स्वदेशी आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण आंदोलन था जिसने भारत को आजादी दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। यह आंदोलन महात्मा गांधी की सोच का परिणाम था। स्वदेशी का अर्थ-अपने देश का आंदोलन। यह इसलिए चलाया गया था ताकि देश के लोग अधिक से अधिक भारत में बने माल का प्रयोग करें और विदेशी यानि ब्रिटेन निर्मित वस्तुओं का बहिष्कार करें ताकि उसे आर्थिक चोट पहुंचे। स्वदेशी आंदोलन महात्मा गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन का केन्द्र बिन्दु हो गया था। उन्होंने इसे स्वराज की आत्मा भी कहा था। महात्मा गांधी को औपनिवेशिक सत्ता के विरुद्ध संघर्ष करने वाले योद्धा के रूप में देखा जाता है लेकिन गहराई से देखें तो उन्होंने न केवल स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी बल्कि उन्होंने हर समय भारतीय सभ्यता को श्रेष्ठता दिलाने का प्रयास भी किया और विश्व व्यवस्था के सामने भारतीय सभ्यता का प्रतिनिधित्व भी किया था। पश्चिमी सभ्यता के वर्चस्व वाले उस युग में गांधी जी ने भारतीय सभ्यता को श्रेष्ठ बताते हुए उसे पूरी दुनिया के लिए एक विकल्प के रूप में पेश किया । रामधारी सिंह दिनकर ने उनके बारे में लिखा थाः
‘‘एक देश में बांध संकुचित करो न इसको
गांधी का कर्त्तव्य क्षेत्र, दिक् नहीं, काल है
गांधी है कल्पना जगत के अगले युग की
गांधी मानवता का अगला उद्विकास है।’’
आज कोरोना संकट ने पूरे विश्व की रफ्तार को रोक दिया है। अर्थ व्यवस्थाएं बेहोश हो चुकी हैं। लॉकडाउन के चलते सब कुछ ठप्प है। घरों को लौट रहे मजदूर सड़कों पर कुचले जा रहे हैं। जान का संकट भी है और जहान को बचाने की चुनौती भी है। संकट की घड़ी में महात्मा गांधी के स्वदेशी, स्वच्छता और सर्वोदय के मंत्र ही काम आने वाले हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘लोकल के लिए वोकल’ बनने का मंत्र भी स्वदेशी आंदोलन पर ही आधारित है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि हमें न सिर्फ स्थानीय उत्पाद खरीदने हैं बल्कि उनका गर्व से प्रचार भी करना है। यह लोकल से ग्लोबल बनने का बड़ा अवसर है। गृहमंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री की अपील के बाद बड़ा ऐलान कर दिया। अब देश के सभी सीआरपीएफ और बीएसएफ जैसे केन्द्रीय सशस्त्र बलों (सीएपीएफ) की कैंटीनों में सिर्फ स्वदेशी उत्पाद ही बेचने का फैसला किया गया है।
सीएपीएफ की कैंटीनों से हर वर्ष करीब 2800 करोड़ रुपए की खरीद की जाती है। नए आदेश के बाद देश के करीब दस लाख सीएपीएफ कर्मियों के परिवारों के 50 लाख सदस्य भारत में बने उत्पादों का ही उपयोग करेंगे। यद्यपि कुछ इलैक्ट्रानिक उपकरणों और मोबाइल इत्यादि को छोड़ कर इन कैंटीनों में शायद ही कोई विदेशी सामान बेचा जाता है, फिर भी यह फैसला अनुसरण करने वाला है। अर्थव्यवस्था में जान डालने के लिए केन्द्र सरकार ने भारी-भरकम पैकेज तो दिया लेकिन देश में मांग तब बढ़ेगी जब समूचा भारत स्वदेशी को अपनाएगा। चीनी उत्पादों की गुणवत्ता को भारतीय परख चुके हैं। चीनी माल की कोई गारंटी है ही नहीं। चल पड़े तो चल पड़े न चले तो कबाड़। देश के लोग स्वदेशी अपनाएंगे तो लघु एवं कुटीर उद्योगों का उत्पादन बढ़ेगा। रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे और अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। स्वदेशी जागरण मंच ने तो वर्षों से स्वदेशी की मुहिम छेड़ रखी है। रणनीतिक रूप से अब उसका आंदोलन बदलाव का ठोस आग्रह करते दिख रहा है। स्वदेशी अभियान को और मुखर, व्यापक और सर्वाग्राही बनाने के लिए हर देशवासी को इसका समर्थन करना चाहिए। कोई भी अभियान तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उसमें जनता की भागीदारी न हो। स्वतंत्रता के बाद किसी भी सरकार ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई। पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इसमें दिलचस्पी दिखाई थी और अब मोदी सरकार ने स्वदेशी को देश का मंत्र बनाने का बीड़ा उठाया है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने भी स्वदेशी की खुलकर पैरोकारी की है।
लॉकडाउन के बाद स्वदेशी अपनाने का जोरदार अभियान चलाए जाने की तैयारी भी कर ली गई है। यह अभियान तभी सार्थक होगा जब प्राइमरी स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा संस्थानों तक, मजदूर वर्ग से लेकर अमीरों तक जनजागरण किया जाए। इस अभियान में दुकानदार, व्यापारी, विक्रेता और उपभोक्ता सब शामिल हों।
अगर भारत में चीनी उत्पाद न बिके तो चीन एक बहुत बड़ा बाजार खो देगा। उसकी कुटिल नीतियों का जवाब भारत की जनता स्वदेशी अपनाकर कर दे सकती है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में कोई भी देश दूसरे देश से नाता नहीं तोड़ सकता। पूर्णतया स्वदेशी अपनाना कोई सरल काम नहीं होगा। इसका एक रास्ता तो यह है कि हमारे उत्पाद इतने गुणवत्तापूर्ण हों कि लोग उन्हें खरीदें और वैश्विक बाजार में भी इन उत्पादों की धाक हो। भारत को सर्वश्रेष्ठ उत्पाद बनाने वाला मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। काफी हद तक स्वदेशी अपना कर हम अपना घरेलू बाजार तो मजबूत कर ही सकते हैं। हमें अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचा, जीवंत लोकतंत्र आैर मांग सबको मजबूत बनाना है। गांधीवादी दृष्टिकोण ही हमें नई राह दिखा सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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