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शाह की सफल कश्मीर यात्रा

गृहमन्त्री श्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर का अपना तीन दिवसीय दौरा समाप्त करके स्पष्ट सन्देश दे दिया है कि भारतीय संघ के इस राज्य से पाकिस्तान का कोई ताल्लुक नहीं है

गृहमन्त्री श्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर का अपना तीन दिवसीय दौरा समाप्त करके स्पष्ट सन्देश दे दिया है कि भारतीय संघ के इस राज्य से पाकिस्तान का कोई ताल्लुक नहीं है और उसकी हैसियत एक आक्रमणकारी देश की है जिसने अवैध तरीके से इस राज्य का बहुत बड़ा हिस्सा जबरन कब्जा रखा है। इसके साथ उन्होंने समस्त जम्मू-कश्मीर वासियों को यह यकीन भी दिलाया है कि भारतीय संविधान के अनुसार पूरा देश उनका है और वे इस भारत के गरिमामय नागरिक उसी तरह हैं जिस तरह किसी अन्य राज्य के लोग।  इसमें कोई दो राय नहीं है कि पिछले 74 साल से जम्मू-कश्मीर के मामले को कुछ लोग त्रिपक्षीय समस्या के रूप में दिखाते रहे हैं मगर श्री शाह ने इसे सम्पूर्ण रूप से भारत के आन्तरिक मामले के रूप में लेते हुए स्पष्ट कर दिया है कि यदि कश्मीर के बारे में सरकार किसी से बात करेगी तो वह इस राज्य के नागरिकों से ही करेगी। बेशक राज्य से अनुच्छेद 370 समाप्त करने के रचनाकार स्वयं गृहमन्त्री ही रहे हैं। अतः उन्होंने श्रीनगर के शेरे कश्मीर स्टेडियम के सम्मेलन कक्ष में आयोजित जनसभा में कश्मीरियों का विश्वास हासिल करने के लिए बेबाक तरीके से स्वीकार किया कि अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद राज्य में कर्फ्यू लागू इस वजह से किया गया जिससे आम नागरिकों को बरगला कर हिंसा का वातावरण न बन सके। इसी वजह से इंटरनेट भी बन्द करना पड़ा था जिससे किसी प्रकार की गलतफहमी को बढ़ावा न मिल सके। 
यह भी हकीकत है कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करना आजाद भारत के इतिहास में बहुत बड़ा और एेतिहासिक फैसला था जिसके संभावित परिणामों के प्रति सचेत रहना श्री शाह का ही दायित्व था। उन्होंने यह काम जिस तत्परता से किया, बेशक उसकी कटु आलोचना भी हुई और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान ने इसे मानवीय अधिकारों के खिलाफ भी प्रयोग करने की कोशिश की परन्तु उसके इरादे इसलिए नाकामयाब हो गये क्योंकि कश्मीरी अवाम ने सब्र से काम लेते हुए नये माहौल को परख कर अपनी प्रतिक्रिया दी और जब उसने यह देख लिया कि केन्द्र की सरकार उनके लोकतान्त्रिक अधिकारों को जमीन पर उतार कर अमली जामा पहनाने की कोशिश कर रही है तो उन्होंने अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग किया।  जिला विकास परिषदों के हुए चुनाव इसका सबूत माने जायेंगे जिनके माध्यम से जनता को अपने विकास की योजनाएं खुद बनाने का हक मिला। राज्य में जमीन जम्हूरियत का एहसास लोगों को इस तरह हुआ कि उन्हें 370 हटने का गिला जाता रहा। 
दरअसल यही जम्मू-कश्मीर में बदलाव की शुरूआत थी जो 370 हटने के बाद शुरू हुई। मैं पहले भी कई बार लिख चुका हूं कि जम्मू-कश्मीर भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धान्त की कसौटी है क्योंकि पूरे मुल्क में यह एकमात्र राज्य है जहां मुस्लिम नागरिक बहुसंख्यक हैं। अतः देश की हर सरकार के लिए यह राज्य भारत की विविधता में एकता का महाप्रमाण है जिसे पाकिस्तान अपने मजहबी फलसफे से असफल करने की फिराक में रहता है। मगर कश्मीर की संस्कृति ने इसकी इजाजत कभी नहीं दी और यहां के लोगों ने हिन्दू-मुसलमान के अन्तर को सिर्फ निजी धार्मिक मामला समझा और भारत की सरपरस्ती में ही शुरू से रहना चाहा। इसका गवाह जम्मू-कश्मीर का अपना वह संविधान था जो 5 अगस्त, 2019 से पहले तक इस सूबे में लागू था।  अतः यह बेसबब नहीं है कि श्री शाह जम्मू-कश्मीर के दौरे पर उस वक्त गये जबकि पाकिस्तान परस्त आतंकवादी गैर कश्मीरी व गैर मुस्लिमों को चुन-चुन कर मार रहे थे। शाह ने सन्देश दिया कि हिन्द की हुकूमत पाकिस्तान के इन कातिलाना कारनामों को बुजदिली का निशान मानते हुए चुनौती देती है कि हिम्मत है तो कश्मीरियों के मुल्क के लिए ईमान को डिगा कर दिखाओ? इसलिए गृहमन्त्री के इस कथन पर गौर किया जाना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा भी चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन मुकम्मिल हो जाने पर दिया जायेगा। इसलिए इस राज्य की सियासी पार्टियां 370 या पाकिस्तान के साथ बातचीत करने के नाम पर जो लफ्फाजी कर रही हैं वह केवल अपना वजूद बचाने की गरज से ही कर रही हैं। 
हकीकत यह है कि इस सूबे से अब अब्दुल्ला और मुफ्ती खानदानों की जागीरदारी खत्म हो चुकी है क्योंकि लोकतन्त्र की बयार सीधे नीचे जमीन पर बह चुकी है और लोगों को पता लग चुका है कि भारत के संविधान के मुताबिक इस लोकतन्त्र के मालिक वे खुद हैं जिसमें जो भी सरकार चुनी जाती है वह उनकी नौकर से ज्यादा कुछ नहीं होती। 370 की आड़ में जम्मू-कश्मीर पर खानदानी राज कायम करने की कोशिश अब कामयाब नहीं हो सकती क्योंकि अवाम ने अपनी ताकत को पहचान लिया है। यह तो साफ हो चुका है कि श्री शाह के लिए जम्मू-कश्मीर अब कोई पहेली नहीं है क्योंकि यहां की अवाम का यकीन उन हकों पर जम चुका है जो उन्हें 370 खत्म होने के बाद मिले हैं। मगर एक पेंच पाक अधिकृत कश्मीर का जरूर बाकी है जो भारत के संविधान के अनुसार भारतीय संघ का ही अटूट हिस्सा है। निश्चित रूप से इस मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ ही बातचीत करनी पड़ेगी क्योंकि उसने इस इलाके की अवाम को अपना गुलाम जैसा बना रखा है। उन्हें गुलामी से निजात दिलाने के लिए भारत की सरकार को सैनिक हल से लेकर बातचीत के विकल्पों पर विचार करना होगा। मगर हैरत है कि जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रीय दल इस मुद्दे पर बातचीत करने से गुरेज करते हैं जबकि 5 अगस्त, 2019 से पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा मंे 24 सीटें इस इलाके के लोगों के नुमाइन्दों के लिए खाली रहा करती थीं।

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