ब्रिटिश साम्राज्य मानवीय इतिहास में सबसे बड़ा साम्राज्य था। तब कहा जाता था कि ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्य कभी नहीं डूबता। एक सदी से भी अधिक समय तक यह दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य और आर्थिक महाशक्ति था, लेकिन धीरे-धीरे ब्रिटिश साम्राज्य सिकुड़ता चला गया। इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और आयरलैंड तथा वेल्स मिलकर यूनाइटेड किंगडम बना था। 1921 में आयरलैंड स्वतंत्र देश बन गया था, लेकिन उसका उत्तरी हिस्सा यानि नॉर्दन आइलैंड यूके का हिस्सा बना रहा। इसके बाद स्कॉटलैंड में ब्रिटेन से अलग होने की मांग उठती रही। स्कॉटलैंड की आजादी की मांग अब फिर उठनी शुरू हो गई है। स्कॉटलैंड की संसद ने बड़ा कदम उठाते हुए देश को पहला नेता दिया है। स्कॉटिश नैशनल पार्टी ऑफ स्कॉटलैंड ने निकोला स्टर्जन को राजनीतिक दल चीफ के तौर पर चुना है। निकोला ने अध्यक्ष बनते ही देश के लिए ऐतिहासिक कदम उठाया और हमजा यूसुफ को फर्स्ट मिनिस्टर के तौर पर नियुक्त किया। फर्स्ट मिनिस्टर का अर्थ स्कॉटलैंड का प्रधानमंत्री बनना है। हमजा यूसुफ पाकिस्तानी मूल के हैं। उनके पिता 1960 में पाकिस्तान से स्कॉटलैंड आ गए थे। हमजा यूसुफ कई पदों पर रह चुके हैं लेकिन पहला मुस्लिम फर्स्ट मिनिस्टर बनते ही स्कॉटलैंड की आजादी की रट लगा दी है। हमजा आजादी के लिए एक और जनमत संग्रह कराना चाहते हैं।
ब्रिटेन की राजनीति पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ हमजा यूसुफ को स्कॉटलैंड के अगले जिन्ना के तौर पर देख रहे हैं। ब्रिटेन में भारतीय मूल के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने उनकी आजादी की मांग को ठुकरा दिया है, लेकिन दोनों ने ही एक-दूसरे के सामने चुनौती फैंक दी है। हमजा यूसुफ ने स्कॉटलैंड की आजादी का संकल्प लेते हुए पूर्व नेता निकोला स्टर्जन की नीतियों को आगे बढ़ाने की कसम खाई है। उनके अड़ियल रुख से ब्रिटेन में चिता की लहर पैदा हो गई है। स्कॉटलैंड के ब्रिटेन से अलग होने की मांग के पीछे कई कारण हैं। पहला कारण ये है कि पूर्व युगोस्लाविया का जिस तरह से हिंसक विघटन हुआ था, उसकेविपरीत स्कॉटलैंड की आजादी इस आधुनिक नजरिये को बतलाती है कि इस देश में हर कोई अपनी जातीय, धार्मिक और भाषाई पहचान से ऊपर से उठकर एक स्कॉट है। दूसरी वजह ये है कि स्कॉटलैंड के लोगों को काफी हद तक सांस्कृतिक आजादी हासिल है, लेकिन इसके बावजूद वे राजनीतिक आजादी को तरजीह देते हैं। इससे ये पता चलता है कि राष्ट्रों की परिभाषा जातीय या भौगोलिक पहचान से तय नहीं की जाती है, बल्कि वे कैसा समाज चाहते हैं, इससे तय होती है। स्कॉटलैंड की आजादी सदियों से चली आ रही कोई गम्भीर रवायत नहीं है, बल्कि 35 सालों तक चले थैचर युग, न्यू लेबर और अब डेविड कैमरन की नीतियों में स्कॉटिश मूल्यों को नजरअंदाज करने का नतीजा है। इससे स्कॉट लोगों को अपनी अर्थव्यवस्था और समाज के बारे में फिक्र होने लगी।
स्कॉटलैंड के लोगों में यह भी धारणा है कि ब्रिटेन ने उसके संसाधनों का इस्तेमाल जमकर किया है। आज यह कहा जाता है कि दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक समस्याएं ब्रिटिश साम्राज्य की देन है। अंग्रेजों ने भारत में जाते-जाते न केवल देश का बंटवारा किया, बल्कि उसने कश्मीर समस्या को भी जन्म दिया। उसने फिलिस्तीन का विभाजन कराया। जो बाद में मिडिल ईस्ट का सबसे बड़ा विवाद बना। अब उसके खुद के घर में स्कॉटलैंड की आजादी की चिंगारी फिर से सुलग रही है। कई लोगों ने यूसुफ की इस मांग पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि जो बात निकोला में थी, यूसुफ में वह करिश्मा नजर नहीं आता है। ऐसे में उनके लिए स्कॉटलैंड की आजादी के लिए समर्थन जुटाना मुश्किल है। यूके के पीएम सुनक, हमजा के साथ मिलकर काम करने को तो इच्छुक हैं लेकिन वह उन्हें स्वतंत्रता के लिए नए सिरे से वोटिंग की मंजूरी नहीं देंगे। सितम्बर 2014 में स्कॉटलैंड के मतदाताओं को दो विकल्प दिए गए थे, इसमें उन्हें यूके और स्कॉटलैंड में से किसी एक को चुनना था। 55 फीसदी लोगों ने यूके तो 45 फीसदी ने ही स्कॉटलैंड में रहने का फैसला किया था।
एक और जनमत संग्रह 2018 में उस समय हुआ था जब ब्रिटेन में बैग्जिट को लेकर वोटिंग हुई थी। 62 प्रतिशत स्कॉटलैंड के लोगों ने यूके में रहने की बात कही तो 38 फीसदी लोगों ने स्कॉटलैंड को अलग देश बनाने के पक्ष में वोट दिया था। इसके बाद भी एक और जनमत संग्रह कराने की बात उठी, जिसे यूके के सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया था। अह हमजा यूसुफ फिर से आजादी की मांग उठा रहे हैं। प्रधानमंत्री ऋषि सुनक हमजा यूसुफ के साथ मिलकर काम करने को तैयार हैं लेकिन देखना यह है कि वह आजादी की मांग से कैसे निपटते हैं और दूसरी तरफ हमजा यूसुफ अपने संघर्ष को किस चरम तक पहुंचाते हैं, यह देखना अभी बाकी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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