नूपुर शर्मा को राहत - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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नूपुर शर्मा को राहत

भारत की न्यायपालिका पर देशवासियों को पूरा भरोसा है क्योंकि यह दुनिया की श्रेष्ठतम न्यायिक व्यवस्था में गिनी जाती है। किसी भी देश की शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में वहां की न्यायपालिका का सबसे अहम योगदान होता है।

भारत की न्यायपालिका पर देशवासियों को पूरा भरोसा है क्योंकि यह दुनिया की श्रेष्ठतम न्यायिक व्यवस्था में गिनी जाती है। किसी भी देश की शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में वहां की न्यायपालिका का सबसे अहम योगदान होता है। भारतीय न्यायपालिका की प्रणाली आम कानून यानी कि कॉमन लॉ पर आधारित है, जिसमें न्यायाधीश अपने फैसलों, आदेशों और निर्णय से कानून का विकास करते हैं। भारत की न्यायपालिका का मूल काम हमारे संविधान में लिखे कानून का पालन करना और करवाना है। इसके साथ ही कानून का पालन न करने वालों को दंडित करने का अधिकार भी न्यायपालिका को प्राप्त है।  भारत की न्यायपालिका अत्यंत सुगठित है। ऊपर से लेकर नीचे तक के सभी न्यायालय एक-दूसरे से पूर्ण रूप से जुड़े हुए हैं। भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना संविधान द्वारा ही की गई है, जिसका कार्य अपने समक्ष आने वाले वादों का निष्पक्षतापूर्वक निपटारा करना है। न्यायपालिका की साख इतनी मजबूत है कि हर कोई इसका द्वार खटखटाना चाहता है। सर्वोच्च न्यायालय पर पूरे देश में संविधान का शासन देखने की जिम्मेदारी कानूनों की व्याख्या के लिहाज से दी गई है, इसलिए यह भी देखना होगा कि हर किसी से न्याय हो। 
पैगम्बर मुहम्मद पर पूर्व भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा की टिप्पणी के बाद मामला काफी गर्मा गया था। विवाद के बाद देशभर में नफरत की फैक्टरी खोलने की कोशिश की गई। नूपुर शर्मा के खिलाफ अलग-अलग कई जगह एफआईआर दर्ज की गईं। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस कांत बेंच ने नूपुर शर्मा को बड़ी राहत देते हुए सभी केसों की सुनवाई दिल्ली में करने का आदेश दे दिया है। यानी देशभर में उनके खिलाफ दर्ज अलग-अलग केस अब दिल्ली में तलब किए जाएंगे। नूपुर शर्मा के खिलाफ सबसे पहले महाराष्ट्र में मामला दर्ज किया गया था। उसके बाद पश्चिम बंगाल, राजस्थान में अलग-अलग मामले दर्ज किए गए थे। सुप्रीम कोर्ट पहले ही याचिकाकर्ता के जीवन और सुरक्षा के ​लिए गम्भीर खतरे का संज्ञान ले चुकी है। शीर्ष अदालत ने नूपुर शर्मा के जीवन की स्वतंत्रता के लिए खतरे के संबंध में बाद की घटनाओं को देखते हुए विचार किया है। अदालत ने दिल्ली पुलिस की जांच पूरी होने तक नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी पर भी रोक लगा दी है।
इससे पहले आल्ट न्यूज के फाउंडर मोहम्मद जुबैर को भी सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश में दर्ज पांच एफआईआर में बिना उसकी अनुमति के आगे पुलिस की कार्रवाई पर रोक लगाते हुए बड़ी राहत प्रदान की थी। मामला जुबैर के 2018 में किए गए एक आपत्तिजनक ​ट्वीट से जुड़ा था और आरोप है कि अपनी पोस्ट के जरिये उन्होंने हिन्दू देवता का अपमान किया है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से यह कहा गया था कि एक के बाद एक एफआईआर परेशान करने वाली है।
नूपुर मामले में सुनवाई जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने की है और अपना फैसला दिया है। इससे पहले इसी पीठ ने नूपुर शर्मा के खिलाफ सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि वह ही इस मामले में अकेले दोषी हैं। जिसके बाद सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ भी गुस्सा देखने को मिला था। इस मामले पर अच्छाखासा विवाद भी हुआ था, लेकिन यह समझने की जरूरत थी कि ये टिप्पणियां जस्टिस सूर्यकांत के फैसले का हिस्सा नहीं थीं और न ही इनका कोई वैधानिक प्रभाव था। परन्तु ​निश्चित रूप से इनका राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव था। जस्टिस सूर्यकांत की टिप्पणियां पूरी तरह मौखिक थीं, उनका आशय निश्चित रूप से याचिका में की गई गुहार के विभिन्न पक्षों से था, जिससे उनके विचारों को समझने में मदद मिल सकती थी। जस्टिस को लगा कि नूपुर शर्मा के बिना सोच-विचार के बोलने के कारण ही देश में ऐसे हालात बने हैं कि उदयपुर में एक दर्जी का काम करने वाले व्यक्ति की हत्या कर दी गई।
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला ने कहा था कि दिल्ली पुलिस ने अपना दायित्व सही ढंग से नहीं निभाया। इसके बाद नूपुर शर्मा को जान से मारने की धमकियां मिलीं। उनकी हत्या की साजिश का खुलासा भी हुआ। पाकिस्तान से एक व्यक्ति ने उन पर हमला करने के लिए भारत की यात्रा की। पटना में कुछ चरमपंथियों की गिरफ्तारी भी हुई। पीठ ने 20 जुलाई  सुनवाई के दौरान कही गई बातों का खुद ही जिक्र करते हुए कहा कि उसका संदेश सही नहीं गया। सुप्रीम कोर्ट ने कभी नहीं चाहा कि नूपुर राहत के लिए हर अदालत का रुख करें। नूपुर को अब राहत देने के फैसले की सराहना की जानी चाहिए। न्याय के मामले में जनधारणाओं का कोई महत्व नहीं हो सकता। इसके एक नहीं कई उदाहरण मौजूद हैं। न्यायमूर्तियों की टिप्पणियों का अर्थ केवल अर्न्तात्मा को टटोलना ही होता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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