श्रीलंका : गेम ऑफ थ्रोन्स - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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श्रीलंका : गेम ऑफ थ्रोन्स

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श्रीलंका में राजनीतिक संकट के बीच राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना ने संसद भंग कर अगले वर्ष जनवरी में चुनाव कराने का आदेश जारी कर दिया। अब इस बात पर बहस हो रही है कि क्या राष्ट्रपति के पास संसद भंग करने की शक्ति है या नहीं। राष्ट्रपति सिरिसेना के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी की जा रही है। प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त किए गए रानिल विक्रमसिंघे की पार्टी युनाइटेड नेशनल पार्टी का कहना है कि राष्ट्रपति के पास ऐसे फैसले लेने की शक्ति नहीं है। पिछले महीने राष्ट्रपति सिरिसेना ने पूर्व राष्ट्रपति महिन्द्रा राजपक्षे को नया प्रधानमंत्री बना दिया था जबकि प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया था। श्रीलंका के घटनाक्रम को देखकर राजमहल की साजिशों की याद आती है। श्रीलंका का घटनाक्रम गेम ऑफ थ्रोन्स, हाउस ऑफ कार्ड और शेक्सपियर के नाटकों के बीच कहीं फिर होता नजर आ रहा है। श्रीलंका का राजनीतिक संकट इस बार नाटकीयता से भरपूर है।

सबको हैरानी इस बात पर थी कि आखिर सिरिसेना की ऐसी क्या मजबूती थी, जिसके चलते उन्होंने जिस शख्स को हराकर वह राष्ट्रपति बने थे, उसी को उन्होंने प्रधानमंत्री मनोनीत कर दिया। महिन्द्रा राजपक्षे ने 2005-2015 तक श्रीलंका में शासन किया था आैर चीन की मदद लेकर देश में दशकों से चले आ रहे गृहयुद्ध का अन्त किया। कौन नहीं जानता कि उन्होंने मानवाधिकार का खुला उल्लंघन किया। तमिलों का नरसंहार किया। सुरक्षा बलों ने लिट्टे का सफाया करने के नाम पर ​तमिलों को घरों से निकालकर खेतों में ले जाकर उनकी हत्या की। छोटे बच्चों को भी नहीं बख्शा ​गया। उनके परिवार आैर करीबियों पर भ्रष्टाचार, युद्ध अपराध के आरोप लगे। उन्होंने श्रीलंका को चीन के कर्ज जाल में फंसा दिया। चीन ने श्रीलंका की जमीन हड़प ली। 2015 के चुनाव में सिरिसेना पर म​िहन्द्रा राजपक्षे को धोखा देने का आरोप लगा था क्योंकि एक ही पार्टी से ताल्लुक रखने वाले सिरिसेना ने राजपक्षे को हराने के लिए विक्रमसिंघे से हाथ मिला लिया था। जब सिरिसेना के विक्रमसिंघे से रिश्ते बिगड़े तो उन्होंने महिन्द्रा राजपक्षे से हाथ मिला लिया। सिरिसेना सोच रहे थे कि महिन्द्रा राजपक्षे किसी न कसी तरह बहुमत का जुगाड़ कर लेंगे। राजपक्षे ने विक्रमसिंघे के वफादार मंत्रियों को अपनी तरफ करने की कोशिशें भी कीं। उन्हें प्रलोभन भी दिया लेकिन सांसद नहीं बिके। बहुमत नहीं मिलता देख सिरिसेना ने संसद भंग कर दी।

संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरह विक्रमसिंघे को हटाया गया वह गैरकानूनी है। संविधान में तीन वर्ष पहले हुए संशोधन के अनुसार राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री को पद से हटाने का अधिकार नहीं है। संविधान के 19वें संशोधन ने राष्ट्रपति की लगभग सारी शक्तियां खत्म कर दी हैं। प्रधानमंत्री को बर्खास्त करने का अधिकार केवल संसद के पास है। उधर सिरिसेना संविधान के एक भाग का जिक्र करते हैं जो राष्ट्रपति को नए प्रधानमंत्री की नियुक्ति की अनुमति देता है। उन्होंने विक्रमसिंघे को श्रीलंका के केन्द्रीय बैंक आैर उससे विवादित बांड सेल स्कैंडल से भी जोड़ा है। उन्होंने विक्रमसिंघे के एक मंत्री पर उनकी हत्या की साजिश में शामिल होने का आरोप भी लगाया है। सब जानते हैं कि महिन्द्रा राजपक्षे चीन की कठपुतली हैं। श्रीलंका की सियासत में चीन का परोक्ष हस्तक्षेप है। वह चाहता है कि सत्ता पर उनकी कठपुतली रहे ताकि वह श्रीलंका में भी अपने अड्डे स्थापित कर सके। श्रीलंका चीन का कर्जदार है। भारत उसका मददगार है। श्रीलंका कभी चीन की ओर तो कभी भारत की ओर झुकता है। इस समय श्रीलंका की हालत ठीक नहीं है। अर्थव्यवस्था गिर रही है। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि विक्रमसिंघे की सरकार हालात को ठीक तरह समझ नहीं पाई। सिरिसेना की मजबूरी बन गए थे महिन्द्रा राजपक्षे। राजपक्षे चीन की मजबूरी हैं।

पश्चिमी देशों खासकर महाशक्तियां अमेरिका और ​ब्रिटेन ने सिरिसेना द्वारा विक्रमसिंघे काे बर्खास्त करने की आलोचना की है। भारत भी चाहता है कि श्रीलंका में लोकतंत्र का सम्मान होना चा​िहए। यूरोपीय संघ पहले ही धमकी दे चुका है कि अगर अल्पसंख्यक तमिल समुदाय के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए श्रीलंका अपने वायदे से पीछे हटा तो यह उसके लिए करमुक्त व्यापार का रास्ता बन्द कर देगा। श्रीलंका ऐसा देश है जो दशकों से गृहयुद्ध की हिंसा से जूझता आया है। तमिल टाइगर्स का श्रीलंका ने सफाया तो कर दिया लेकिन मानवाधिकारों का बेतहाशा उल्लंघन भी हुआ। श्रीलंका के मौजूदा राजनीतिक संकट ने श्रीलंका की छवि पर फिर सवालिया निशान लगा दिए हैं। हालात तनावपूर्ण हैं और इस स्थिति में भारत की भूमिका क्या होनी चाहिए, इस पर सबकी नजरें हैं। देश में लोकतंत्र के लिए श्रीलंका की जनता को ही जूझना होगा।

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