सरदार पटेल के 259 रु.! - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

सरदार पटेल के 259 रु.!

NULL

आज 31 अक्तूबर को भारत के पहले गृहमन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म दिवस है। उनकी भव्य धातु प्रतिमा का अनावरण भी आज होना है। यह प्रतिमा दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति होगी। इसे एकता की प्रतिमा (स्टेच्यू आफ यूनिटी) का नाम दिया गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि सरदार ने आजादी के बाद भारत की 536 से अधिक देशी रियासतों का स्वतन्त्र देश भारत मंे विलय कराया था और इसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत के साथ अपनी तीक्ष्ण राजनीतिक दूरदर्शिता का इस्तेमाल भी करना पड़ा था परन्तु यह कभी नहीं भूला जाना चाहिए कि सरदार पक्के गांधीवादी थे और कट्टर कांग्रेसी थे।

वह स्वतन्त्र भारत का प्रधानमन्त्री बनने के कभी भी इच्छुक नहीं रहे, इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह माना जाता है कि जब अंग्रेजों ने सिद्धांत रूप से भारत को स्वतन्त्रता देना स्वीकार कर लिया और अप्रैल 1946 में सम्पूर्ण भारत को एक देश में रखे जाने के अं​तिम प्रयास के रूप में केबिनेट मिशन तत्कालीन वायसराय लार्ड वावेल की सदारत में बना और पं. जवाहर लाल नेहरू को इसकी अधिशासी परिषद का उपाध्यक्ष बनाया गया तो मुस्लिम लीग के प्रतिनि​धि के तौर पर मुहम्मद अली जिन्ना ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया तो सरदार पटेल इसमें गृह विभाग के प्रभारी के तौर पर शामिल हुए। इस परिषद के कार्यकारी प्रमुख पं. जवाहर लाल नेहरू ही थे। अतः सरदार ने आजादी मिलने के संक्रमण काल में ही पं. नेहरू को देश का सर्वोच्च नेता स्वीकार कर लिया था। इसका एक और महत्वपूर्ण कारण भी था जिसकी तरफ बहुत कम इतिहासकारों ने रोशनी डालने का काम किया है।

सरदार पटेल पं. नेहरू से 14 वर्ष बड़े थे। जब देश को स्वतन्त्रता मिली तो पं. नेहरू की आयु 58 वर्ष थी और सरदार पटेल की 73 वर्ष परन्तु भारत की आंतरिक बुनावट के पेंचोखम की बारीकियों में सरदार इस कदर माहिर थे कि संविधान सभा के सदस्य के रूप में ही उन्होंने इस सभा मंे आये कुछ राजा-महाराजाओं के मन की बात को ताड़ लिया था और इसका तोड़ ढूंढना शुरू कर दिया था। पटेल को केबिनेट मिशन के असफल होने और पाकिस्तान फार्मूला स्वीकृत होने के बाद से ही यह आभास हो गया था कि देशी रियासतों को स्वतन्त्र भारत का हिस्सा बनाना आसान काम नहीं होगा। सवाल केवल कुछ मुस्लिम नवाबों या राजाओं द्वारा शासित रियासतों का नहीं था बल्कि हिन्दू राजाओं द्वारा शासित शक्तिशाली समझी जाने वाली रियासतों का भी था। इसके लिए उन्होंने जो फार्मूला प्रिविपर्स का निकाला और राजाओं की पदवी को बरकरार रखा उससे अंग्रेजों की जी-हुजूरी करने वाले इन रजवाड़ों में यह भाव जगा कि स्वतन्त्र व लोकतान्त्रिक भारत में भी उनकी विशिष्टता बनी रहेगी हालांकि उनके अधिकार बहुत सीमित होंगे।

इसके बावजूद मैसूर रियासत के तत्कालीन महाराजा ने आजादी से एक दिन पहले 14 अगस्त को अपनी रियासत का भारत में विलय किया और इस शर्त के साथ किया कि उनकी रियासत का जो राज्य मैसूर बनेगा उसके वह राज प्रमुख होंगे मगर निजाम हैदराबाद इसके लिए तैयार नहीं हुआ और तब सरदार ने ‘आपरेशन पोलो’ को भारतीय सेना की मदद से अंजाम देकर निजाम हैदराबाद के घुटने टिकवा दिये किन्तु जम्मू-कश्मीर रियासत के हिन्दू महाराजा हरि सिंह के शासन में होने के बावजूद उन्होंने भारत मंे विलय की स्वीकृति 15 अगस्त 1947 तक नहीं दी। अंग्रेजों ने सरदार के हाथ यह कहकर बांध रखे थे कि उन्होंने दो स्वतन्त्र देशों भारत और पाकिस्तान का निर्माण तो किया है मगर इन देशों की सीमाओं में पड़ने वाली देशी रियासतों को ही सत्ता वापस दी है क्योंकि इन्हीं से ईस्ट इंडिया कम्पनी ने सत्ता के अधिकार लेकर 1860 में पूरे भारत की सल्तनत ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को बेची थी।

