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दुनिया भर में भारतीय वैज्ञानिकों का डंका

भारत में 16 जनवरी से कोरोना वैक्सीन का अभियान युद्ध स्तर पर जारी है, वहीं पाकिस्तान समेत दक्षिण एशिया के कई देशों में अभी भी वैक्सीनेशन की शुरुआत तक नहीं हुई है।

भारत में 16 जनवरी से कोरोना वैक्सीन का अभियान युद्ध स्तर पर जारी है, वहीं पाकिस्तान समेत दक्षिण एशिया के कई देशों में अभी भी वैक्सीनेशन की शुरुआत तक नहीं हुई है। पाकिस्तान अपने करीबी मित्र देश चीन की तरफ ताकता रह गया लेकिन भारत ने बाजी मार ली है। भारत के साथ तनावपूर्ण रिश्तों के बीच पाकिस्तान ने भारत में बनी आक्सफोर्ड की कोरोना वायरस वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल को मंजूरी दी है।
यद्यपि पाकिस्तान इस वैक्सीन को भारत के साथ द्विपक्षीय समझौते के तहत हासिल नहीं करेगा। पाकिस्तान को अपनी 20 फीसदी आबादी के लिए वैक्सीन कोवैक्स योजना के तहत मिलेगी। कोरोना वैक्सीन के मामले में पाकिस्तान चीन की कंपनी साइनोफार्म पर निर्भर था।
हालांकि साइनोफार्म द्वारा बनाई गई सिनोबैक के अभी तीसरे चरण के ट्रायल किए जा रहे हैं। पाकिस्तान की आर्थिक हालत बहुत खस्ता है, उसने कोरोना वैक्सीन के लिए 150 अरब डालर आवंटित किए हैं। इस राशि से दस लाख से ज्यादा डोज ही खरीदी जा सकती हैं। अगर कोरोना वैक्सीन की डोज पहुंच भी जाती है तो देश की आबादी का सिर्फ 0.2 फीसदी हिस्सा ही ​मिल पाएगा।
कोवैक्स एक गठबंधन है जिसे ग्लोबल अलायंस फार वैक्सीन एंड डम्यूनाइजेशन ने ​विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ ​मिलकर बनाया है। कोवैक्स ने वादा किया है कि वह दुनिया के 190 देशों की 20 फीसदी आबादी को मुफ्त में कोरोना का टीका मुहैया करायेगा।
पाकिस्तान को उम्मीद है कि अप्रैल के आसपास उसे भारत में बनी कोरोना वायरस वैक्सीन मिल सकती है। भारत और पाकिस्तान में व्यापार ठप्प है इसलिए पाकिस्तान दूसरे माध्यमों से यह वैक्सीन प्राप्त करने के प्रयास कर रहा है। अगर पाकिस्तान ने आतंकवाद का रास्ता छोड़ा होता और भारत से उसके संबंध मधुर होते तो उसे चीन की ओर ताकते नहीं रहना पड़ता।
पाकिस्तान को आक्सफोर्ड की वैक्सीन मिलने का एकमात्र चांस कोवैक्स योजना है। पाकिस्तान में कोरोना के कुल 514,338 से भी ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं और 10,863 मरीजों की मौत हो चुकी है। पाकिस्तान के लोगों को चीन द्वारा बनाई जा रही कोरोना वैक्सीन की गुणवत्ता पर भरोसा नहीं है।
बात-बात पर भारत को चुनौती देने वाली इमरान सरकार वैक्सीन मामले में काफी पिछड़ गई है। वैक्सीन डिप्लोमेसी से पाकिस्तान आउट हो चुका है। इमरान सरकार अपने देश के नागरिकों की हिफाजत करने में पूरी तरह विफल रही है। पूरी दुनिया कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रही है लेकिन संक्रमण की मार से छटापटा रहे पाकिस्तान के कट्टरपंथी मौलवी बेहद बेतुके बयान देते रहे। एक मौलवी तो यह कहते हुए सुने गए कि जितना ज्यादा सोएंगे, उतना ही वायरस भी सोएगा। यह हमें नुक्सान नहीं पहुंचायेगा।
