देश के कई राज्यों में स्वाइन फ्लू का कहर बरपा हुआ है। गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और दिल्ली सहित कई राज्यों में स्वाइन फ्लू के चलते सैकड़ों मौतें हो चुकी हैं। अकेले गुजरात में इस बीमारी से 242 लोगों की मौत हो चुकी है। उत्तर प्रदेश में 700 मामले सामने आ चुके हैं और 21 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। स्कूलों में सुबह की प्रार्थना सभाएं रद्द कर दी गई हैं। महाराष्ट्र में तो यह बीमारी बेकाबू होती जा रही है। आंकड़ों के मुताबिक 13 अगस्त तक 4011 मामले दर्ज किए गए और 404 मरीजों की मौत हो चुकी है। राजधानी दिल्ली एक बार फिर स्वाइन फ्लू की चपेट में नजर आ रही है। इसके अलावा स्वाइन फ्लू का वायरस कर्नाटक, राजस्थान और केरल में भी तेजी से पैर पसार रहा है। सरकार समझ नहीं पा रही है कि आमतौर पर सर्दियों में होने वाला स्वाइन फ्लू इस बार मानसून के सीजन में कैसे फैल रहा है। स्वाइन इन्फ्लूएंजा संक्रामक सांस का रोग है जो कि सामान्य रूप से केवल सूअरों को प्रभावित करता है।
2009 के दौरान सूअर इन्फ्लूएंजा वायरस की नई स्ट्रेन मैक्सिको में उभरी और उसने मनुष्यों में रोग पैदा करना शुरू कर दिया। इसे एच-1 एल-1 कहा जाता है, जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है। स्वाइन इन्फ्लूएंजा दुनियाभर के सूअर उत्पादक देशों में मौजूद है। भारत में 2009, 2010, 2012, 2013 और 2015 में इस बीमारी ने काफी आतंक मचाया लेकिन यह रोग जनवरी-फरवरी में अधिक फैला लेकिन इस बार तो उसने गर्मियों में ही आतंक मचा रखा है। इस रोग का फैलना इस बात का प्रमाण है कि हमारे देश का हैल्थ सैक्टर खुद कितना बीमार है और दूसरा हम स्वच्छता के प्रति जागरूक नहीं हैं।
गोरखपुर के अस्पताल में बच्चों की मौत पर लोगों का आक्रोश फूटना पूरी तरह जायज है। इन मौतों के लिए अस्पताल प्रशासन, अस्पतालों की निगरानी के लिए बैठे सरकारी अफसरों और राज्य में मस्तिष्क ज्वर की देखभाल का जिम्मा सम्भाल रहे लोगों की आपराधिक लापरवाही का मामला बनता है। उनकी यह लापरवाही उन बच्चों की जिन्दगी पर भारी पड़ी जो बेहतर बचपन और जिन्दगी के हकदार थे। इससे पहले केरल में भी मस्तिष्क ज्वर फैला था, जिसमें 400 से ज्यादा मौतें हुई थीं। इससे पता चलता है कि राज्यों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की हालत कितनी खराब है। बच्चों की मौतों पर बवाल मचने के बावजूद गोरखपुर और आसपास के अस्पतालों में मस्तिष्क ज्वर से मौतों का सिलसिला जारी है। मस्तिष्क ज्वर की बीमारी का सीधा सम्बन्ध स्वच्छता से है लेकिन न तो लोग स्वच्छता रख रहे हैं और स्वास्थ्य सेवाओं में भ्रष्टाचार, लापरवाही और नौकरशाहों की उपेक्षा से पूरा तंत्र ही बीमार है।
आजादी के 70 वर्ष बाद भी यह कितना शर्मनाक है कि देश में बुखार, डेंगू, मलेरिया, हैपेटाइट्स ए और बी, स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियों से लोग मर रहे हैं। यह भी कितनी शर्मनाक बात है कि आजादी के 70 वर्षों में लोग अपने घरों में टॉयलेट नहीं बना पाए। प्रधानमंत्री को बार-बार अपील करनी पड़ रही है कि खुले में शौच मत करो। सच यह भी है कि कम्प्यूटर का वायरस भी एंटी वायरस साफ्टवेयर वाली कम्पनियां ही बनाती हैं। पहले वायरस बनाओ फिर डर पैदा करो, फिर एंटी वायरस बेचो। एक अमेरिकी कम्पनी जो स्वाइन फ्लू की दवा टैमी फ्लू बनाती है, उसने अरबों रुपए का व्यापार किया है। पहले वायरस फैलाया जाता है, फिर डर पैदा किया जाता है और फिर दवाई बेची जाती है। कम्पनियों की बात छोडिय़े, पैसा कमाने के लिए लोग मास्क बनाकर भी बेचेंगे और लोग धड़ल्ले से खरीदेंगे भी।
देशभर में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए आज ठोस कदम उठाने की जरूरत है। 70 वर्षों से भ्रष्टाचार और लापरवाही को विदाई देकर उसकी जगह विश्वसनीय, मरीज हितैषी स्वास्थ्य क्षेत्र को स्थापित करना आज भी जरूरत है। राजनीतिक नेतृत्व को इसके लिए बड़ी भूमिका निभानी होगी। हालात खराब होने या आपात स्थिति में स्वास्थ्य सेवाओं का अमला सक्रिय हो जाता है लेकिन फिर सामान्य हो जाता है। हर साल मानसून में बीमारियां फैलती हैं तो यह अमला पहले ही सक्रिय क्यों नहीं होता। बीमारियां फैलने के बाद ही सक्रियता क्यों नजर आती है जबकि इनकी रोकथाम के लिए तैयारी पहले से ही करनी चाहिए। स्वास्थ्य क्षेत्र खुद ही बीमार है तो फिर जिन्दगियां सुरक्षित कैसे रह सकेंगी?