इसके साथ ही महाराजा हरि सिंह ने पाकिस्तान के साथ एेसा स्टेंड स्टिल (यथास्थिति कायम रखने का) समझौता कर लिया था जिससे कश्मीर रियासत और पाकिस्तान के विभिन्न हिस्सों के साथ पहले से स्थापित जनसंचार आदि के सम्बन्ध बदस्तूर जारी रहें। महाराजा हरि सिंह ने अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाये रखा और भारतीय संघ में तब विलय किया जब पाकिस्तानी सेना ने उस पर आक्रमण कर दिया मगर अक्तूबर 1947 में भी देश के गृहमन्त्री के तौर पर सरदार ने कश्मीर मसले को सुलझाने में भारतीय सैन्य शक्ति के साथ और सुरक्षा बलों की भूमिका इस प्रकार तय की कि कश्मीरी जनता पाकिस्तान के खौफ से पूरी तरह निजात पा सके। जहां तक अन्य देशी रियासतों का प्रश्न है उनके राजा या नवाब तो सरदार के भेजे गये कारिन्दे के सामने ही सारे कागज-पत्र रखने में भलाई समझते थे मगर सरदार जानते थे कि अंग्रेजों की रहनुमाई में भारत की जनता पर जुल्म ढहाने वाले ये राजा-महाराजा अपनी सम्पत्ति को बचाने में भ्रष्टाचार कर सकते हैं इसीलिए उन्होंने जोधपुर रियासत व टाेंक रियासत समेत कुछ अन्य रियासतों के दीवानों के कारनामों पर विशेष केन्द्रीय पुलिस (जिसे बाद में सीबीआई कहा गया) को अधिकृत कर दिया था।

सरदार पटेल यदि किसी बुराई के सबसे बड़े दुश्मन थे तो वह भ्रष्टाचार ही था। वह स्वतन्त्र भारत मंे इस बुराई को हर स्तर पर समाप्त कर देना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने जो भारत का प्रशासनिक ढांचा तैयार किया उसमें राज्यों और केन्द्र के बीच एेसा सन्तुलन बनाया कि भारत के हर जिले में केन्द्र की सेवा शर्तों से बन्धा हुआ आईएएस या आईपीएस अधिकारी तैनात रहे जो किसी भी राज्य की स्थानीय राजनीति से प्रभावित न हो सके। क्या यह भारत के लोगों के लिए आज किसी विस्मय से कम है कि जब सरदार पटेल की मृत्यु हुई तो उनकी कुल जमा सम्पत्ति केवल 259 रुपए थी। क्या हम आज की नई पीढ़ी को यह बताना चाहते हैं कि गुजरात में दूध उत्पादक किसानों के हितों की रक्षा करने की शुरूआत सरदार ने ही की और उनके ही प्रयासों से इस राज्य में दुग्ध क्रान्ति की शुरूआत हुई।

हम सरदार पटेल के जीवन के इस पक्ष को छूना नहीं चाहते और उन अफवाहों को सिर-पैर लगा देना चाहते हैं जिनका कोई अस्तित्व कभी रहा ही नहीं। आजादी मिलने वाले वर्ष 1946-47 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए जो चुनाव होना था उसके लिए भारत की कुल 15 प्रदेश समितियों में से 11 के लगभग का समर्थन सरदार पटेल को मिल रहा था। क्योंकि इसी वर्ष भारत स्वतन्त्र होना था और कांग्रेस अध्यक्ष ही प्रधानमन्त्री बनते अतः महात्मा गांधी ने इस चुनाव की बागडोर अपने हाथ में ली और घोषणा की कि पं. जवाहर लाल नेहरू कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष होंगे और इस पर उन्होंने सरदार की स्वीकृति लेते हुए कहा कि यदि सरदार अध्यक्ष बनते तो मुझ पर यह आरोप लग जाता कि एक गुजराती ने दूसरे गुजराती के साथ पक्षपात किया। सरदार पटेल के सामने तब आचार्य कृपलानी का नाम आया था। आजादी मिलने के बाद आचार्य जी को ही कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। अतः नेहरू और पटेल के बीच कभी भी मतदान होने की बात आयी ही नहीं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

three − 2 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।