नव वर्ष के मौके पर केरल, कर्नाटक और असम में स्कूल खुल गए हैं। कोरोना के नये यूके स्ट्रेन के दृष्टिगत राज्य सरकारों ने सतर्कता के साथ स्कूल खोलने का फैसला किया है। इससे पहले उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, सिक्किम में पहले से ही स्कूल आंशिक रूप से खुल चुके हैं। कोरोना महामारी की वजह से स्कूल-कालेज और उच्च शिक्षा संस्थान बंद थे। छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा दी जा रही थी। अनलॉक प्रक्रिया में 14 सितम्बर से गृह मंत्रालय ने स्कूल खोलने की छूट दी थी। इसके बाद धीरे-धीरे कई राज्यों में नौवीं से लेकर 12वीं तक के छात्रों के लिए स्कूलों को फिर से खोला गया। दिल्ली समेत कई राज्यों में स्कूल अभी भी बंद हैं।
असम में तो प्राथमिक स्कूलों से लेकर यूनिवर्सिटी स्तर के संस्थान सितम्बर महीने से ही चरणबद्ध ढंग से स्कूल खोले जा रहे हैं। बिहार, पुड्डुचेरी और पुणे में भी आज से स्कूल खोल दिये गए हैं। जिन राज्यों में स्कूल खोले गए हैं वहां कोरोना गाइड लाइन का पालन किया जा रहा है। स्कूल खोले जाने से छात्र खुश और उत्साहित नजर आए और वे फेस मास्क और दूसरे प्रोटोकॉल का पालन करते दिखाई दिये। यद्यपि अभी छात्र कम ही आ रहे हैं, लेकिन जैसे-जैसे भरोसा बढ़ेगा वैसे-वैसे ही छात्रों की क्लासों में संख्या भी बढ़ेगी। जिस तरह से स्कूलों में सैनेटाइजेशन की व्यवस्था की गई है उससे अभिभावकों में भी स्कूलों में पर्याप्त व्यवस्था देखकर भरोसा बढ़ रहा है। स्कूल आने वाले छात्रों का कहना है कि ऑनलाइन कक्षाओं की तुलना में ऑफलाइन कक्षाएं ही बेहतरीन हैं क्योंकि ऑनलाइन कक्षाओं में कई बार तो कुछ समझ में ही नहीं आता था और घर में रह कर पढ़ना काफी मुश्किल है। जहां तक राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की बात है तो यहां की सरकार का कहना है कि जब तक कोविड वैक्सीन नहीं आ जाती तब तक स्कूल खोलना सही नहीं। अब जबकि कोरोना वैक्सीन लगाने का काम शुरू हो जाएगा तो दिल्ली सरकार भी अगस्त से स्कूल खोलने की योजना पर विचार कर रही है। मध्य प्रदेश और झारखंड में तो स्कूल दिसम्बर से ही खुले हुए हैं।
देश अब कोरोना काल से बाहर निकल रहा है। अब जबकि होटल, रेस्तरां, सिनेमा, शॉपिंग मॉल, बाजार सब खुल चुके हैं। तो शिक्षण संस्थाओं को ज्यादा दिन बंद रखना उचित नहीं है। स्कूली बच्चों को निराशा या अवसाद की स्थिति से उभार कर उन्हें फिर से शिक्षा की सार्थकता से आश्वस्त करना बहुत जरूरी है। जल्दी से जल्दी उच्च शिक्षा संस्थानों को खोलना भी बहुत जरूरी है ताकि युवाओं की शक्ति के इस्तेमाल से उत्पादक रास्ते खुल सकें। कोरोना काल में सबसे ज्यादा नुक्सान शिक्षा क्षेत्र को ही हुआ है। लॉकडाउन में छात्रों पर बहुत भयंकर प्रभाव पड़े हैं। बच्चे मानसिक और शारीरिक रूप से बहुत प्रभावित हुए हैं। कई महीनों तक घर में बंद रह कर बहुत तनाव झेला। यद्यपि ऑनलाइन शिक्षा काफी अधिक सहायक रही लेकिन एक ही जगह रहते-रहते वे चिड़चिड़ाते हो गए हैं। शिक्षा वह माध्यम है जिसके जरिए जाती हुई पीढ़ी नई पीढ़ी में अपनी आत्मा का प्रवेश करा जाती है लेकिन ऑनलाइन शिक्षा का दूसरा पहलू यह भी है कि इसने सामाजिक विभाजन को बढ़ावा ही दिया है। एक वर्ग यह है जो स्मार्टफोन और महंगे उपकरण रखता है, दूसरा वर्ग ऐसा है जिसके पास ऐसे कोई साधन और सुविधा ही नहीं है। कोरोना काल में लड़कियों की शिक्षा काफी प्रभावित हुई । यह वास्तविकता है कि वर्चुअल शिक्षा स्कूली कक्षाओं का विकल्प नहीं बन सकी। जो बच्चे स्कूल में जाकर अपने सहपाठियों के बीच रह कर जो कुछ सीख सकते हैं, वह घर पर रह कर नहीं सीख सकते। बच्चे स्कूल में जाकर सामाजिक व्यवहार भी सीखते हैं। बड़े होकर समाज से कैसे और किस तरह संवाद कायम करना चाहिए उसका व्यावहारिक ज्ञान वह पाठशाला में ही सीख सकते हैं। जीवन की चुनौतियों का सामना कैसे किया जाना चाहिए या फिर अपने लक्ष्य तक कैसे पहुंचना है, इसके लिए आत्मविश्वास भी वह स्कूल में ही सृजित कर लेता है।
ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी सामने आ रही थी। आंखों में समस्या होने लगी थी। स्मरण शक्ति भी कम हो रही थी। घरों में अधिकांश समय मोबाइल और लैपटाप से चिपके रहने के कारण बच्चों की रचनात्मक क्षमता प्रभावित हो रही है। इसका सीधा असर उनके मानसिक विकास पर पड़ रहा था। बीते वर्ष में एक दृढ़ता पूरे देश ने दिखाई कि महामारी के भयंकर प्रकोप से न हमारा आत्मबल टूटा और न जूझने की भावना। यही जिजीविषा हमें नये वर्ष में दिखानी है। नये वर्ष में शिक्षा के क्षेत्र को गतिमान करना बहुत जरूरी है ताकि सब-कुछ सामान्य ढंग से होने लगे। अभिभावकों को भी अपने बच्चों को कोरोना बचाव के सभी उपायों की आदत डालने के लिए मानसिक तौर पर तैयार करना होगा। मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग को उनकी आदत बनाना होगा। अगर हमने शिक्षा की लय को गतिमान नहीं बनाया तो काफी नुक्सान होगा। अभिभावक कोरोना से डरे नहीं बल्कि खुद को और अपने बच्चों को सतर्कता बरतने को तैयार करें।