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संत, सम्पत्ति और साजिश

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी की संदिग्ध मौत न केवल संत समाज के लिए ​बल्कि समूचे राष्ट्र के लिए बहुत ही दुखदायी है। उनके समक्ष बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ सिर झुकाते थे।

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी की संदिग्ध मौत न केवल संत समाज के लिए ​बल्कि समूचे राष्ट्र के लिए बहुत ही दुखदायी है। उनके समक्ष बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ सिर झुकाते थे। महंत नरेन्द्र गिरी लम्बी साधना के बाद अध्यक्ष पद पर पहुंचे थे लेकिन ऐसेे संत भी सम्पत्ति और साजिश के गठजोड़ का शिकार हो गए। यह कोई पहला मामला नहीं जब किसी संत ने आत्महत्या की हो। इससे पहले भी सम्पत्ति विवाद को लेकर कई साधु-संतों की जानें जा चुकी हैं। कई संत भूमाफिया की गोलियों का शिकार बने, कई संत मठ के भीतर की साजिश का शिकार बने।
नरेन्द्र गिरी व्यक्तित्व के धनी थे, उनका जीवन पूरी तरह निष्कलंक रहा। यह सत्य है कि वह उम्र के आखिरी ढलान पर थे लेकिन उनके भीतर की ऊर्जा कम नहीं थी। 70 वर्ष से ज्यादा उम्र होने के बावजूद कुम्भ मेले के दौरान उनकी सक्रिय भूमिका एक उदाहरण बन गई थी। वह कोई बैठक नहीं छोड़ते थे। साधु-संतों की चिंता करते थे। जब उन्होंने दूसरी बार अध्यक्ष पद सम्भाला  उन्होंने फर्जी संतों के ​िखलाफ कड़ी कार्रवाई की और उन्हें अखाड़े के बाहर का रास्ता दिखाया।
महंत नरेन्द्र ​िगरी के सुसाइड नोट में उनके परमप्रिय शिष्य आनंद ​िगरी और लेटे हुए हनुमान जी मंदिर के पुजारी आद्या  तिवारी और उनके बेटे संदीप तिवारी को ​िजम्मेदार ठहराया गया है। लोग आनंद गिरी को ही उनका उत्तराधिकारी मानते थे लेकिन गुरु-शिष्य के ​िरश्ते खराब हो गए थे। आनंद गिरी संतों के हीरो माने जाते थे। ​िफल्मी नायकों के अंदाज में रहने वाले योग गुरु आनंद ​िगरी को ​िकशोरावस्था में ही नरेन्द्र गिरी हरिद्वार के किसी आश्रम में लाए थे। उसकी बिलासितापूर्ण जिन्दगी आैर आस्ट्रेलिया में दो शिष्यों से बदसलूकी के मामले की परतें खुल चुकी हैं। 
संत समाज की समस्या यह है कि भगवा वस्त्र पहन कर प्रतिष्ठा हासिल करने वाले लोग सम्पत्ति और अकूत धन की लालसा में सारी मर्यादाएं भूल चुके हैं। माना जाता है कि संतों को मोहमाया से क्या लेना-देना, वे संत इसलिए कहने के अधिकारी इसलिए बनते हैं क्योंकि जिन्दगी के झमेले उन्हें प्रभावित नहीं करते। भारत की धरा पर ऐसे ऋषि-मुनि आैर संत पैदा हुए जिन्होंने जीवन में उत्कृष्ट आचरण का उदाहरण स्थापित किया। भारत आज एक अजीब सी स्थि​ित से गुजर रहा है। आस्था की आड़ में साधु-संत इस पवित्र भूमि को दागदार कर रहे हैं। आए दिन कोई न कोई साधु-संत किसी न किसी केस में फंसते नजर आ रहे हैं और हैरानी की बात तो यह है ​िक उनके सभी असंगत कार्यों बलात्कार, हत्या, हत्या की साजिश, यौन शोषण में शामिल होने को जानते हुए भी उनके समर्थक इनका विरोध न कर इनके साथ खड़े नजर आ रहे हैं।
आज के शिष्य अपने गुरुओं को किसी लड़की के साथ फर्जी वीडियो बनाकर ब्लैकमेल करने का षड्यंत्र रचते हैं। ऐसा ही उल्लेख महंत नरेन्द्र गिरी ने अपने सुसाइड नोट में किया है। हैरानी की बात तो यह है कि आनंद गिरी के समर्थक अभी भी उनके समर्थन में अभियान चलाए हुए हैं। गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा, गुरु साक्षात पर ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः की परम्परा को​ निभाते आ रहे हैं और उन्हें ईश्वर से भी बड़ा मानते हैं। हम लोग तथाक​थित गुरुओं के असंगत कर्मों का साथ देकर इनके हौसले बुलंद कर रहे हैं। हिन्दू समाज आज स्तब्ध है क्योंकि आस्था के केन्द्र लेटे हुए हनुमान जी मंदिर के पुजारी और उनका बेटा ही यदि मौत की साजिश में शामिल हैं तो साफ है कि इन्हें भगवान का भी खौफ नहीं। इससे हमारा विश्वास ही नहीं डगमगाता बल्कि हमारी मानसिकता भी बहुत प्रभावित होती है। हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश के तथाकथित साधु-संतों की गिरफ्तारी के समय हुई हिंसा में अनेक लोगों की जानें जा चुकी हैं। कुछ जेलों में बंद हैं।
महंत नरेन्द्र गिरी जी की आत्महत्या को कोई भी स्वीकार नहीं कर रहा। अगर वे अपने शिष्य के आचरण से प​ीड़ित थे तो ऐसी कौन सी परिस्थितियां थीं जिसके चलते उन्होंने आत्महत्या का कदम उठाया। आत्महत्या तत्काल आवेग या आवेश में आकर कोई भी करता, इसके लिए एक लम्बी प्रक्रिया होती है। अगर आम आदमी आत्महत्या करे तो उसके पीछे आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक कारण हो सकते हैं ले​िकन आध्यात्मिक जीवन जीने वाले महंत नरेन्द्र गिरी की आत्महत्या इस बात की ओर संकेत करती है कि सा​िजश बहुत गहरी थी। सम्पत्ति और प्रतिष्ठा अर्जित करने के लोभ में ​किसी संत की वजह से पैदा होने वाली किसी बड़ी बाधा से छुटकारा पाने के लिए उनकी हत्याएं पहले भी की जाती रही हैं। ऐेसी ही साजिश का ​िशकार महंत नरेन्द्र ​गिरी हो गए। उत्तर प्रदेश पुलिस पूरी साजिश के ​िकरदारों को जोड़कर पर्दाफाश करने की तैयारी में है। अब जिम्मेदारी संत समाज की है कि ढोंगी संतों की पहचान कर उन्हें समाज से ​निष्कासित करें और अखाड़ाें की पवित्रता बनाए रखें, अन्यथा हिन्दू समाज बार-बार आहत होता रहेगा और हमारी आस्थाओं पर प्रहार होते रहेंेगे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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