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मजदूरों, किसानों के लिए राहत !

वित्त मन्त्री निर्मला सीतारमन ने आज स्पष्ट कर दिया है कि मोदी सरकार को प्रवासी मजदूरों से लेकर रेहड़ी-पटरी व ठेला लगाने वाले कामगरों से लेकर प्रवासी मजदूरों, आदिवासियों और छोटे किसानों तक की मुसीबतों की भी परवाह है

वित्त मन्त्री निर्मला सीतारमन ने आज स्पष्ट कर दिया है कि मोदी सरकार को प्रवासी मजदूरों से लेकर रेहड़ी-पटरी व ठेला लगाने वाले कामगरों से लेकर प्रवासी मजदूरों, आदिवासियों और छोटे किसानों तक की मुसीबतों की भी परवाह है और वह 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज में से उनका हिस्सा देने को तैयार है। बेशक यह सवाल पूछा जा सकता है कि क्या उसे उसका वाजिब हिस्सा मिला है? 
सवाल यह भी मौजूद है कि जिस देश की कुल 130 करोड़ आबादी में से 41 प्रतिशत लोग केवल एक कमरे के मकान में ही गुजारा करते हों, क्या उन्हें देश की आय में इसके अनुपात में ही हिस्सेदारी नहीं मिलनी चाहिए? मगर यह भी हकीकत है कि पिछले 72 साल से चली आ रही गैर बराबरी की व्यवस्था को हम रातों-रात नहीं बदल सकते, इसके लिए हमें पूरे ढांचे को सिरे से बदलना होगा। 
प्रवासी मजदूरों को लाॅकडाऊन ने जिस तरह अपने मूल राज्यों की तरफ पलायन करने को मजबूर किया है उसी से पता लगता है कि भारत के बड़े शहरों से लेकर औद्योगिक परिक्षेत्रों की ‘कार्य-भुगतान’ संरचना तहस-नहस हो चुकी है। इस संरचना को पुनः स्थापित करने के लिए लाॅकडाऊन समाप्त होने तक इन्तजार करना पड़ेगा मगर करोड़ों मजदूरों के अपने राज्यों में जाने का भार सम्बन्धित राज्यों की अर्थ व्यवस्था को ढोना पड़ेगा। 
इस सन्दर्भ में आज वित्त मन्त्री ने कुछ प्रमुख  घोषणाएं की हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण घोषणा ‘मनरेगा’ के तहत धनराशि बढ़ाये जाने की है। इसका मतलब यह है कि शहरों से गांव जाने वाले मजदूर गांवों में जाकर स्वयं को  मनरेगा योजना के तहत पंजीकृत करा सकते हैं और 202 रुपए प्रति  दिन के हिसाब से भुगतान पा सकते है। 
यह कार्य ग्राम पंचायतों के माध्यम से किया जायेगा किन्तु ग्राम पंचायतों में किस कदर भ्रष्टाचार व्याप्त है इसका अन्दाजा हमें शौचालय स्कीम के क्रियान्वयन से मिल सकता है जिसमें मध्य प्रदेश जैसे राज्य में हजारों शौचालय कागजों पर ही बना डाले गये थे। गांवों को पलायन करने वाले मजदूरों के लिए मनरेगा में स्वयं को पंजीकृत कराना आसान काम नहीं होगा क्योंकि हमारे सामने यह उदाहरण भी है कि गरीबी सीमा से नीचे का (बीपीएल) राशन कार्ड बनवाने के लिए किस कदर गरीब आदमी को परेशान किया जाता है। 
सरकार का यकीन काम के बदले मदद पर ज्यादा लगता है जिसकी वजह से मजदूरों के लिए गांवों में जाकर रोजगार पाना आसान काम नहीं होगा। वित्त मन्त्री के अनुसार मनरेगा में बेशक पिछले महीने मजदूरों के पंजीकरण में 50 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है मगर देखना यह होगा कि ठेकेदारी  प्रथा से भ्रष्ट हुए मजदूरों के बाजार में कहीं ठेकेदार ही मुसीबत के समय मलाई न खा जायें। यह भी आश्चर्यजनक है कि पूरे देश में कोरोना से लड़ने में सावधान सिपाही की भूमिका निभा रहे सफाई मजदूरों की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया है। अगर कोरोना संकट के चलते सफाई कर्मियों में व्याप्त ठेकेदारी प्रथा को समाप्त कर दिया जाये तो इस वर्ग के दलित, वंचित श्रमवीरों का सबसे बड़ा सम्मान होगा। जहां तक किसानों का सवाल है तो वित्त मन्त्री ने उन्हें ऋण देने की धनराशि में दो लाख करोड़ रुपए की वृद्धि की है।  
यह राशि किसान कार्डों की मार्फत कर्ज के तौर पर दी जायेगी। इसमें मछुआरे व पशुपालक भी शामिल किये जायेंगे।  छोटे किसानों के वर्ग में इन्हें शामिल करने से निश्चित रूप से कमजोर तबके को लाभ होगा और वे सरकारी मदद योजनाओं में शामिल होंगे। रेहड़ी-पटरी वालों को 10 हजार रुपए तक का ऋण बैंकों से देने का ऐलान निर्मला सीतारमन ने किया है। इसकी क्या प्रक्रिया होगी, इसका खुलासा उन्होंने फिलहाल नहीं किया है। जाहिर है कि बैंक ही इसकी शर्तें सरकारी निर्देशानुसार तय करेंगे। इस काम को आधार कार्ड से जोड़ कर सरल बनाया जा सकता है। 
आंकड़े बताते हैं कि पूरे देश में चार करोड़ के लगभग रेहड़ी-पटरी व ठेला लगाने वाले लोग हैं। इनके आधार कार्ड विवरण से उनके पेशे के अनुरूप कर्ज देने में सहूलियत पैदा की जा सकती है वरना ये लोग भी सिफारिश के मोहताज होकर रिश्वत देकर काम कराने के लिए मजबूर हो जाएंगे। प्रधानमन्त्री के अनुसार कोरोना की सबसे सबसे ज्यादा मार ऐसे वर्ग के लोगों पर ही पड़ी है जो राेज कमाता है और रोज खाता है। लाॅकडाऊन के दौरान वह अपनी छोटी सी कुल जमा पूंजी निपटा कर खाली हाथ खड़ा हुआ है। 
यह वर्ग महाजनों और ब्याजखोरों का सबसे आसान शिकार होता है इसलिए सरकार ने इसे कर्ज देने की स्कीम लाकर लोक कल्याणकारी कार्य किया है मगर सवाल इतना सा है कि सरकारी प्रयासों का उसे पूरा लाभ मिले और उसके रास्ते में बिचौलिये न आने पायें। गरीबों के लिए शुरू की गई सरकारी स्कीमों के क्रियान्वयन हेतु प्रत्येक तहसील स्तर पर ईमानदार एजेंटों की नियुक्ति की आवश्यकता भी महसूस की जाती रही है। 
लाॅकडाऊन से इस पर गौर करने की जरूरत है। हालांकि भारत की बहुस्तरीय प्रशासनिक प्रणाली को देखते हुए यह कार्य आसान नहीं होगा परन्तु ऐसी योजना को पायलट आधार पर कुछ गरीब राज्यों में शुरू तो किया जा सकता है। हमें ध्यान रखना होगा कि भारत केवल कृषि मूलक देश ही नहीं है बल्कि यह दस्तकारों  व शिल्पकारों का देश भी है। आत्मनिर्भरता और स्वदेशी का जागरण मन्त्र हमें इस ओर सोचने पर भी प्रेरित करता है। 

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