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कश्मीर में खूनखराबा बंद करो

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कश्मीर घाटी अशांत है, गड़बड़ ग्रस्त है परन्तु यथार्थ यही है कि यह भारत का अभिन्न अंग है। भोले-भाले कश्मीरियों का खून बहाना कश्मीर में उन आतंकवादियों की फितरत है जिन्हें पाकिस्तान के राजनीतिक और अन्य सैन्य एवं आईएसआई के हुक्मरान शह देते आए हैं। अमरनाथ यात्रियों पर हमला भी इन आतंकवादियों की नापाक हरकत की अगली कड़ी है। देश का साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे की कोशिश करने वालों को पूरे देश और अमरनाथ यात्रियों की आस्था ने करारा जवाब दे दिया है। अमरनाथ यात्रा रोकने के आतंकी मंसूबों पर एक बार फिर भोले बाबा की आस्था ने पानी फेर दिया है। अब जबकि 7 निरपराध अमरनाथ यात्रियों की जानें प्रशासनिक लचरता के चलते जा चुकी हैं, हम इस बहस में नहीं पडऩा चाहते कि आतंकियों के चौतरफा हमले का शिकार हुई यह बस नियमित अमरनाथ यात्रा का हिस्सा थी या नहीं, बस चलाए जाने के निर्धारित समय का पालन हुआ या नहीं, हमारा मानना है कि यह बस जम्मू-कश्मीर राज्य के श्रीनगर के पास अनंतनाग क्षेत्र से गुजर रही थी और उसे सुरक्षा कवर दिया जाना चाहिए था या नहीं।

हजारों लोग पवित्र अमरनाथ यात्रा पर जाते हैं और अमरनाथ श्राइन बोर्ड से उनके वाहनों का पंजीकरण नहीं भी होता लेकिन जम्मू-कश्मीर आने-जाने वालों को सुरक्षा प्रदान करना महबूबा सरकार की जिम्मेवारी है या नहीं? अनंतनाग का हिस्सा अति संवेदनशील श्रेणी में आता है परन्तु राज्य सरकार की पुलिस क्या महबूबा सरकार के आदेश नहीं मानती? क्या वहां आतंकवादियों की हुकूमत चल रही है? भाजपा की वैशाखियों पर चल रही महबूबा सरकार को देर-सवेर जवाब तो देना ही होगा बल्कि हर आम और खास की कश्मीर में सुरक्षा भी सनिश्चित करनी होगी। महबूबा सरकार पर फोकस रखते हुए हम यहां आप (आम आदमी पार्टी) की विवादित नेता अलका लाम्बा के उस ट्वीट किए गए वक्तव्य का भी उल्लेख करना चाहेंगे जिसमें उन्होंने इस नरसंहार के पीछे साहसिक एवं इंसानियत की मिसाल बने ड्राइवर शेख के गुजराती होने को अपनी दिमागी उपज की साजिश से जोड़ दिया। बेचारे वे 7 लोग जो आतंकी ङ्क्षहसा का शिकार बने, को भी राजनीतिक लाभ-हानि से जोडऩे वाली आम आदमी पार्टी की यह नेत्री किस सोच से ताल्लुक रखती है, यह बात आम आदमी पार्टी के ‘थिंक टैंक’ को विचारनी चाहिए। अलका के कई बयानों से आम आदमी पार्टी में विवाद उठते रहे हैं, हम उसमें दखल नहीं देना चाहते परन्तु इंसानियत को, राष्ट्रीयता को यूं शर्मसार किया जाए, तो उसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

अमरनाथ यात्रा पर आतंकी खतरे को लेकर इसके शरू होने के वक्त भी महबूबा सरकार को खुफिया ब्यूरो ने आगाह कर दिया था। अब तो आशंका इस बात की भी व्यक्त की जा रही है कि जम्मू-कश्मीर में कानून व्यवस्था को लेकर विशेषकर अमरनाथ यात्रा को लेकर महबूबा सरकार और राज्य पुलिस के बीच कहीं तालमेल की कमी तो नहीं? राज्य सरकार के सुप्रीमो बनकर राज्यपाल के रूप में पूरी पुलिस व्यवस्था के बीच सबसे पहले अमरनाथ गुफा में सम्पूर्ण हिमलिंग के दर्शन करने वाले ये लोग जवाब दें कि अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेवारी किसकी है? सेना और अद्र्धसैन्य बल अमरनाथ यात्रा की पूरी मुस्तैदी से निगहबानी कर रहे हैं। हर मोर्चे पर सेना ने जम्मू-कश्मीर को बचा रखा है, परन्तु महबूबा सरकार को कलंकित हो चुकी व्यवस्था की अकर्मण्यता का यह दाग तो धोना ही होगा। यद्यपि महबूबा ने पहली बार खुलकर इस आतंकी ङ्क्षहसा की निंदा की है वरना हमें तो यही डर लग रहा था कि इस हिंसा को कहीं स्थानीय पत्थरबाजों से जोड़कर सेना की ही निंदा न करनी शुरू कर दी जाए।

अब इस हत्याकांड की निंदा करने की बजाए मैडम महबूबा से अपील है कि हुर्रियत के नेताओं को पुलिस की सुरक्षा की ङ्क्षचता छोड़ कर हर अमरनाथ यात्री की सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था करनी होगी। सेना व सुरक्षा बलों पर पत्थर फैंकने वालों के घायल होने पर उनसे सहानुभूति की बजाए मैडम महबूबा को इस आतंकी ङ्क्षहसा का शिकार हुए लोगों से इंसानियत का रिश्ता जोड़कर कोई मुआवजा राशि देने की पहल करनी चाहिए। यद्यपि हम पहले भी कहते रहे हैं कि कश्मीर घाटी में अमनचैन स्थापित रखना है तो वहां धारा 370 खत्म करनी होगी। विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त जम्मू-कश्मीर के पत्थरबाजों को महबूबा को शह देनी बंद करनी होगी। वहां केन्द्र सरकार भी यह समझ ले कि 370 पर ज्यादा ढील और न देकर अगर राष्ट्रपति शासन लगाना पड़े तो इस पग का स्वागत किया जाना चाहिए।

सोशल साइट्स पर पर लोग यही प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं कि अगर मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र जीवित रखने के लिए महबूबा को समर्थन दिया है और अगर इसे वापस ले लिया तो महबूबा की राजनीति कहां चलेगी। मुसलमान और हिन्दुओं के बीच जम्मू-कश्मीर को बांटने की कोशिशें करने वाले आतंकवादियों को घाटी के लोगों ने साम्प्रदायिक सौहार्द बनाकर जवाब दिया है। जमीनी हकीकत यह भी है कि अमरनाथ यात्रा के मार्ग पर जम्मू-कश्मीर पुलिस के नाकों पर शाम ढलते ही कोई होता ही नहीं है लेकिन फिर भी उस जांबाज ड्राइवर शेख ने अंधेरे में बस को दौड़ा कर आर्मी के कैम्प पर रोका है तो हम उसकी बहादुरी को सलाम करते हैं लेकिन महबूबा इस हत्याकांड की नैतिक जिम्मेदारी से बच नहीं पाएंगी। सेना को सहयोग देकर ही वह अपनी नीयत और नीति सुरक्षा के साथ जोड़कर आगे चल पाएंगी।

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