आज फिर हमें मां छोड़ कर चली गई। जो मेरी मां, सबकी मां थी। हां वो मेरी जननी नहीं थी परंतु जननी से बढक़र थी, मेरी सांस में सांस लेती थी। मुझे खुश देखकर चेहरा खिल उठता था, मुझे उदास देखकर मुरझा जाती थी। उनके पास प्यार का समुद्र था, ठंडी हवाओं वाला आंचल था। आशीर्वाद दुआओं से भरे हाथ थे। वो सबके लिए प्रेरणास्त्रोत थी। अगर सही मायने में बताऊं यह सिर्फ मेरी फिलिंग नहीं थी, शायद जो भी व्यक्ति उनके सम्पर्क में आया उसको अहसास था, सबको लगता था वो मेरी मां है, वो मेरी सास है, वो मेरी गुरु है। इसलिए तो हम सबने उनको राजमाता का खिताब दिया था।
भले वो अपनी भरपूर जिंदगी जी कर गई हैं, 91 वर्ष की होकर ईश्वर के पास गई हैं परंतु फिर भी हमारा अभी उनसे दिल नहीं भरा था। लगता था शायद उन्हें हम सबके लिए और जीना चाहिए। सच में पूछो तो उनका भी जाने का मन नहीं था, बहुत बार वो जाते-जाते लौट आती थी। बहुत बार आईसीयू से वापिस आ जाती थी। कई बार आईसीयू में कविताएं लिख देती थी। मुझे हमेशा झट से डांटती थी कि तू यह वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब जल्दी नहीं खोल सकती थी। गर्मी हो तो अपने हाथ का बना बादामों वाला शरबत बनाती थी। सर्दी हो तो पंजीरी बनाती थी। कोई त्यौहार हो या जन्मदिन शगुन पकड़ा देती थी। घर में जाती तो अपने हाथ से बनाकर परांठा खिलाती, सफेद मक्खन खिलाती। कहने को तो उनकी दो बेटियां हैं परंतु वो मुझे उनसे ज्यादा प्यार करती थीं क्योंकि उनकी बेटियां उनकी बहुत सेवा करती, प्यार करती परंतु उनसे ज्यादा प्यार मैं ले जाती। अभी तो उनकी दोनों बेटियों और दोनों दमादों ने साबित कर दिया कि बेटियां किसी से कम नहीं। दमाद भी बेटों से कम नहीं बेटियां तो हमेशा सेवा करती है पर दमादों ने जो सेवा की वो वर्णन लायक है।
वो सबके लिए एक प्रेरणास्त्रोत थीं, जो सदा हंसती, मुस्कुराती थीं। अपने गम को किसी को जाहिर नहीं होने देती, उनका जवान बेटा असमय उनको छोडक़र भगवान को प्यारा हो गया था। उनके पति प्रसिद्घ डॉक्टर ठुकराल भी उनको जल्दी छोडक़र चले गए थे परंतु उन्होंने अपनी जिंदगी को खुशनुमा बनाते हुए सबकी जिंदगियों में खुशियां भर दी। उनका घर एक मायके की तरह था, उनका घर एक भगवान के आश्रम की तरह था, जिसमें उनके साथ उनकी बूढ़ी मासी, बहन और भांजा रहते थे। वो अपना गम छुपाकर सबके लिए हंसती-गाती थीं। हर फंक्शन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी बढ़चढ़ कर तैयार होती थी मैचिंग ज्वैलरीपूरी पकडऩा क्या बात थी। पूरी यंग गर्ल लगती थी। कभी वो महाराष्ट्री तैयार होती थी कभी लहंगा पहनती थी, कभी साड़ी हर कोई उन्हें राजमाता कहता था। पंजाबी बाग की हैड किरण मदान ने हमेशा उन्हें अपनी सासू मां, गुरु की तरह पूजा तथा उनका बिल्कुल सासू मां की तरह ख्याल रखती थी। पश्चिम विहार की रमा जी तो वाकई उनके सुख-दु:ख का सहारा थीं। हर समय उनकी सेवा में तैयार रहती थीं। रमा जी के इस नि:स्वार्थ प्यार से मैं कायल थी। चाहे कोई वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब का सदस्य हो, चाहे वॉलंटियर हो, चाहे कोई पंजाब केसरी के ऑफिस के कर्मचारी सभी उन्हें आदर सम्मान देते थे और वह सबको प्यार देती थी।
पंजाबी बाग की ब्रांच पहले उनके घर के ड्रॉइंग रूम में खुली थी। उनके जाने का सबको बहुत दु:ख है। असल में वरिष्ठनागरिक केसरी क्लब एक प्यार-सम्मान का मंच है, परिवार है। अगर इसका कोई भी सदस्य चला जाता है तो बहुत दु:ख होता है, डिप्रेशन होता है। इसलिए यह काम बहुत कठिन लगता है। इसमें खून के रिश्तों से ज्यादा प्यार वाले रिश्ते हैं। और यह तो हमारी राजमाता गई हैं जो सबके दिलों में राज करती थी।