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शशि थरूर और प्रधानमंत्री की टोपी

एक तरफ जब देश गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है तथा चौतरफा अफरातफरी और अराजकता का माहौल बनता जा रहा है और संसद के सत्र के चालू रहते

एक तरफ जब देश गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है तथा चौतरफा अफरातफरी और अराजकता का माहौल बनता जा रहा है और संसद के सत्र के चालू रहते विभिन्न मुद्दों पर बाकायदा बहस करने की कोशिश भी की जा रही है और उन मसलों को केन्द्र में लाने की विपक्ष लगातार कोशिश कर रहा है जिनका सीधा सम्बन्ध इस देश की 125 करोड़ से ज्यादा आबादी से हो सकता है तो कांग्रेस के लोकसभा सांसद शशि थरूर एेसे अनावश्यक मामलों को उठाने की कोशिश करते रहते हैं जिनका सरोकार उनकी ही अपनी पार्टी कांग्रेस को हाशिये पर खड़ा करने से होता है। देश का प्रधानमंत्री किसी राज्य में जाकर कौन सी वेशभूषा पहनता है इसका राजनीतिक विमर्श से क्या लेना-देना हो सकता है ? मतलब इस बात से होता है कि वह वहां जाकर क्या कहता है। कांग्रेस पार्टी के सांसद के रूप में शशि थरूर को इससे क्या फर्क पड़ता है कि श्री नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमन्त्री के रूप में जब उत्तर-पूर्वी राज्यों के दौरे पर जाते हैं तो वह उन राज्यों की पारंपरिक वेशभूषा में होते हैं। यह उनका विशेषाधिकार है कि वह नागालैंड में जाकर वहां की जनजातीय पगड़ी पहनें या पंजाब जाकर वहां की सिख पगड़ी धारण करें। इसका राजनीतिक मुद्दों से क्या लेना-देना हो सकता है मगर शशि थरूर जानबूझ कर एेसे ही मुद्दे पिछले कुछ दिनों से उठा रहे हैं जिससे सत्तारूढ़ भाजपा व विपक्षी पार्टी कांग्रेस को सीधे-सीधे साम्प्रदायिक खेमों में बांटा जा सके।

वह कभी हिन्दू पाकिस्तान की बात उठाकर राजनीति का साम्प्रदायीकरण करना चाहते हैं तो कभी उत्तर-पूर्वी राज्यों को कांग्रेस के विरोध में खड़ा करना चाहते हैं मगर उन्होंने यह कहकर भाजपा के हाथ में एेसा अस्त्र दे दिया जिससे कांग्रेस पार्टी को मुस्लिम पार्टी कहने में भाजपा को सुविधा हो सके। उन्होंने कहा कि प्रधानमन्त्री इधर-उधर की पारंपरिक पगडि़यां तो पहन सकते हैं मगर मुस्लिम टोपी पहनने से उन्हें गुरेज है। यह श्री नरेन्द्र मोदी का व्यक्तिगत चुनाव है कि वह किस प्रकार की पगड़ी या टोपी पहनें। यदि उन्होंने मुस्लिम टोपी नहीं पहनी तो इससे कांग्रेस पार्टी को क्या लेना-देना? यह देखना प्रधानमन्त्री का काम है कि उन्हें किस तरह की टोपी पहननी है और किस तरह की नहीं पहननी है। नाहक ही एेसे विषयों को उठाकर शशि थरूर सिद्ध करना चाहते हैं कि भाजपा की सोच क्या है? जो भाजपा की सोच है वह सभी देशवासियों के समक्ष है मगर थरूर इस बात को कहकर देशवासियों को समझाना चाहते हैं कि कांग्रेस पार्टी मुसलमानों की सबसे बड़ी खैरख्वाह है। उन्हें यह बात समझाने की जरूरत नहीं है क्योंकि हर भारतवासी की आंखें खुली हुई हैं और वह अपना दिमाग लड़ाना जानता है। अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है जब एक उर्दू अखबार में यह खबर छप गई थी कि मुस्लिम विद्वानों के साथ हुई बैठक में श्री राहुल गांधी ने यह कहा था कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है।

इस पर जमकर बहस-मुबाहिसा छिड़ गया था। जब यह मामला ठंडा हुआ तो शशि थरूर ने मुस्लिम टोपी का जिक्र करके इसे फिर से सुलगा दिया। सवाल उठना लाजिमी है कि शशि थरूर के दिमाग में एेसे मुद्दे ही क्यों आते हैं जिनसे यह कहने में सुविधा हो सके कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है। दरअसल कांग्रेस पार्टी में जिस तरह हवाई लोगों को रातोंरात नेता बनाने की परंपरा शुरू हुई इसी का यह परिणाम है। शशि थरूर राष्ट्र संघ में नौकरी करते थे और अमेरिकी संस्कृति में इस कदर लबरेज थे कि उन्होंने अपने देश के ही राष्ट्रगान गाने की पद्धति को ही नकार दिया था। अमेरिका की तरह हाथ सीने पर रखकर इसे गाने को सही बताया था। वह मनमोहन सरकार में विदेश विभाग में राज्यमन्त्री भी बना दिए गए। कांग्रेस पार्टी ने क्या खूबी देखकर उन्हें अपनी पार्टी का दो बार तिरुअन्तपुरम से लोकसभा का प्रत्याशी बनाया और मन्त्री पद तक दिया यह तो वही जाने मगर जो व्यक्ति हवाई जहाज की किफायती सीटों की श्रेणी को कैटल क्लास (पशुओं का बाड़ा) मन्त्री रहते हुए बता सकता है उसकी मानसिकता का अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह राजनीति में क्या करने आया है?

अगर शशि थरूर ने सोच लिया है कि वह कांग्रेस में रहते हुए ही इसकी नैय्या डुबाेने के इन्तजाम करेंगे तो उन्हें खुलकर कहना चाहिए कि वह मन से कांग्रेसी नहीं हैं। जो व्यक्ति यह कह सकता है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिन पर छुट्टी नहीं होनी चाहिए बल्कि इस दिन और मेहनत से काम करना चाहिए, उसके दोगलेपन को समझा जा सकता है मगर दिक्कत यह है कि ‘किराये के कांग्रेसियों’ को इस कदर पार्टी में तवज्जो दी जा चुकी है कि अब वे खुद को इस पार्टी के सिद्धान्तों से ऊपर समझने लगे हैं। आज तक शशि थरूर ने कभी भी उस आम हिन्दोस्तानी के दर्द की बात नहीं कही बल्कि जब भी बात की तो उसके जख्मों पर नमक​ छिड़कने की ही की। क्योंकि एेसे सुविधाभोगी लोग राजनीति को सेवा का माध्यम बनाने नहीं आते बल्कि सत्ता का मजा चखने आते हैं। क्या वजह है कि उन्हें प्रधानमन्त्री की आलोचना करने के लिए सिर्फ टोपी ही मिली !

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