भारत को 8वीं बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का अस्थायी सदस्य चुन लिया गया। इससे पहले भी भारत अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा चुुका है। यद्यपि अस्थायी सदस्य चुना जाना कोई कूदने वाली बात नहीं लेकिन सुरक्षा परिषद में मौजूदगी से किसी भी देश का यूएन प्रणाली में दखल और दबदबे का दायरा बढ़ जाता है। इस समय 8 वर्ष बाद भारत का सुरक्षा परिषद में पहुंचना अहम है क्योंकि चीन लद्दाख में आंखें दिखा रहा है और भारत-चीन सीमा पर तनाव है, पड़ोसी देश नेपाल चीन के उकसावे में आकर कालापानी और लिपुलेख के इलाकों पर अपना दावा जता रहा है। पाकिस्तान ने भारत विरोधी नीति के चलते वोट ही नहीं दिया लेकिन भारत को 194 वोटों में से 184 वोट हासिल हुए। इससे पता चलता है कि भारत का एशिया-प्रशांत में दबदबा काफी बढ़ चुका है। भारत पहली बार 1950 में गैर स्थायी सदस्य के रूप में चुना गया था।
यह बात सत्य है कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद लीग आफ नेशन्स की कार्यशैली की असफलता के बाद सारे विश्व में महसूस किया गया कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति प्रसार और सुरक्षा की नीति तब सफल हो सकती है जब विश्व के सारे देश अपने निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर सम्पूर्ण विश्व को एक ईकाई मानकर अपनी सोच विकसित करें। इसके लिए सतत् प्रयास किए गए। जो भी घोषणाा पत्र इस संदर्भ में सामने आए उनमें प्रमुख थे-लंदन घोषणा पत्र, अटलांटिक चार्टर, संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र, मास्को घोषणा पत्र, तेहरान घोषणा पत्र और डम्बारटम ओव कांफ्रैंस। 2 अक्तूबर, 1944 को वाशिंगटन (डीसी) में यह निर्णय लिया गया कि संयुक्त राष्ट्र की सबसे प्रमुख इकाई सिक्योरिटी कौंसिल अर्थात् सुरक्षा परिषद होगी, जिसके पांच स्थायी सदस्य होंगे चीन, फ्रांस, सोवियत संघ, ग्रेट ब्रिटेन और अमेरिका। सोवियत संघ के विखंडन के बाद रूस सुरक्षा पषिद का स्थायी सदस्य है। तब से लेकर आज तक दुनिया का परिदृश्य काफी बदल चुका है। भारत न केवल दुनिया के मौजूदा शक्ति संतुलन अपितु अधोसंरचनात्मक वजूद में भी एक बड़ी ताकत बन चुका है। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार, चीन के बाद सर्वाधिक तीव्र गति से विकास करती अर्थव्यवस्था है और दुनिया में चौथे नम्बर की सबसे बड़ी फौज है। अमेरिका और रूस के बाद भारत में हर साल सबसे अधिक मैडिकल और इंजीनियरिंग के ग्रेजुएट भारत से ही निकलते हैं। भारत के साफ्टवेयर इंजीनियर पूरी दुनिया में छाये हुए हैं और अनेक भारतीय अमरीकी अंतरिक्ष एजैंसी नासा में भी काम कर रहे हैं, लेकिन भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य अब तक नहीं बनाया गया।
भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का मुद्दा उठाता रहा है। भारत का मानना है कि सुरक्षा परिषद में वास्तविकताओं की झलक दिखनी चाहिए। अब नई वैश्विक परिस्थितियों के अनुसार सुरक्षा परिषद का गठन होना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता बताते रहे हैं। जिस तरह से जेहाद, आतंकवाद, परमाणु प्रसार, जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियां सिर उठा रही हैं, उसका मुकाबला 70 वर्ष पहले की दुनिया को प्रतिबिंबित करने वाली सुरक्षा परिषद नहीं कर सकती। आपसी प्रतिस्पर्धा और निहित स्वार्थों के चलते सुरक्षा परिषद में सुधार की प्रवृत्ति और आयाम के बारे में अभी तक कोई आम राय नहीं बन सकी। अमेरिका, रूस और अन्य देश भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन तो करते हैं लेकिन वास्तव में वह भारत को वीटो पावर देना ही नहीं चाहते। पिछले कुछ वर्षों से जिस तरह से संयुक्त राष्ट्र संघ ने अमेरिका के इशारे पर फैसले लिए हैं या फिर तमाम फैसलों पर उसकी अमेरिका के समक्ष लाचारी दिखी है उससे तो सुरक्षा परिषद ने अपना महत्व ही खो दिया। यह बात दुनिया के विकासशील देशों के दिलो दिमाग में घर कर चुकी है कि संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी प्रासंगिकता खो चुका है।
स्थायी सदस्यता के लिए भारत के पास तमाम योग्यताएं हैं, जहां तक अन्तर्राष्ट्रीय पक्षधरता का सवाल है, उसमें तो अमेरिका, चीन और पाकिस्तान हमारा विरोध करते हैं। चीन समय-समय पर हमारा विरोध करता है, पाकिस्तान उसका मोहरा है। अमेरिका खुलेआम विरोध नहीं करता मगर भीतर से वह भी नहीं चाहता। भारत को वीटो रहित स्थायी सदस्यता स्वीकार नहीं। सुरक्षा परिषद के सदस्यों के मामले में विकसित देशों की भूमिका को नकारना और विषम परिस्थितियों में केवल 5 सदस्यों काे ‘वीटो’ तक की शक्ति देना कहीं न कहीं न्याय को नकारने की बात जरूर है। आज विश्व को आतंकवादी देशों का असली चेहरा दिखाने की जरूरत है। विश्व में आतंकवाद के सबसे बड़े सूत्रधार देश को यह मंच नग्न कर सकता है। सुरक्षा परिषद में सुधार समय की जरूरत है, ऐसा नहीं किया गया तो फिर संयुक्त राष्ट्र अपनी प्रासंगिकता पूरी तरह खो देगा। भारत को स्थायी सदस्यता चाहिए तो केवल वीटो शक्ति के साथ ही चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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