आरक्षण : सोचने का समय - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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आरक्षण : सोचने का समय

भारत में आरक्षण का इतिहास बहुत पुराना है। आजादी से पहले 1882 में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में हंटर कमीशन का गठन हुआ था।

भारत में आरक्षण का इतिहास बहुत पुराना है। आजादी से पहले 1882 में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में हंटर कमीशन का गठन हुआ था। महात्मा ज्योतिबा फुले ने वंचित तबके के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा की वकालत करते हुए सरकारी नौकरियों में अानुपातिक प्र​तिनिधित्व की मांग की थी। 1891 में त्रावणकोर रियासत में सिविल नौकरियों में देसी लोगों की बजाय बाहरी लोगों को तरजीह देने के खिलाफ सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग हुई। 1901-02 में कोल्हापुर रियासत के छत्रपति शाहूजी महाराज ने वंचित तबके के लिए आरक्षण व्यवस्था शुरू की थी। सभी को मुफ्त शिक्षा सुनिश्चित कराने के लिए छात्रों की सुविधा के लिए अनेक होस्टल खोले थे। 1902 में कोल्हापुर रियासत की अधिसूचना में पिछड़े/वंचित वर्ग समुदाय के लिए नौकरियों में 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित की गई। देश में वंचित वर्ग के लिए आरक्षण देने संबंधी आधिकारिक रूप से वह पहला राजकीय आदेश माना जाता है। आजादी के बाद अनुसूचित जातियों और जनजातियों को शुरूआत में 10 वर्षों के लिए आरक्षण दिया गया। उसके बाद से उस समय-सीमा को लगातार बढ़ाया जाता रहा। आरक्षण वोट हासिल करने का हथियार बन गया। संविधान के भाग तीन में समानता के अधिकार की भावना निहित है। इसके अंतर्गत अनुच्छेद 15 में प्रावधान है कि किसी व्यक्ति के साथ जाति, प्रजाति, लिंग, धर्म या जन्म के स्थान पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। 15 (4) के मुताबिक यदि राज्य को लगता है तो सामाजिक आैर आर्थिक रूप से पिछड़े या अनुसूचित ज​ाति या अनुसूचित जनजाति के ​लिए वह विशेष प्रावधान कर सकता है।

देश में एक दौर ऐसा भी आया जब मंडल-कमंडल की सियासत शुरू हुई। 1980 में मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए इसमें पिछड़ी जातियों की हिस्सेदारी शामिल करते हुए कोटे की मौजूदा व्यवस्था को 22 प्रतिशत बढ़ाते हुए 49.5 प्रतिशत तक करने का सुझाव दिया। इसमें आेबीसी के लिए 27 प्रतिशत का प्रावधान किया गया। 1990 में वी.पी. सिंह सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया तो इसके खिलाफ आंदोलन भड़क उठा। युवा सड़कों पर आकर आत्मदाह करने लगे थे। शीर्ष अदालत ने फैसला दिया था कि आरक्षण किसी भी स्थिति में 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। आज देश के हालात ऐसे हैं कि हर कोई आरक्षण मांग रहा है। समृद्ध और शिक्षित मानी जाने वाली जातियां भी आरक्षण मांग रही हैं। गुजरात में पटेल, हरियाणा में जाट आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन करने लगे। अब महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन चल रहा है। आरक्षण की मांग को लेकर युवा आत्महत्याएं कर रहे हैं। हर कोई आरक्षण के प्याले के रस को पीकर संतुष्ट हो जाना चाहता है। हर समुदाय को लगता है कि सरकारी नौकरी पाकर उनका जीवन स्तर सुधर जाएगा।

यह भी सच है कि जाति के आधार पर आरक्षण का लाभ लेने वाले लगातार फायदा उठाते गए जबकि सवर्ण जातियों के लोग प्रतिभा सम्पन्न होने पर भी किसी तरह के लाभ से वंचित रहे। लोकसभा में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने वाला विधेयक पारित हो गया है लेकिन यह कह पाना मुश्किल होगा कि यह आरक्षण संबंधी समस्याओं का समाधान करने में सक्षम होगा। उग्र तरीके से आंदोलन कर रहा मराठा समूह पात्रता की श्रेणी में नहीं आता। ऐसी ही स्थिति अन्य जातियों की भी है। संसद में आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मांग की गई। आरक्षण संबंधी मांगों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। यदि एक जाति को आरक्षण दिया जाता है तो अन्य जातीय समूहों के उठ खड़े होने का खतरा पैदा हो जाता है। हैरानी वाली बात तो यह है कि कभी आरक्षण का विरोध करने वाले मराठा अब आरक्षण की मांग को लेकर हिंसक हो उठे हैं। इन सब परिस्थितियों के बीच मोदी सरकार के वरिष्ठ मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि नौकरियां कम होने की वजह से आरक्षण का कोई फायदा नहीं। बैंकिंग सैक्टर में आईटी की वजह से नौकरियां कम हो रही हैं। सरकारी भर्तियां बन्द हैं। नौकरियां हैं कहां? उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘आज ऐसे लोग भी हैं जो चाहते हैं कि नीति निर्माता सभी समुदायों के सबसे गरीब लोगों को आरक्षण में शामिल करने पर विचार करें। आरक्षण मिल भी जाए तो रोजगार की गारंटी नहीं है। एक सोच कहती है कि गरीब-गरीब होता है, उसकी कोई जाति, पंथ या भाषा नहीं होती। उसका कोई भी धर्म हो, मुस्लिम, हिन्दू या मराठा, सभी समुदाय में एक वर्ग ऐसा है जिसके पास पहनने के लिए कपड़े नहीं, खाने के लिए भोजन नहीं है। हमें हर समुदाय के अति गरीब वर्ग पर भी विचार करना चाहिए।’’ नितिन गडकरी ने जो कुछ कहा वह सत्य है। अब वक्त आ गया है कि आरक्षण को लेकर फिर से विचार किया जाए। आरक्षण का लाभ ले चुके लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसका फायदा उठाते आ रहे हैं जबकि आरक्षण उन लोगों को मिलना चाहिए जो गरीब हैं और उनके आर्थिक उत्थान के लिए उन्हें मदद देने की जरूरत है। आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को मिलना ही चाहिए।

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