दुनिया के सबसे पुराने विमान वाहक युद्धपोत आईएनएस विराट को 29 वर्ष की सेवा के बाद 2017 में आधिकारिक रूप से सेवानिवृत्त कर दिया गया था। आईएनएस विराट को नौसेना की शक्ति के रूप में देखा जाता रहा। इसे 1986 में भारतीय नौसेना के लिए खरीदा गया। इससे पहले इस विमान वाहक पोत ने 27 वर्ष तक ब्रिटेन की रॉयल नेवी में सेवा दी। ब्रिटेन ने 1959 में इसे रॉयल नेवी में शामिल किया था। तब इसका नाम एचएमएस हामीज था। इस जहाज पर साल 1944 में काम शुरू हुआ था, उस दौरान दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था। इसने ब्रिटेन की रॉयल नेवी के साथ फॉकलैंड युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। करीब सौ दिनों तक यह विषम परिस्थितियों में समुद्र में डटा रहा था। इस तरह इस युद्धपोत ने ब्रिटेन और भारत में लंबी सेवा दी। भारतीय नौसेना में शामिल होने के बाद इसे जुलाई 1989 में आपरेशन जूपिटर के तहत श्रीलंका की शांति स्थापना के लिए भेजा गया। वहीं जब 2001 में संसद पर आतंकवादी हमला किया गया था, तब इसे आपरेशन पराक्रम के तहत समुद्र में तैनात किया गया। आईएनएस विराट ने भारतीय नौसेना में रहते 10 लाख किलोमीटर से अधिक दूरी को कवर किया जो पृथ्वी के 28 बार चक्कर लगाने के बराबर है।
यह युद्धपोत एक छोटे शहर की तरह है जिसमें पुस्तकालय, जिम, एटीएम, टीवी और वीडियो स्टूडियो, अस्पताल और मीठे पानी का डिस्टिलेशन प्लांट जैसी सुविधाएं थीं। भारत के पराक्रम का प्रतीक रहे युद्धपोत पर सी हैरियर लड़ाकू विमान और हैलीकाप्टर हमेशा तैनात रहते थे। यह जहाज एंटी सबमरीन एयरक्राफ्ट से भी लैस था। इस पर करीब 1500 सैनिक हर समय तैनात रहते थे। कुछ दिन पहले यह मुम्बई स्थित डॉकयार्ड से गुजरात के अलांग कोस्ट पहुंचा, जहां थैंक्यू विराट शीर्षक के साथ एक आयोजन किया गया था। यह बहुत भावुक क्षण थे। अब इस युद्धपोत को कबाड़ में बदलने की तैयारी कर ली गई है। इसी जुलाई में लगी बोली के दौरान श्रीराम ग्रुप ने इसे 38.54 करोड़ में खरीदा था। इससे पहले 2014 में आईएनएस विक्रांत को मुम्बई में डिस्मेंटल किया गया था।
यह पोत भारत की समृद्ध समुद्री विरासत का प्रतीक रहा। अब मुम्बई की एक कम्पनी इस पोत को संग्रहालय में बदलना चाहती है। एनवीटैक्ट मरीन कंसल्टेंट्स प्राइवेट लिमिटेड ने म्यूजियम बनाने के लिए दिलचस्पी दिखाई है। यह एक देशभक्तिपूर्ण पहल है लेकिन युद्धपोत के मौजूदा मालिक का कहना है कि अगर मुम्बई की कम्पनी इसको संग्रहालय में बदलना चाहती है तो मंै उन्हें पोत बेचने को तैयार हूं, लेकिन इसे खरीदने के लिए रक्षा मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेना होगा। अगर कम्पनी को एनओसी मिल जाती है तो कोई समस्या नहीं लेकिन मैं एक हफ्ते तक इंतजार करूंगा अन्यथा इस पोत को तोड़ने की प्रक्रिया शुरू कर दूंगा।
आईएनएस विराट को म्यूजियम में तब्दील करने के प्रस्ताव काे महाराष्ट्र सरकार ने भी मंजूरी दी थी। यह प्रोजैक्ट 852 करोड़ का था। तब इसे सिंधुदुर्ग जिला में 7 नॉटिकल मील दूर समुद्र में म्यूजियम के रूप में स्थापित किया जाना था लेकिन इस प्रस्ताव को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। नौसेना ने इसे कबाड़ के तौर पर बेच दिया। गोवा सरकार भी चाहती है कि विराट को संग्रहालय में बदल दिया जाए। अगर इसे संग्रहालय बना दिया जाता है तो इसका उपयोग सेलिंग, स्कॉई डाइविंग जैसे समुद्री खेलों के लिए किया जा सकेगा। जहाज पर समुद्री प्रशिक्षण की सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकती हैं। मर्चेंट नेवी के लिए काम करने वाले लोगों को ट्रेनिंग दी जा सकती है। इसके साथ ही भारतीय नौसेना का इतिहास भी प्रदर्शित किया जा सकता है।
आईएनएस विराट में अभी भी देश के युवाओं को प्रेरणा देने की शक्ति है। जितनी देर भी इसका इस्तेमाल इतिहास को प्रदर्शित करने में हो सकता है किया जाना चाहिए अन्यथा इस्पात का कबाड़ हो जाना एक नियति तो है ही। केन्द्र सरकार को उस कम्पनी की मदद करनी चाहिए जो इसे संग्रहालय में परिवर्तित करना चाहती है। रक्षा मंत्रालय को शीघ्र एनओसी दे देनी चाहिए। कम से कम भारतीय नौसेना के शानदार इतिहास को कुछ वर्षों तक सहेज के रखा जा सकेगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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