन्धक हैं। उनकी राय का इसलिए सम्मान करने की जरूरत है क्योंकि राष्ट्रपति बाइडेन के सत्ता संभालने के बाद अमेरिका ने कोरोना संक्रमण पर सफलतापूर्वक नियन्त्रण किया है लेकिन ऐसी राय केवल अंथोनी की ही हो ऐसा नहीं है, भारत में भी बहुत से विशेषज्ञ हैं जो इस प्रकार की राय दे चुके हैं। फिलहाल हमने लाॅकडाउन लगाने या न लगाने का फैसला राज्य सरकारों पर छोड़ा हुआ है कि वे स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार  उचित फैसला लें। सामान्य परिस्थितियों में यह व्यवस्था उचित मानी जा सकती थी परन्तु अब हालात काबू से बाहर होते जा रहे हैं क्योंकि कोरोना का संक्रमण उत्तर प्रदेश जैसे घनी आबादी वाले राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों तक में पैर पसारता नजर आ रहा है और राज्य सरकार लगातार अपनी नाक ऊंची रखने के लिए इस हकीकत को नकार रही है कि इसके अस्पतालों में मरीजों के प्रवेश के लिए जगह नहीं बची है और आक्सीजन की किल्लत से लोग मर रहे हैं । 
लोकतन्त्र में तथ्यों को दबाने से स्थिति और ज्यादा भयावह होती है और लोगों को सच बोलने से डराने के लिए किया गया कोई दंडात्मक प्रावधान अन्ततः सत्ता के लिए ही दंडात्मक साबित होता है। चिकित्सा तंत्र मानवता की सेवा के अलावा और कुछ नहीं होता। अतः जब उत्तर प्रदेश में आक्सीजन की कमी साफ दिखाई दे रही है और रोज हजारों लोग मौत का शिकार हो रहे हैं तो सत्य किसी भी प्रकार न तो मृतकों की चिताओं की अग्नि की ज्वाला में उड़ जायेगा और न ही जमीन में दफन हो जायेगा। इस वास्तविकता को पहचान कर जब लोकतान्त्रिक सरकारें काम करती हैं तो लोग स्वयं उनके साथ सहयोग करने लगते हैं। आज सिर्फ जरूरत इस बात की है कि हम अपनी उपलब्धियों की तरफ न देखे बल्कि उन विफलताओं की तरफ देख कर पूरे तन्त्र को व्यवस्थित करने का प्रयास करें जिससे कोरोना संक्रमण की विकरालता और भयावहता कम हो सके। यह कैसे संभव है कि पूरे देश में हमने पिछले एक साल से  (कोरोना के पहले संक्रमण के बाद से)  इस महामारी को समाप्त करने के लिए मुहीम छेड़ रखी हो और इसके बावजूद इसकी दूसरी लहर हमें लाचार और  पंगू बना कर मुंह चिढ़ाती रहे। इसे परास्त करने के उपाय भी तो हमें खोजने होंगे।
 राष्ट्रीय आपदा के समय सारे तन्त्र को एक लक्ष्य की प्राप्ति की तरफ बढ़ना होता है और इस तरह बढ़ना होता है कि देश की जनता की तकलीफें कम से कम हो सकें। अतः लाॅकडाउन लगाने से पहले हमें देश की उस गरीब जनता के आर्थिक स्रोतों को सूखने नहीं देना होगा जिससे वे अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें। पिछले लाॅकडाउन से हमने कई सबक सीखे हैं। बड़े शहरों से प्रवासी मजदूरों का पुनः जिस तरह अपने घर लौटने का सिसिला जारी हो रहा है उसे देखते हुए उनके वित्तीय पोषण का इस बार पुख्ता इन्तजाम पहले से ही किया जाना चाहिए क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था पहले से ही नकारात्मक चक्र में घूम रही है। इसकी ज्यादा फिक्र करने की हमें जरूरत इसलिए भी नहीं है कि जब हमारे लोग सुरक्षित रहेंगे तो पुनः अपनी मेहनत से अर्थव्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त कर देंगे। अभी तो हमें उन सारे आर्थिक विकल्पों को देखना है जिनसे भारत के गरीब आदमी की मदद की जा सकती है बेशक यह सरकारी कर्ज के माध्यम से ही क्यों न हो। हालांकि केन्द्र सरकार ने 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने की घोषणा की है मगर आदमी का काम केवल अनाज से ही नहीं चलता और यह भी देखा जाना चाहिए कि ये 80 करोड़ लोग देश की उत्पादक सेना है। इनके श्रम के बिना कारखानों से आवाज नहीं आ सकती और शहर न जाग सकते हैं और न सो सकते हैं। वाणिज्य और व्यापार चहचाहट नहीं बिखेर सकता। अतः बहुत जरूरी है कि हम सबसे पहले अपने लोगों को बचाये और कोरोना की जानलेवा शृंखला को तोड़ें। यह काम केवल लाॅकडाउन ही कर सकता है।

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