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सुरक्षित, समृद्ध भारत और अमेरिका

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जिन लोगों ने भूतपूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन के तौर पर जाने गए डा. एपीजे अब्दुल कलाम के स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर दिए गए राष्ट्र के नाम सम्बोधन को सुना होगा या उनके सम्बोधन को पढ़ा होगा तो वह उनके शब्दों को नहीं भूले होंगे। डा. कलाम ने कहा थाः-
‘‘आने वाली नस्लें हमें इसलिए स्मरण नहीं रखेंगी कि हमने कितने मन्दिर बनाए, कितनी मस्जिदों या चर्चों का निर्माण किया और हमने कितने गुरुद्वारे बनाए, बल्कि हमें इसलिए लोग याद रखेंगे कि हम उन्हें कितना सुरक्षित और समृद्ध भारत दे सके।’’

सुरक्षित और समृद्ध भारत को हम दो भागों में बांट सकते हैं। बाहरी सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा। जहां तक बाहरी सुरक्षा का सवाल है, हमारी सेना जल, थल, वायु में विश्व की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं में से एक है। अब भारत अंतरिक्ष में भी बड़ी श​क्ति बन चुका है। इसका श्रेय पूरी तरह से डीआरडीओ और इसरो के वैज्ञानिकों को जाता है। भारत द्वारा मिशन ‘शक्ति’ के तहत एंटी सैटेलाइट मिसाइल का सफल परीक्षण किया तो सबसे पहली बधाई अमेरिका से ही आई लेकिन इसके विपरीत अमेरिकी अंतरिक्ष एजैंसी ने भारत के इस परीक्षण को खतरनाक बताया। नासा का कहना है कि भारत के इस परीक्षण से अंतरिक्ष की कक्षा में करीब 400 कचरे के टुकड़े फैल गए हैं। इससे भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) में मौजूद अंत​रिक्ष यात्रियों के लिए नया खतरा पैदा हो गया है। भारत ने पृथ्वी की निचली कक्षा में 300 किलोमीटर दूर मौजूद सैटेलाइट को मार गिराया जो कक्षा में आईएसएस और ज्यादातर सैटेलाइटों से नीचे था। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन डीआरडीओ के प्रमुख ने नासा की चिन्ताओं को खारिज करते हुए इन्हें काल्पनिक बताया है।

नासा की आलोचना से स्पष्ट है कि अमेरिका भारत की सफलता से अन्दर से चिढ़ा बैठा हैै। एक तरफ बधाई और दूसरी तरफ आलोचना भारत की प्रगति से डील करने का यह अमेरिकी तरीका मात्र है। भारत की ए-सैट मिसाइल से जो भी कचरा फैला है, उसमें गति ही नहीं है और यह टुकड़े कुछ समय बाद अपने आप गिरकर पृथ्वी के वातावरण में आएंगे और जलकर नष्ट हो जाएंगे। अमेरिकियों के बारे में प्रसिद्ध है कि वह अपने हितों को सर्वोपरि रखते हैं। जब तक उसके हित सुरक्षित हैं, भारत उसकी नजर में मित्र है लेकिन भारत की प्रगति कहीं न कहीं उसकी आंखों में किरकिरी जरूर पैदा करती है।

एंटी सैटेलाइट मिसाइल परीक्षण करने वाले चार देशों में अमेरिका खुद भी यह परीक्षण कई बार कर चुका है। रूस और चीन भी ऐसा परीक्षण कर चुके हैं। अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा कचरा अमेरिका ने फैलाया है। अमेरिका कचरे को अपने हिसाब से मॉनिटर करता है। उसके कचरे की संख्या 6 हजार से भी ज्यादा है जबकि भारत के कचरे की संख्या महज 100 के करीब है। चीन ने 2007 में एंटी सैटेलाइट मिसाइल का परीक्षण किया था। उसने तो 800 किलोमीटर से अधिक की ऊंचाई पर अपने उपग्रह को मार गिराया था। उसका कचरा अभी तक अंतरिक्ष में मौजूद है। 1957 में स्पूतनिक लांच किया गया था। तब से अब तक 8 हजार कृत्रिम उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे गए। इस समय 200 उपग्रह ही काम कर रहे हैं। भारत के कृत्रिम उपग्रहों की संख्या तो केवल 48 है। ऐसे में अमेरिका का भारत पर सवाल उठाना जायज नहीं है।

एक समय चीनी स्पेस यान थियांगोंग के पृथ्वी से टकराने की आशंका थी लेकिन वह बिना कोई नुक्सान पहुंचाए समुद्र में गिरकर नष्ट हो गया था। 1979 में 75 टन से भी अधिक वजन का नासा स्पेस सैंटर स्काईलैब गिरा था तो भारत समेत पूरी दुनिया में घबराहट पैदा हो गई थी लेकिन यह भी समुद्र में गिरकर नष्ट हो गया था। भारत द्वारा ए-सैट मिसाइल के परीक्षण पर संयत प्रतिक्रियाएं यह दर्शाती हैं कि इस मोर्चे पर बड़े देशों की क्षमताएं इस स्तर तक पहुंच गई हैं कि रक्षा क्षेत्र के नीति नियंताओं को अब अंतरिक्ष में मंडराते युद्ध के खतरे से निपटने के उपायों पर विचार करना चाहिए। भारत ने परीक्षण कर अपने कुटिल पड़ोसियों पाकिस्तान और चीन को संदेश दे दिया है। भारत के परीक्षण का पाकिस्तान के लिए भी रणनीतिक निहितार्थ है, जो परम्परागत सैन्य क्षमताओं के मामले में भारत से कमजोर है।

भारत का ए-सैट क्षमता वाले किसी देश के साथ सुरक्षा समझौता नहीं है और उसे अपनी हिफाजत खुद करनी है। अभी तो भारत ने एक महत्वपूर्ण पड़ाव पार किया है। आने वाले दिनों में डीआरडीओ के वैज्ञानिक कई परीक्षण कर सकते हैं। अंतरिक्ष में बढ़ता कचरा विज्ञान की प्रगति से जुड़ा हुआ है। यह सही है कि कचरा जितना ज्यादा होगा उससे दुर्घटनाओं की आशंका भी बढ़ेगी। इन देशों को चाहिए कि मिलकर क्लीन स्पेस मुहिम शुरू करें। शोधकर्ता भी विभिन्न विकल्पों पर काम कर ही रहे हैं।

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