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ड्रेगन को कड़ी चेतावनी

एक तरफ अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत ने 8 देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक का सफल आयोजन करके भारत ने यह संदेश दे दिया है

एक तरफ अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत ने 8 देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक का सफल आयोजन करके भारत ने यह संदेश दे दिया है कि वह इस मसले पर निर्णायक पहल करने को तैयार हैं। दूसरी तरफ भारत ने चीन को भी कड़ा जवाब दे दिया है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत ने चीन के अवैध कब्जों को कभी स्वीकार नहीं किया और आगे भी नहीं करेगा। विदेश मंत्रालय ने कड़ा रुख इसलिए अपनाया कि पाक अधिकृत कश्मीर के कुछ हिस्सों पर चीन की मौजूदगी की खबरें मिल रही हैं। अरुणाचल प्रदेश सहित सीमा से सटे इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत किए जाने की पुख्ता रिपोर्टें भी मिल रही हैं। चीन बार्डर से सटे इलाकों में सड़कों और पुलों के निर्माण के साथ-साथ 100-100 लोगों के रहने लायक गांव भी बसा रहा है। ड्रेगन की गतिविधियों के संबंध में पेंटागन की रिपोर्ट आने के बाद भारत ने सख्त रुख अपनाया है। ड्रेगन द्वारा बसाए जा रहे गांवों को भारत खतरे के तौर पर देखता है क्योंकि इन्हें लेकर दावा किया जा रहा है कि ये गांव स्थाई सैन्य शिविर में तब्दील हो चुके हैं। अरुणाचल के साथ सटी जिस जगह चीन ने गांव बसाया है वहां 1962 में युद्ध से पहले भारत की आखिरी सैन्य पोस्ट हुआ करती थी। तब उसे माजा कैंप कहा जाता था। इस इलाके के विवादित इलाका घोषित होने के बाद भारतीय सेना का यह कैम्प भारतीय इलाके में चार-पांच किलोमीटर अंदर आ गया। यह गांव चीन ने वर्ष 2020 में दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख में गतिरोध शुरू होने के बाद बसाया है। पूर्वी लद्दाख में अपनी स्थिति मजबूत बनाने के लिए चीन दबाव बना रहा है और आक्रामक तेवर दिखा रहा है।
भारत की चिंता यह भी है कि चीन ने पाकिस्तान को टाइप 054 ए/पी युद्धपोत दिया है। उसे किसी भी​ स्थिति में अनदेखा नहीं किया जा सकता। इस युद्धपोत को पीएनएस तुगरिल का नाम दिया है। इस युद्धपोत में सतह से सतह पर, सतह से हवा में और पानी के भीतर मार करने की जबर्दस्त क्षमता है। पाकिस्तान इस युद्धपोत को हिन्द महासागर में तैनात करेगा। चीन पाकिस्तान का इस्तेमाल भारत की मुश्किलें बढ़ाने के​ लिए कर रहा है। दूसरा समुद्री क्षेत्र में उसका रुख पहले से ही आक्रामक रहा है। चीन ने हिन्द महासागर के जिबूती में पहला मिलिट्री बेस बना लिया है, बल्कि अरब सागर में पाकिस्तान का ग्वादर पोर्ट भी हासिल कर चुका है। यही नहीं वह श्रीलंका का हम्बनटोरा पोर्ट भी 99 साल की लीज पर लेकर​ विकसित कर रहा है।
जहां तक अफगानिस्तान का संबंध है यह अब साफ हो चुका है कि एक तरफ पाकिस्तान, चीन और तुर्की है तो दूसरी तरफ भारत के साथ रूस, ईरान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकस्तान हैं। चीन और पाकिस्तान ने भारत की बैठक में हिस्सा लेने से इंकार कर दिया  था। इसके बाद इमरान सरकार ने अपनी अलग बैठक की। सुरक्षा और स्थिरता दोनों आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। अफगानिस्तान तभी सुरक्षित होगा जब वहां समावेशी और स्थिर सरकार हो। अस्थिरता के साथ कोई देश न सुरक्षित रह सकता है न दूसरों को सुरक्षित रख सकता है। पाकिस्तान और चीन इस बात को समझ नहीं पा रहे कि आखिर अफगानिस्तान की तालिबान सरकार का भविष्य क्या है। कंधार विमान अपहरण कांड के बाद भारत का तालिबान से कोई रिश्ता नहीं रहा है। तालिबान हकूमत के बाद अफगानिस्तान आतंकवाद का गढ़ न बन जाए यही भारत की सबसे बड़ी चिंता है।
भारत इस समय दुश्मन पड़ोसियों से घिरा हुआ है। उनका मुकाबला करने के लिए भारत को इस्राइल बनना होगा। भारत को हर हाल में चीन, पाकिस्तान ​की किसी भी सम्भावित चाल से निपटने की तैयारी उसी तरीके से करनी होगी जिस तरह से इस्राइल ने खुद को महफूज रखा है। इस्राइल का इतिहास भारत से काफी मिलता-जुलता है। भारत की तरह आजादी के बाद फिलीस्तीन भी तीन भागों में बंटा आज इस्राइल को​ विश्व का सबसे शक्तिशाली देश माना जाता है। इस्राइल के सबसे ताकतवर देश बनने के पीछे उसकी सैन्य शक्ति का मजबूत होना है। चारों तरफ से मुस्लिम देशों से घिरे होने के बावजूद आज वह सबसे खतरनाक देश माना जाता है। भारत को भी पाकिस्तान और चीन का मुकाबला करने के लिए अपनी सैन्य क्षमता को इस्राइल की तरह मजबूत बनाना होगा और सीमांत क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा स्थापित करना होगा, ताकि जरूरत पड़ने पर हम दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दे सकें। हालांकि नरेन्द्र मोदी सरकार ने भारतीय सेना को पहले से कहीं अधिक मजबूत बनाया है, लेकिन भारत को अपनी तैयारी चीन के मुकाबले की करनी होगी। 
रक्षा मंत्री राजनाथ अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं, वे लगातार सेना की मजबूती के लिए काम कर रहे हैं। सीमांत क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का निर्माण जारी है। सैन्य उपकरणों में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए परियोजनाएं शुरू कर दी गई हैं। रक्षा क्षेत्र में बढ़ती आत्मनिर्भरता हमारे सैन्य बलों को और मजबूत बनाएगा।  अहिंसा के मंत्र से दुनिया को अवगत कराने वाला भारत आकाश मिसाइल, ब्रह्मोस मिसाइल, तटीय निगरानी प्रणाली, रडार और ऐयर प्लेटफार्म जैसे सुरक्षा उपकरण निर्यात करने की दिशा में बढ़ चुका है। स्वदेशी भारत ड्रोन पूर्वी लद्दाख के पास एलएसी की​ निगरानी कर रहा है। स्वदेशी एंटी सबमरीन युद्धपाेत कवरत्ती को भी नौसेना में शामिल किया गया है। यह सही है कि हम अहिंसा के पुजारी हैं लेकिन अब हर देश आधुनिक हथियारों के साथ विश्व शांति की बात करता है। चीन को समझना होगा कि भारत 1962 वाला भारत नहीं है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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