पंजाब में छोटी सरकार यानी तीन नगर निगमों और 32 नगर पालिकाओं के चुनावों में कांग्रेस ने अपना परचम लहरा दिया है। भारतीय जनता पार्टी, शिरोमणि अकाली दल बादल और आम आदमी पार्टी को करारी हार मिली है। 10 वर्षों से पंजाब की सत्ता पर काबिज अकाली-भाजपा गठबंधन का ताे बुरा हाल हुआ है क्योंकि ये दल केवल खाता खोलने तक सीमित रहे। जालन्धर, अमृतसर और पटियाला नगर निगमों पर कांग्रेस की जीत काफी महत्वपूर्ण है। आम आदमी पार्टी का तो इन चुनावों में खाता भी नहीं खुला। वैसे तो स्थानीय निकाय चुनाव में मुद्दे स्थानीय ही होते हैं। पानी, बिजली, सड़कें, स्वच्छता, स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य सेवाएं आैर अन्य जनसुविधाएं। अक्सर यह भी देखा जाता रहा है कि राज्य में सत्ता जिस भी पार्टी की होती है, वहां स्थानीय निकाय चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी ही विजय प्राप्त करती है।
मतदाताओं की सोच यही रहती है कि क्षेत्र के विकास के लिए ऐसे लोग ज्यादा जीतें जो अपने प्रभाव से और सत्तारूढ़ दल के विधायकों और सांसदों से समन्वय स्थापित कर फण्ड अलॉट करा सकें। अगर विधायक सत्तारूढ़ पार्टी का हो आैर पार्षद विपक्षी पार्टी का हो तो टकराव निश्चित ही होता है। रस्साकशी आैर विकास कार्यों का श्रेय लेने की होड़ लग जाती है लेकिन पंजाब के नगर निकायों के चुनाव में बड़ा मुद्दा था बिजली। कांग्रेस ने विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा आैर वायदा किया कि पंजाब में छोटे उद्योगों को 5 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली मिलेगी। नगर निकाय जलापूर्ति की पूरी व्यवस्था करेंगे। हालांकि 9 माह पहले सत्ता में आई कैप्टन अमरेन्द्र सिंह सरकार के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं।
पंजाब की अर्थव्यवस्था की हालत काफी बिगड़ी हुई है। कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में किसानों का कर्ज माफ करने की घोषणा की थी, वह मसला भी अभी अटका पड़ा है। अनाज का कटोरा माने जाने वाले पंजाब का अर्थतंत्र पूर्व की सरकारों की लोक-लुभावन नीतियों के चलते कमजोर हो चुका है। पंजाब सरकार के खजाने में पैसे होंगे तभी किसानों का कर्ज माफ होगा। कैप्टन अमरेन्द्र सरकार अपने बलबूते पर खजाने में राजस्व जुटाने का प्रयास कर रही है। किसी भी राज्य सरकार का जनाकांक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरना बड़ी चुनौती होती है। पंजाब में जमीनी स्तर पर लोगों ने कांग्रेस को विजय दिलाकर कैप्टन अमरेन्द्र सरकार की नीतियों पर मुहर लगा दी है। यह भी सच है कि पंजाब के लोग पूर्ववर्ती सरकार की लूट-खसोट की नीतियों और भ्रष्टाचार को अभी भूले नहीं हैं। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आंधी के बीच भी अमृतसर संसदीय सीट से विजयी होकर आ गए थे। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विजय सांपला भले ही होशियारपुर सीट से सांसद हैं लेकिन वह मूल रूप से जालन्धर के निवासी हैं।
जालन्धर के 80 वार्डों में से 66 पर कांग्रेस का कब्जा हो गया है। भाजपा के कई दिग्गजों का पत्ता साफ हो गया है। दो-दो बार जीतते आए पार्षद भी हार गए हैं। इससे पता चलता है कि भाजपा आैर अकाली दल का जनाधार खिसक चुका है। अमृतसर में निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की प्रतिष्ठा दाव पर थी। उन्होंने भी इन चुनावों में कड़ी मेहनत की। अमृतसर में तो अकाली दल का व्यापक जनाधार रहा है लेकिन वह भी काम नहीं आया। पटियाला तो कैप्टन अमरेन्द्र सिंह का गृह क्षेत्र है। अब तक पटियाला में कोई पार्टी इस तरह से नहीं जीती जिस तरह से पटियाला में कांग्रेस जीती है। अब भले ही शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल सरकार पर बूथ कैप्चरिंग का आरोप लगाएं या फिर लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगाएं। भाजपा भले ही इन चुनावों में धांधलियों को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाए लेकिन कैप्टन के ताज में जीत का तीसरा तमगा जुड़ चुका है। लोकतंत्र में जनता ही निर्णायक होती है आैर जनता के जनादेश को स्वीकार करना ही समझदारी होती है। अब राज्य सरकार और स्थानीय सरकार की जिम्मेदारी है कि वह शहरों का समावेशी विकास करवाए।