कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने जिस प्रकार देश के गांवों में अपना तांडव मचाना शुरू किया है उसके बहुत गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं बशर्तें कि हम अभी से चौकस होकर कई मोर्चों पर कारगर कदम न उठायें। पहला मोर्चा जाहिर तौर पर ग्रामीण स्तर तक स्वास्थ्य व चिकित्सा सेवाएं पहुंचाने का है और दूसरा मोर्चा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुचारू बनाये रखने का है जबकि तीसरा और महत्वपूर्ण मोर्चा प्रत्येक ग्रामवासी को वैक्सीन लगाने का है। जहां तक ग्रामीण चिकित्सा तन्त्र का सवाल है तो यह पूरी तरह जर्जर और लावारिस हालत में है। स्थिति यह है कि गांवों में चिकित्सा केन्द्रों के नाम पर डाक्टरों की बात तो छोड़िये कम्पाऊंडर तक नहीं हैं। जहां तक प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों का सवाल है तो उनमें दवाओं की बात तो क्या की जाये शुद्ध पानी तक नहीं है। निश्चित रूप से यह समय इसकी वजह में जाने का नहीं है क्योंकि जब लोगों किसी भी चुनाव में सरकार चुनने का समय आता है तो स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को छोड़ कर राजनैतिक लोग जात-बिरादरी और धार्मिक मुद्दों में उलझा देते हैं। अतः इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इन दोनों ही क्षेत्रों में भारत का निवेश दुनिया के कुछ गरीब मुल्कों के मुकाबले भी कम है।
फिलहाल सबसे बड़ी जरूरत गांवों में कोरोना के प्रकोप को रोकने की है और पूरे ग्रामीण तन्त्र को सुरक्षित रखने की है। इस मामले में सरकारी स्तर पर लकीर से हट कर तरीके निकालने होंगे और ग्रामीणों को बचाना होगा। इसका सरल उपाय मोबाइल चिकित्सा प्रणाली के माध्यम से प्रशिक्षित डाक्टरों की देखरेख में कोरोना के इलाज का प्रबन्ध इस प्रकार किया जा सकता है कि इस बीमारी के प्रारम्भिक लक्षण पैदा होते ही उसे काबू में किया जा सके और संक्रमित लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया जा सके। यब कार्य ग्राम पंचायतों की मदद से उन्हें विशेष कोरोना मदद देकर किया जा सकता है। गांवों के विकास के लिए दी जाने वाली आर्थिक मदद राशि का स्थानान्तरण हम अस्थायी रूप से विशेष कोरोना मदद में करके इस काम को अंजाम दे सकते हैं। मगर आज हालत यह हो गई है कि गांव वालों के पास कोरोना की वजह से काल का ग्रास बने अपने परिजनों का अन्तिम संस्कार करने तक के लिए पैसे नहीं है जिसकी वजह से वे शवों को गंगा नदी में बहा रहे हैं अथवा उन्हें रेत में ही दफना रहे हैं। इसलिए ग्रामीण इलाकों में ऐसा ढांचा तुरन्त खड़ा करना होगा जिससे कोई भी व्यक्ति अपने परिजन को अन्तिम विदाई तक देने में स्वयं को असहाय महसूस न कर सके। पक्के तौर पर यह काम सरकार को ही करने होगा क्योंकि कोरोना का खौफ पूरे भारत में इस तरह सर पर सवार है कि किसी कुटुम्बी की मृत्यु हो जाने पर भी लोग शव दाह-संस्कार या मय्यत में शामिल नहीं हो रहे हैं। मगर हम गंगा पर ही पुलसिया पहरा लगा कर इस समस्या का समाधान ढूंढना चाहते हैं। गंगा पर पहरा लगा कर हम शासन का भय तो पैदा कर सकते हैं मगर जो व्यक्ति कोरोना से मरा है उसकी अन्तिम विदाई सम्मानपूर्वक नहीं कर सकते।
मूल सवाल इसी का है कि किस प्रकार किसी गरीब परिवार के मृत व्यक्ति का अन्तिम संस्कार सम्मानपूर्वक किया जाये। अतः सरकारों को ही यह सुनिश्चित करना होगा कि उस अन्तिम घड़ी में प्रशासन पीड़ित परिवार के पास खड़ा हुआ मिलेगा। इसके साथ ही दूसरा बड़ा प्रश्न गांवों की अर्थव्यवस्था के बचाने का है। पिछले वर्ष आयी कोरोना की पहली लहर से ग्रामीण क्षेत्र प्रायः अछूता रहा था मगर इस बार स्थिति उल्टी है जिसकी वजह से गांवों व शहरों के बीच की ‘सप्लाई लाइन’ टूट सकती है। इस बार गांवों में हालत इतनी खराब बताई जा रही है कि हर घर में बीमारी ने डेरा जमा लिया है जिसकी वजह से परिवार का कमाऊ इंसान खटिया पर लेटे अपने परिवार के सदस्य की दवा- दारू के इन्तजाम में ही लगा हुआ है और जिस घर में खुद कमाऊ इंसान ही बीमार है तो उस घर का काम जैसे-तैसे कर्जा उठा कर चल रहा है। यही वजह है कि इस बार मनरेगा कानून के तहत काम मांगने वाले ग्रामीणों की संख्या दुगनी हो गई है।
पिछली बार मोदी सरकार ने जो कोरना पैकेज दिया था उससे गांवों की मदद हुई थी मगर पिछली बार शहरों से गांवों में पलायन करके पहुंचे लोग ही मनरेगा में अपना पंजीकरण करा रहे थे परन्तु इस बार गांव के स्थानीय निवासी भी इसमें अपना नाम दर्ज करना चाहते हैं। इसका असर गांवों और कस्बों व छोटे शहरों के काम-धंधों व औद्योगिक इकाइयों पर पड़े बिना नहीं रहेगा जिससे बड़ी औद्योगिक इकाइयों की ‘सप्लाई चेन’ टूट सकती है और छोटी औद्योगिक इकाइयां ठप्प हो सकती हैं। कोरोना की पिछले साल आयी पहली लहर के दौरान गांवों में उत्पादक गतिविधियां तभी ठप्प रही थीं जब राष्ट्रीय स्तर लाकडाऊन था। इस बार राज्य स्तर पर लाकडाऊन होने की वजह से और ग्रामीणों के स्वयं कोरोना की चपेट में आने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दुगनी मार पड़ रही है।
पिछली बार केवल शहरों से पलायन कर रहे मजदूरों की आर्थिक मदद करने का सवाल उठ रहा था मगर इस बार तो देश के हर गरीब परिवार की आर्थिक मदद करने का प्रश्न पूरी मानवीयता के साथ खड़ा हो रहा है। अतः इस मुद्दे पर पूरे देश को एक होकर सोचना होगा और इसका हल प्राथमिकता देकर निकालना होगा। ग्रामीण अर्थव्यवस्था का हिस्सा सकल रूप में 60 प्रतिशत से भी ऊपर का भी बनता है। अतः इन इलाकों में भी प्रत्येक व्यक्ति को तुरन्त वैक्सीन लगे, हमें यह सुनिश्चित करना होगा। गांवों में वैक्सीन लगाने को हम दूसरे पायदान पर रख कर नहीं देख सकते।