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टेलिकॉम और आटो सैक्टर काे पैकेज

केन्द्र की मोदी सरकार ने दूरसंचार क्षेत्र में बड़े सुधारों की घोषणा करते हुए राहत पैकेज तो दिया ही, साथ ही आटोमेटिक रूट से सौ प्रतिशत एफडीआई की अनुमति दी है।

केन्द्र की मोदी सरकार ने दूरसंचार क्षेत्र में बड़े सुधारों की घोषणा करते हुए राहत पैकेज तो दिया ही, साथ ही आटोमेटिक रूट से सौ प्रतिशत एफडीआई की अनुमति दी है। इससे कर्ज के दबाव में तनावग्रस्त हो चुकी टेलिकॉम कम्पनियों को काफी राहत मिलने की उम्मीद है। दूरसंचार क्षेत्र के 9 ढांचागत सुधार और पांच प्रक्रियाओं को मंजूरी से इस क्षेत्र की तस्वीर बदलने की सम्भावनाएं दिखाई देने लगी हैं। टेलिकॉम कम्पनियों पर इस समय 8 लाख करोड़ से अधिक का कर्ज है। लम्बे समय से टेलिकॉम कम्पनियों को एडजस्ट ग्रास रेवेन्यू यानी एजीआर पर किसी बड़े फैसले का इंतजार था। 
सरकार ने अब एजीआर बकाये की परिभाषा में बदलाव किया है। अब टेलिकॉम ऑपरेर्ट्स बकाये को लेकर मोरे​टोरियम ले सकेंगे। ये चार वर्ष के लिए दिया गया, जो टेलिकॉम आपरेटर ये विकल्प चुनते हैं उन्हें सरकार को ब्याज भी देना होगा। एजीआर की वजह से वोडाफोन-आइडिया और एयरटेल पर भारी वित्तीय बोझ है। इसके खिलाफ कम्पनियों ने कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था। अब भारी ब्याज, लाइसेंस फीस पेमेंट पर ब्याज और पैनल्टी, स्पैक्ट्रम यूजर चार्जेज और कई अन्य तरह के चार्ज लगाते थे। अब व्यावहारिक बनाया गया है। स्पैक्ट्रम शेयरिंग की भी अनुमति दी गई है और यह पूरी तरह फ्री में होगी। स्पैक्ट्रम की नीलामी की अवधि 20 साल से बढ़ाकर 30 साल होगी। इन फैसलों से वोडाफोन, आइडिया को बड़ी राहत मिलेगी। कम्पनी पर 1.9 लाख करोड़ का कर्ज है, जिसमें से 1.6 लाख करोड़ से अधिक एजीआर  स्पैक्ट्रम पेमेंट्स है। इस कम्पनी के पास जून तक 920 करोड़ का कैश और 1.9 लाख करोड़ का कर्ज है। कम्पनी पर 58,254 करोड़ का बकाया है, जिसमे से उसे 7.854 करोड़ का भुगतान कर दिया है। सरकार के पैकेज से टेलिकॉम सैक्टर में निवेश का रास्ता साफ हो गया है। अगर निवेश होगा तो रोजगार पैदा होगा। सरकार के सामने कोरोना महामारी के चलते फैली बेरोजगारी को कम करना प्राथमिकता है। इस समय सबसे महत्वपूर्ण सवाल रोजगार का है।
मोदी सरकार ने रोजगार के अधिक अवसर सृजित करने के लिए आटो और कंपोनेंट सैक्टर तथा ड्रोन के लिए भी पीएलआई स्कीम को मंजूरी दी है। भारत की जीडीपी में आटो क्षेत्र की हिस्सेदारी 12 फीसदी तक बढ़ाने का लक्ष्य है जो अभी 7.11 फीसदी है।  इस समय 17 अरब डालर के कंपोनेंट विदेश से आते हैं। यदि इन कंपोनेंट को भारत में बनाया जाए तो इससे आयात कम करने में मदद मिलेगी। सरकार ने यह कदम इसलिए उठाया है जब फोर्ड जैसी प्रतिष्ठित कम्पनी ने भारत में अपने मैन्यूफैक्चरिंग यूनिटो को बंद करने का फैसला ​किया है। कोरोना महामारी से जूझ रहे उद्योगों का हाल दुनियाभर में लगभग एक जैसा ही है। कोरोना की वजह से थमा व्यापार का पहिया अभी भी पूरी तरह से घूमने के लिए संघर्ष कर रहा है। फोर्ड व्हीकल्स मार्केट में बने रहने की सम्भावनाएं शून्य हो चुुकी थीं।
भारतीय कार बाजार दो वर्षों से मंदी की मार झेल रहा है। अब कुछ तेजी आने के आसार बन रहे हैं। हालांकि कोई भी नाकामी का ठीकरा भारत पर फोड़ने वाले लोगों को यह भी समझना होगा कि आखिर फोर्ड की नाकामी के पीछे भारतीयों की आकर्षित नहीं करने वाली मार्केटिंग स्ट्रेटजी भी है। हालांकि आटो सैक्टर में पीएलआई स्कीम लागू करने के मामले पर आटो सैक्टर भी बंटा हुआ है। बजाज आटो के एमडी राजीव बजाज की राय बिल्कुल अलग है। राय अलग-अलग होना स्वाभाविक है लेकिन लक्ष्य एक ही है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर कैसे लाया जाए। सरकार ने कोरोना काल में हर क्षेत्र को पैकेज दिये हैं। काफी खर्च तो महामारी से निपटने में लग चुका है। सारी स्कीमें उद्योग जगत को सुविधा देने के लिए ही लागू की गई हैं लेकिन मांग तभी बढ़ेगी जब लोगों के हाथ में नकदी की प्रचुरता होगी। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में अभी समय लगेगा। उम्मीद है कि सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं के चलते निवेश के लिए लोग आएंगे। रोजगार के अवसर सृजित होंगे तभी लोगों की जेब में पैसा आएगा और मांग बढ़ेगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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