आगामी नवंबर-दिसंबर महीने में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से सियासत शुरू हो गई है। इन महीनों में मध्य प्रदेश,राजस्थान,छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में विधानसभा के चुनाव होने हैं। हाल ही में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव भी हुए और इनमें नतीजे जिस प्रकार से आए उससे देश की राजनीति में एक बार खलबली मच गई। कर्नाटक में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला और भाजपा की सरकार पराजित हुई परंतु इसका अर्थ हमें यह नहीं निकाल लेना चाहिए कि उपरोक्त चारों राज्यों में भी चुनाव परिणाम इसी तर्ज पर आएंगे। भारत राज्यों का एक संघ है और प्रत्येक राज्य की राजनीति अलग होती है। यहां तक कि इन राज्यों में जो प्रभावकारी राजनीतिक दल होते हैं वह भी अलग होते हैं। मध्य प्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ इन तीन राज्यों में जहां विधानसभा चुनाव में असली मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है वहीं तेलंगाना में यह मुकाबला मुख्य रूप से कांग्रेस और सत्ताधारी भारत राष्ट्रीय समिति के बीच होना है। राज्य में इस समय राष्ट्रीय समिति की सरकार है और इसके नेता श्री चंद्रशेखर राव हैं। वह केंद्र की राजनीति को देखते हुए कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के साथ खड़े नजर आते हैं मगर अपने राज्य में उन्हें असली मुकाबला कांग्रेस से ही करना है। इसी प्रकार राजस्थान में कांग्रेस सत्ता में है और इसका मुकाबला भाजपा से होगा जबकि छत्तीसगढ़ में भी ऐसा है लेकिन मध्य प्रदेश में स्थिति उलट है और वहां भाजपा शासन में है।
यह सच है पिछले 2018 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी के हाथ में ही यहां के मतदाताओं ने सत्ता की चाबी सौंपी थी। 230 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस को 114 और भाजपा को 109 सीटें दी थी। इसके बाद वहां कांग्रेस श्री कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनाने में सफल रही थी परंतु सवा साल बाद ही सत्ता लोलुपता की वजह से कांग्रेस पार्टी के ही नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 20 कांग्रेसी विधायकों से इस्तीफा दिलाकर कांग्रेस को अल्पमत में खड़ा कर दिया जिसकी वजह से वहां पुनः भाजपा सरकार श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में गठित हो गई। सरकार गिराने के इस तरीके को इस्तीफा संस्कृति कहा गया और भारत की राजनीति में नैतिकता के पतन की पहचान भी माना गया परंतु असली सवाल यह है जनता द्वारा दिए गए जनादेश में यदि बीच में तोड़फोड़ होती है तो उसका असर उन मतदाताओं पर क्या पड़ता है।
मध्य प्रदेश में नवंबर महीने में जो चुनाव होंगे उनमें इस सवाल का जवाब भी मतदाताओं की तरफ से मिल जाएगा। हालांकि जिन 20 विधायकों ने कांग्रेस से त्यागपत्र देकर भाजपा के टिकट पर पुनः उपचुनाव लड़े थे उनमें से अधिसंख्य जीत गए थे परंतु इसे तब पिछले दरवाजे से सत्ता कब्जाना कहा गया था। इसी कारण से फिलहाल कांग्रेस के नेताओं के हौसले बुलंद नहीं माने जा रहे हैं बल्कि कर्नाटक चुनाव परिणाम भी इसकी वजह माने जा रहे हैं। कर्नाटक में कांग्रेस के नेता श्री राहुल गांधी ने जिस प्रकार चुनाव प्रचार किया और उनके साथ कांग्रेस के अन्य नेताओं ने कंधे से कंधा मिलाकर परिश्रम किया उससे उत्साहित और उत्प्रेरित होना स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसका असर फिलहाल कांग्रेस पार्टी पर देखा जा रहा है। यही वजह है कि कल श्री राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश के बारे में अपना आकलन रखते हुए कहा कि उनकी पार्टी कम से कम डेढ़ सौ सीटों से ज्यादा जीतेगी। कर्नाटक की 225 सदस्यों की विधानसभा में कांग्रेस ने 135 सीटें जीतीं। सहयोग से कर्नाटक में भी पिछले 2018 के चुनावों के बाद कांग्रेस और जनता दल की मिलीजुली सरकार गठित हुई थी जो लगभग डेढ़ साल तक चली मगर बाद में इसमें भी इस्तीफा संस्कृति को लागू करते तोड़फोड़ हुई और सत्ता पलट हुआ। इसके बाद ही वहां भाजपा सरकार गठित हुई थी।
कर्नाटक का अनुसरण दूसरे राज्यों के चुनाव में भी हो ऐसा जरूरी नहीं है। कर्नाटक की जनता ने अपने अनुभव के आधार पर कांग्रेस को बहुमत दिया। मध्य प्रदेश में भी ऐसा ही हो ऐसा अभी नहीं कहा जा सकता है परंतु कांग्रेस नेताओं को भी गलत नहीं ठहराया जा सकता है। लोकतंत्र में मतदाता ही इसका मालिक होता है और वह अपने एक वोट का उपयोग करके जिस राजनीतिक दल को भी सत्ता पर बैठाता है उसका सम्मान सभी राजनीतिक दलों को करना पड़ता है। किसी एक राज्य की राजनीति से दूसरे राज्य की राजनीति प्रभावित हो ऐसा तब तक संभव नहीं होता जब तक कि उन दोनों राज्यों की राजनीतिक और आर्थिक समस्याएं लगभग एक जैसी ही ना हो। अतः हमें यह देखना पड़ेगा 30 वर्ष के अंत तक जिन चार राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं उनकी आपस में राजनैतिक व आर्थिक समानताएं क्या-क्या है। 3 राज्यों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान में हम ऐसा मान सकते हैं क्योंकि 2000 तक छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश का भाग था परंतु राजस्थान और इन दोनों राज्यों की भौगोलिक व सांस्कृतिक एकता समानता भी बहुत मायने रखती है अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है इन तीनों राज्यों में नवंबर-दिसंबर महीने में जो चुनाव परिणाम आएंगे वह किसी एक राजनीतिक दल के पक्ष में होंगे। इनमें से राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस की सरकार है और मध्य प्रदेश में जो भाजपा की सरकार बनी है वह राजनीति के बदलते स्वरूप का परिणाम कही जा सकती है अतः जो भी परिणाम आएगा उसके बारे में अभी कोई आंकलन करना बहुत जल्दबाजी होगी। जहां तक तेलंगाना का सवाल है तो यहां अजीब पेच फंसा हुआ है क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष में रहने वाली दोनों पार्टियां आपस में ही जल रही है परंतु भारत की बहुदलीय राजनैतिक प्रशासन प्रणाली में ऐसा अक्सर होता रहा है और आगे भी होता रह सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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