वित्तमंत्री अरुण जेतली द्वारा पेश किए गए बजट काे हर वर्ग अपने फायदे और नुकसान की दृष्टि से तोल रहा है। वित्तमंत्री ने गांव, गरीब, किसानों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकारी तिजोरी खोली, वहीं बुनियादी ढांचे के लिए भी भारी-भरकम धनराशि का प्रावधान किया। बजट देश की अर्थव्यवस्था का बही-खाता होते हैं लेकिन इसमें देश की घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए तो धन की व्यवस्था करनी पड़ती है वहीं देश की रणनीतिक जरूरतों के बीच पड़ोसियों की मदद के लिए भी बहुत कुछ करना पड़ता है। अगर रणनीतिक दृष्टि से देखें तो अरुण जेतली का बजट बहुत कुछ कहता है।
चीन जिस तरह से नेपाल, भूटान, श्रीलंका और बंगलादेश में अपने धन-बल से हस्तक्षेप बढ़ा रहा है। चीन इन देशों में निवेश भी कर रहा है, वहां की अनेक ढांचागत परियोजनाओं के निर्माण में जुटा है। चीन पहले देशों की मदद करता है फिर उन्हें अपने जाल में फंसाकर वहां अपना विस्तार कर लेता है। श्रीलंका का उदाहरण हमारे सामने है। पहले चीन ने श्रीलंका को कर्ज दिया, मदद भी की, फिर श्रीलंका कर्ज के जाल में फंस गया और उसे विवश होकर हम्बनटोटा बंदरगाह चीन को सौंपना पड़ा। अब चीन वहां हवाई अड्डा भी बना रहा है। चीन भारत के पड़ोसी देशों तक सड़कों का जाल बिछाकर कनेक्टिविटी को लगातार विस्तार दे रहा है। नेपाल की नई सरकार का रुख भी चीन समर्थक ही है। पाकिस्तान में तो चीन पाक-चीन आर्थिक गलियारा परियोजना पर काम कर रहा है और वह अपनी महत्वाकांक्षी वन बैल्ट-वन रोड परियोजना पर आगे बढ़ रहा है। चीन यह भी जानता है कि भारत को शामिल किए बिना उसकी वन बैल्ट-वन रोड परियोजना सफल नहीं हो सकती, इसके लिए वह हर हथकंडा अपना रहा है। कभी भारत को धमकाता है तो कभी सभी विवाद बातचीत से हल करने की बात करता है। भारत भी दक्षेस देशों तक विस्तार चाहता है आैर निरंतर भारत इन देशों के साथ-साथ मध्य एशिया तक अपनी सीधी पहुंच कायम करने का प्रयास कर रहा है। अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भारत को काफी धनराशि की जरूरत है।
चीन के बढ़ते प्रभाव को ध्यान में रखकर ही अरुण जेतली ने पड़ोसियों की मदद के लिए अपनी पोटली खोल दी है। चालू वित्त वर्ष के संशोधित अनुमानों के मुकाबले नए बाजार में पड़ोसी देशों के लिए 16 फीसदी से ज्यादा इजाफा किया है। सार्क समूह के शामिल देशों-बंगलादेश, अफगानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका समेत कई देशों के सहायता बजट में दोगुना तक बढ़ौतरी कर दी है। भारत के सहायता बजट का सबसे बड़ा हिस्सा भूटान के खाते में जाता है। उसके लिए 2,650 करोड़ का इंतजाम किया गया है। भूटान ऐसा देश है जिसका चीन के साथ कोई राजनयिक सम्बन्ध नहीं। भूटान और चीन सीमा पर डोकलाम में चीन की दादागिरी के जवाब में भारत ने अपने सैनिकों को तैनात किया था। पश्चिम सीमा पर रणनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण अफगानिस्तान में चल रही सहायता परियोजनाओं के लिए भी 325 करोड़ का प्रावधान किया गया है। अफगानिस्तान में भारत की सुरक्षा चिन्ताओं और मौजूदा हालातों के बीच यह जरूरी भी है कि भारत अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और विकास परियोजनाओं में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाए। इसी तरह नेपाल के लिए सहायता पैकेज को दोगुना किया है। बजट भाषण के बाद ही विदेशमंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज नेपाल पहुंच गईं। बंगलादेश की मदद के लिए भी भारत ने अपना खजाना खोल दिया है। उसकी सहायता के लिए इस बार 175 करोड़ रखे गए हैं। चीन बंगलादेश में भी ढांचागत परियोजना में धन झौंक रहा है। चीन की आर्थिक दादागिरी के चलते ही कुछ देशों में भारत विरोधी स्वर उठते हैं। भारतीय हितों के मोर्चे पर मोदी सरकार कमजोर नहीं पड़ना चाहती।
भारत ने ईरान में रणनीतिक लिहाज से काफी महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह परियोजना के लिए भी बजट में 150 करोड़ का प्रावधान किया गया है। ईरान, अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान के बीच सड़क सम्पर्क मजबूत बनाने वाले अशगाबान समझौते में इन सभी देशों ने भारत को शामिल करने का फैसला किया है। भारत ने चीन के दबदबे का मुकाबला करने के लिए एक वर्ष में ही हिन्द महासागर के मालदीव, मारीशस और सेशल्स जैसे छोटे द्वीप देशों की सहायता राशि में भी काफी इजाफा किया है। भारत ने तो सेशल्स को तटीय राडार प्रणाली लगाकर दी थी। भारत की मंशा कभी किसी देश के किसी भूभाग पर कब्जा करने की नहीं रही, फिर भी सम्बन्धों की मजबूती के लिए भारत द्वारा लगातार प्रयास जरूरी है। भारत की रणनीतिक जरूरतों और हितों की दृष्टि से बजट का यह पहलू भी महत्वपूर्ण है।