फिल्म अभिनेता सुशांत की मौत की जांच को लेकर जिस तरह से बिहार और महाराष्ट्र सरकार में टकराव शुरू हुआ है उससे इस बात की कोई उम्मीद नहीं बची कि सच सामने आएगा। इसी बीच राजनीतिज्ञों और कुछ संगठनों द्वारा की जा रही बयानबाजी से असहज स्थितियां पैदा हो चुकी हैं। बिहार सरकार ने सुशांत सुसाइड मामले में उनके परिवार की इच्छा के अनुरूप सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी है। केन्द्र ने भी नीतिश सरकार की सिफारिश को स्वीकार कर लिया है। अब सुशांत केस की जांच सीबीआई करे। विधि विशेषज्ञ सीबीआई जांच को लेकर भी अलग-अलग राय व्यक्त कर रहे हैं क्योंकि मामला महाराष्ट्र सरकार से जुड़ा हुआ है। अफसोस तो इस बात का है कि इस मामले में सड़क छाप राजनीति की जा रही है।
बिहार में चुनाव होने वाले हैं। एक पार्टी के नेता ने सुशांत की मौत को चुनावी मुद्दा बनाने की बात कह दी तो दूसरे दलों ने इस मुद्दे को लपक लिया। हर कोई इस मामले को सियासी तौर पर भुनाने की कोशिश कर रहा है। मीडिया ट्रायल शुरू हो चुका है।
बिहार पुलिस की टीम जांच करने के लिए पहुंची तो वहां एक अफसर को कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के चलते एकांतवास में भेज दिया गया। उसके हाथ पर क्वारंटाइन की मुहर लगा दी गई। इसे लेकर भी महाराष्ट्र सरकार पर सवाल उठने लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी रिया चक्रवर्ती की केस पटना से मुम्बई ट्रांसफर करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी भी की है कि मुम्बई पुलिस काफी प्रोफैैशनल है, लेकिन बिहार के एक पुलिस अधिकारी को इस तरह से क्वारंटाइन करने से अच्छा संदेश नहीं गया हैं। सवाल यह भी है कि एक मामले में दो एफआईआर और जांच समानांतर चल सकती है। कुछ विधि विशेषज्ञों का कहना है कि इस केस में बिहार पुलिस के जुड़ने का सवाल ही नहीं पैदा होता क्योंकि इसका कोई कानूनी आधार ही नहीं है। यह केस उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। बिहार पुलिस ने जांच के लिए गलत तरीके से इस्तेमाल किया और ऐसा करके उसने देश के संघीय ढांचे पर प्रहार किया है।
महाराष्ट्र के कुछ प्रमुख मंत्रियों का कहना है कि बिहार पुलिस को मुम्बई पुलिस से सूचना मांगने का अधिकार है, लेकिन उसे महाराष्ट्र के केस की जांच का अधिकार नहीं है। महाराष्ट्र के मंत्रियों ने बिहार की तरफ से इस केस की सीबीआई जांच की कानूनी मान्यता पर सवाल भी उठाया, जिस पर पहले से ही महाराष्ट्र पुलिस की जांच की जा रही है। नीतीश सरकार द्वारा इस मामले में सीबीआई जांच की सिफारिश करने पर महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ शिवसेना भड़क उठी है। उसने इसे केवल बिहार की चुनावी राजनीति करार दिया। शिवसेना का कहना है कि बिहार में चुनावों के बाद राजनीति करने वाले लोग इस बात को भूल जाएंगे कि सुशांत पटना में किस जगह रहते थे। इस मामले में हर कोई अपनी सुविधा की राजनीति के चलते अनर्गल बयानबाजी कर रहा है। कोई कुछ कह रहा है तो कोई अपना अनुमान जता रहा है। इस केस में अब सुशांत की आत्महत्या मामले में उनकी पूर्व मैनेजर दिशा सालियान की आत्महत्या का मामला भी जोड़ा जा रहा है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे ने इस मामले में सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा कि सुशांत की मैनेजर दिशा सालियान की रेप और हत्या की गई। नारायण राणे के बयान का आधार क्या है, यह तो वही जानते हैं। सवाल यह है कि उनके पास इस बात के क्या सबूत हैं। बयानबाजी करने वालों ने इस मामले के तार आदित्य ठाकरे से जोड़ने का प्रयास किया तो आदित्य ठाकरे ने सामने आकर इसका प्रतिवाद किया। दिशा सालियान का परिवार बार-बार कह रहा है कि उनकी बेटी की मौत का सुशांत से कोई संबंध नहीं है। सुशांत सिंह राजपूत मामले में जिस तरह की सियासत की जा रही है और जो नए-नए घटनाक्रम सामने आ रहे हैं उससे तो जांच पूरी तरह उलझ गई है। वो सवाल जो उठ रहे थे कि क्या सुशांत की मौत महज मनोवैज्ञानिक दबाव का अंजाम था या फिर उसकी पूरी पृष्ठभूमि सुनियोजित ढंग से तैयार की गई, अब दबने लगे हैं। क्या एक के बाद एक फिल्में छिनने के बाद सुशांत अवसाद का शिकार हो गए थे? बालीवुड की दुनिया संघर्ष की कहानियों से भरी पड़ी है। किसी नए कलाकार के लिए फिल्म जगत में अपनी प्रतिभा के बल पर अपना मुकाम हासिल करना संघर्षों से भरा होता है। सुशांत की आत्महत्या के बाद जो कुछ सामने आया है उससे पता चलता है कि बालीवुड की चमक-दमक के पीछे कितनी जटिलताएं हैं। फिल्मी सितारों में मनोवैज्ञानिक झंझावातों से जूझने की क्षमता होनी ही चाहिए। गलाकाट प्रतिस्पर्धा, पहले से ही स्थापित प्रोडक्शन हाउसों में भाई-भतीजावाद, किसी के चेहरे पर करोड़ों का निवेश, करोड़ों की कमाई के बीच अपनी जगह बनाना आसान नहीं। यह सही है कि बालीवुड इंडस्ट्री चढ़ते सूरज को सलाम करती है और उतरते सूरज को घर बैठा देती है। यह शो बिजनेस है। इस बिजनेस में कलाकारों के लिए बहुत चुनौतियां हैं। मुश्किल घड़ी में अभिनेता या अभिनेत्रियों का खुद को सम्भाल कर रखना भी एक कला है। जो निकल जाते हैं वे साहस और संयम से काम लेते हैं, जो कमजोर और बेहद संवेदनशील होते हैं, वे आत्महत्या कर लेते हैं या कोई दूसरा काम ढूंढ लेते हैं। परिस्थितियां कुछ भी रही हों, सुशांत की आत्महत्या के बाद उठे सवालों का जवाब मिलना ही चाहिए और मौत की असली वजह सामने आनी ही चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि सियासत बंद हो और सच्चाई का इंतजार किया जाए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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