म्यांमार को भगवान बुद्ध की धरा कहा जाता है। बौद्ध बहुल देश में इन दिनों जबर्दस्त हिंसा हो रही है। रोहिंग्या मुस्लिम म्यांमार की आबादी का छोटा सा हिस्सा हैं। रोहिंग्या मुस्लिम राखिन प्रांत में रहते हैं। ये मूल रूप से बंगलादेश के रहने वाले हैं जो ब्रिटिश शासन में विस्थापित होकर म्यांमार में दाखिल हो गए। समस्या यह है कि म्यांमार सरकार उन्हें वापस बंगलादेश भेजना चाहती है लेकिन बंगलादेश इन्हें अपनाने को तैयार नहीं है। हिंसा के कारण रोहिंग्या मुस्लिम वहां से भागकर बंगलादेश और भारत पहुंच रहे हैं। भारत में रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी बनकर जम्मू, हरियाणा के मेवात, दिल्ली, हैदराबाद, जयपुर और चेन्नई जैसे शहरों में रह रहे हैं। 11 हजार रोहिंग्या को भारत ने शरणार्थी का दर्जा दे रखा है। केन्द्र सरकार की मानें तो भारत में रोहिंग्या मुस्लिमों की संख्या 40 हजार के लगभग है। रोहिंग्या बहुल इलाके में 2600 से ज्यादा घर जला दिए जाने के कारण लगभग 87 हजार रोहिंग्या बंगलादेश चले गए।
बंगलादेश के शरणार्थी कैम्पों की हालत भी बदतर होती जा रही है। म्यांमार के कैम्पों में भी 1.2 लाख रोहिंग्या मुस्लिम रहते हैं जिन्हें खाने-पीने के लाले पड़ गए हैं। वैसे तो म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों पर अत्याचार की खबरें कई सालों से आती रही हैं लेकिन अब उन्होंने भी अपना सशस्त्र संगठन बना लिया है। पिछले हफ्ते इनके हमले में कई बौद्ध और हिन्दू नागरिकों के अलावा कम से कम 25 पुलिसकर्मी मारे गए। अब बौद्ध और हिन्दू भी दूसरी जगहों पर पनाह मांग रहे हैं। राखिन प्रांत में गृहयुद्ध जैसे हालात बन चुके हैं। गैंगरेप, हत्याएं आम हो चुकी हैं, यहां तक कि नवजात शिशुओं को भी मारा जा रहा है। रोहिंग्या ग्रामीण म्यांमार की सेना से लड़ाई में चरमपंथियों का साथ दे रहे हैं जबकि सेना के जवाबी हमलों में बौद्ध नागरिकों का समर्थन उसे मिल रहा है।
आखिर हिंसा ने इतना भयानक रूप कैसे ले लिया, इस पर भी नजर डालने की जरूरत है। 2012 में तीन मुस्लिम लड़कों ने एक बौद्ध महिला के साथ रेप करके उसे मौत के घाट उतार दिया था। इसके बाद बौद्ध निवासी इन रोहिंग्या मुस्लिमों को राखिन प्रांत से बाहर करने पर तुल गए। हिंसा भड़क गई, 300 लोग मारे गए और लगभग सवा लाख रोहिंग्या मुस्लिमों और अन्य को जबरन देश से बाहर कर दिया गया। तब से ही हिंसा लगातार जारी है। पिछले माह 25 अगस्त को राखिन प्रांत में गोला-बारूद से लैस 150 लोगों ने 24 पुलिस चौकियों और एक आर्मी बेस पर हमला कर दिया था जिसमें 71 लोगों की जानें गईं। इस हमले ने दुनिया में अराकन रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी के आगमन के संकेत दे दिए हैं। रोहिंग्या समुदाय के आतंकी संगठन का मुखिया अताउल्ला है जो रोहिंग्या है। उसका जन्म कराची में और परवरिश मक्का, म्यांमार और बंगलादेश में हुई। पाकिस्तान के आतंकी संगठन रोहिंग्या को बंगलादेश के शरणार्थी कैम्पों से अपने समूह में शामिल कर रहे हैं। इसके बाद उन्हें ट्रेनिंग और हथियार मुहैया कराए जा रहे हैं। पिछले कुछ समय से भारत में भी रोहिंग्या शरणार्थियों के खिलाफ माहौल बनता जा रहा है। शरणार्थियों के तौर पर इन्हें जम्मू-कश्मीर में रहने देने को लेकर भी आवाजें उठ रही हैं। कारण स्पष्ट है कि यदि रोहिंग्या शरणार्थियों को पाकिस्तान के आतंकी संगठन आतंकवादी बना रहे हैं तो कश्मीर में सक्रिय संगठन भी उनको भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे भारत की सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
भारत की चिन्ताएं वाजिब हैं। साथ ही साथ यह भी है कि यह एक बहुत बड़ी मानवीय त्रासदी है जिसे लेकर भारत को ठोस कदम उठाने होंगे अन्यथा शरणार्थी समस्या विकराल रूप धारण कर सकती है। पूर्वोत्तर राज्यों में बंगलादेशी घुसपैठ के चलते बने हालात से पूरा राष्ट्र अवगत है। अन्तर्राष्ट्रीय दबाव के बावजूद नोबल शांति पुरस्कार विजेता म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू की भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं, जिसके लिए उनकी तीव्र आलोचना भी हो रही है। जहां तक भारत सरकार का सवाल है, उसके सामने स्थिति काफी पेचीदा है कि वह शरणार्थियों के मुद्दे से कैसे निपटे। गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने कहा था कि रोहिंग्या मुस्लिम भारत में अवैध तरीके से रह रहे हैं और उन्हें भारत से बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए। गृह मंत्रालय ने भी राज्य सरकारों से कहा था कि वे अवैध रूप से रह रहे लोगों की पहचान करें। अब अवैध रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस म्यांमार भेजने का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है।
दो रोहिंग्या मुस्लिमों ने याचिका दायर कर कहा है कि वे म्यांमार में मुकद्दमे का सामना कर रहे हैं और उन्हें वापस भेजना विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन है। फिलहाल कोर्ट ने कोई अंतरिम आदेश जारी करने से इन्कार करते हुए केन्द्र को अपना पक्ष रखने को कहा है। भारत इन्हें वापस भेजना चाहता है लेकिन अपनी जान-माल का हवाला देकर रोहिंग्या जाने को तैयार नहीं। ऐसी स्थिति में रोहिंग्या की सुरक्षा, पुनर्वास, उनके कारण होने वाली चिन्ताएं भारत सरकार के लिए चुनौती है। इन सबके बावजूद मानवीय दृष्टिकोण ने सरकार के हाथ बांध रखे हैं। हालांकि यह भी सच है कि इन शरणार्थियों को दिल्ली और श्रीनगर के एनजीओ फंडिंग कर रहे हैं जबकि रोहिंग्या लोगों के अवांछनीय गतिविधियों में लिप्त होने की रिपोर्टें भी आ रही हैं।