जब हम सोते हैं तो वायरस भी सो जाता है, जब हम मरते हैं तो यह भी मर जाता है। पाकिस्तान के मौलवी का यह अद्भुत ज्ञान सुनकर पूरी दुनिया हंस रही है और पूछ रही है कि किस मैडिकल रिसर्च में उन्हें इसके बारे में पता चला। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान से क्या उम्मीद की जा सकती है। आज मनुष्य को कोरोना वायरस से मुक्ति दिलाने के लिए भारत दुनिया में सबसे आगे है।
इसका श्रेय भारतीय वैज्ञानिकों के शोध को जाता है जिन्होंने कम समय में वैक्सीन तैयार करने में सफलता पाई है। भारत ने विश्व को मनुष्य के कल्याण की राह दिखाई है। भारत की मिट्टी में ऐसे गुण मौजूद हैं जिसने संकट काल को भी अवसर में बदल दिया। भारतीय वैज्ञानिकों ने कोरोना की जल्द जांच के लिए सबसे पहले मैडिकल किट तैयार करने में सफलता प्राप्त की थी।
कोरोना वायरस को विखंडित करने का काम भी भारतीय वैज्ञानिकों ने किया, कोरोना के नए ब्रिटेन स्ट्रेन को भी विखंडित करने में सफलता पाई। सीरम इंस्टीट्यूट ने आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से मिलकर वैक्सीन तैयार कर पूरी दुनिया को चौंका दिया है। इस शोध से बेंगलुरु की प्रोफैसर सुमी विश्वास का महत्वपूर्ण योगदान है।
सुमी विश्वास 2005 में ब्रिटेन चली गई थी, वहां जाकर उन्होंने आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री ली और मलेरिया की वैक्सीन तैयार करने के लिए जेना इंस्टीट्यूट के साथ कई साल तक काम किया। गुजरात के बेहद गरीब परिवार में पैदा हुई नीता पटेल ने नोवावैक्स कंपनी का कोरोना टीका बनाने वाली टीम का नेतृत्व किया।
कोरोना वैक्सीन तैयार करने वाली 4 महिला वैज्ञानिकों में से दो महिला वैज्ञानिकों का भारतीय होना गर्व की बात है। भारत बायोटैक ने भी वैज्ञानिकों के शोध के आधार पर कोवैक्सीन तैयार की। दुनिया में कोई भी वैक्सीन इतने कम समय में नहीं बनी। किसी भी दवा या वैक्सीन को सालों के अनुसंधान और ट्रायल के बाद ही लांच किया जाता है।
भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा तैयार कोरोना वैक्सीन 90 फीसदी से ज्यादा कारगर साबित हुई है। आज भारत दुनिया में सबसे आगे है। हर भारतीय आज अपने वैज्ञानिकों पर गर्व महसूस कर रहा है। वैक्सीन मामले में चीन भी पिछड़ रहा है। अमेरिका में जिस फाइजर वैक्सीन का इस्तेमाल किया जा रहा है, उसके भी साइड इफैक्ट नजर आ रहे हैं।
भारतीय वैज्ञानिकों के शोध के महत्व को दुनिया स्वीकार कर चुकी है। पूरी दुनिया की नजरें भारत पर लगी हुई हैं। पाकिस्तान ने भी भारतीय शोध के महत्व को स्वीकारा है। काश पाकिस्तान आतंकवाद का रास्ता छोड़ मानव कल्याण के लिए काम करता। गरीबी और अशिक्षा दूर करने के लिए काम करता तो वह प्रगति कर सकता था। भारत पूरी दुनिया की मदद करने को तैयार है लेकिन अपने जवानों का खून बहा कर नहीं।
-आदित्य नारायण चोपड़ा

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