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​गिरता रुपया, बढ़ता संकट

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डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। पैट्रोल-डीजल की कीमतें आसमान छू रही हैं। शेयर बाजार ढह रहा है। जनता का दर्द बढ़ता ही जा रहा है। आर्थिक सलाहकार परिषद की बैठकों के बावजूद जनता को राहत पहुंचाने के लिए कोई कदम उठाया नहीं जा रहा है। राज्य सरकारों-पश्चिम बंगाल, केरल, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक आदि ने पैट्रोल-डीजल पर एक या दो रुपए की राहत दी है लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। सबसे बड़ी चिन्ता तो यह है कि रुपए की गिरावट का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। आजादी के 71 साल बाद एक डॉलर की कीमत 73 रुपए के करीब पहुंच गई है। 1947 मेें जब देश आजाद हुआ था तब 3.30 रुपए एक डॉलर के बराबर थे यानी उस समय एक डॉलर भारतीय रुपए से साढ़े तीन गुना मजबूत था, जो आज बढ़कर कई गुना से अधिक हो गया है। रुपए के कमजोर होने के दो प्रमुख कारण हैं। पहला निर्यात के मुकाबले आयात में बढ़ौतरी और दूसरा अंतर्राष्ट्रीय हालात। जब भी आयात और निर्यात में संतुलन बिगड़ता है तो रुपया कमजोर होता है। आयात में बढ़ौतरी की बात करें तो इसमें कच्चे तेल का आयात सबसे प्रमुख है।

भारत अपनी जरूरतों के मुताबिक 80 प्रतिशत कच्चा तेल आयात करता है। लिहाजा भारत को भारी मात्रा में तेल आयात पर विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ रही है। इसका सीधा असर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ता है। दूसरा बड़ा कारण है अमेरिका और चीन के बीच छिड़ी ट्रेड वार आैर अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंध। यदि अंतर्राष्ट्रीय हालात नहीं सुधरे तो कच्चे तेल की कीमतों में आैर उछाल आएगा। ओपेक देश जिन्होंने कच्चे तेल के उत्पादन में वृद्धि का आश्वासन दिया था परंतु वह अपनी प्रतिबद्धता पर खरा नहीं उतरे हैं। ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते पिछले पखवाड़े में कच्चे तेल की कीमतों में 7 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा का उछाल आया है। प्रतिबंधों के चलते ईरान का तेल आयात घट रहा है जिसका सीधा असर भारत पर पड़ रहा है। ईरान पर अमेरिकी तेवर बहुत सख्त हैं, ऐसे में भारत को अपनी रणनीति पर विचार करना होगा। आशंका प्रबल है कि 4 नवम्बर के बाद ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू होने के बाद हालात और गम्भीर होंगे।

सबसे अहम सवाल यह है कि भारत इससे कितना प्रभावित होगा। तात्कालिक रूप से यह सवाल भी मुंह बाये खड़ा है कि लोगों को पैट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों से राहत कैसे मिले। केन्द्र सरकार ने तो अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। उसका कहना है कि पैट्रोल-डीजल में एक रुपए की कटौती से 14 हजार करोड़ का भारी नुक्सान होगा। अमेरिका, जापान, यूरोप की अर्थव्यवस्थाओं के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन कर रही है। इस कारण तेल की मांग बढ़ रही है। भारत की सड़कों पर रोजाना हजारों नई गाड़ियां उतर रही हैं। तेल की जरूरत महानगरों आैर शहरों में ही नहीं बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी लगातार बढ़ रही है। साइकिल की जगह दोपहिया वाहनों ने ले ली है। अब साइकिल इक्का-दुक्का ही नजर आती हैं। पैट्रोल-डीजल की कीमतों को लेकर लोगों की सहनशक्ति कम हो रही है। शेयर बाजार का ढहना लोगों में आशंकाएं पैदा कर रहा है।

आम जनता पर कई स्तरों पर महंगाई का बोझ बढ़ने का खतरा मंडराने लगा है। जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, उनमें तेल की कीमतों में मामूली कटौती भी कर दी गई है लेकिन इससे राज्यों के राजस्व को नुक्सान पहुंचेगा। नई सरकारों के लिए राज्यों का खजाना खाली होगा। आखिर सरकारें राजस्व वसूल कर ही अपना खजाना भरती हैं। कोई भी सरकार जनता के हितों की अनदेखी नहीं कर सकती और न ही देश की अर्थव्यवस्था को कार्पोरेट सैक्टर की तरह फायदे की कम्पनी बनाकर चला सकती है इसलिए जरूरी है कि वह कुछ बोझ उठाकर जनता को राहत पहुंचाए। सरकारों का काम जनता का दर्द बढ़ाना नहीं बल्कि कम करना होता है। सरकार को अर्थव्यवस्था के उन कारकों पर भी नियंत्रण के प्रयास करने चाहिएं जिनके चलते ऐसी स्थितियां पैदा होती हैं। जनता के प्रति असंवेदनशीलता जब लम्बी हो जाती है तो आक्रोश बढ़ता है। केन्द्रीय राज्यमंत्री पैट्रोल-डीजल के दामों को लेकर दिए गए बयान से लोगों के निशाने पर हैं। उन्होंने कहा था कि मुझे बढ़ते दामों की चिन्ता नहीं क्योंकि मैं एक मिनिस्टर हूं। मिनिस्टर नहीं होता तो चिन्ता होती।

ऐसी अनर्गल बयानबाजी से भी जनता व्यथित होती है। हालांकि उन्होंने अपने बयान पर खेद जताया है। देश में महंगाई बढ़ रही है। रुपए की कीमत गिरने से निर्यातक कम्पनियों को फायदा जरूर होगा। विदेशों में पढ़ रहे 5 लाख से अधिक भारतीय छात्रों के लिए पढ़ाई का खर्च बढ़ जाएगा। भारतीय अभिभावकों को अपने बच्चों पर तीन-चार लाख अधिक खर्च करने होंगे। केन्द्र को चाहिए कि जनता का दर्द कम करने के लिए पैट्रोल-डीजल पर कुछ करों में कटौती करे। यह काम केन्द्र आैर सभी राज्यों को एक साथ करना होगा। अगर ऐसा नहीं किया गया तो हाहाकार गम्भीर रूप धारण कर सकता है। केन्द्र को चाहिए कि वह गम्भीरता से विकल्पों पर विचार करे।

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