जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा के चलते टेलिकॉम क्षेत्र की कम्पनियों में घमासान कोई नई बात नहीं। उपभोक्ताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए बाजार को कब्जाने की रणनीति पर काम करते कम्पनियों में टकराव होता ही रहता है। उपभोक्ता केवल अपना फायदा देखता है, जिसे वह बेहतर मानता है, उसकी सेवाएं ले लेता है। भारतीय दूरसंचार नियामक अधिकरण यानी ट्राई ने मोबाइल सेवा प्रदाता कम्पनियों को एक बड़ा झटका देते हुए इंटरकनेक्ट शुल्क की दरों में भारी कटौती की है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव कुछ कम्पनियों के राजस्व पर पड़ेगा। अब तक जहां एक मोबाइल कम्पनी को दूसरी कम्पनी से इंटरकनेक्ट करने पर प्रति मिनट 14 पैसे चुकाने पड़ते थे, ट्राई के फैसले के बाद यह केवल अब 6 पैसे प्रति मिनट रह जाएगा। यह सही है कि कॉल दरें कम होने से उपभोक्ताओं को फायदा होगा, वहीं यह फैसला मोबाइल कम्पनियों के बीच टकराव का आधार बनेगा।
ट्राई ने इंटरकनेक्शन यूजेज चार्ज में कटौती करने के साथ ही यह भी फैसला लिया है कि इसे एक फरवरी 2020 से पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा। एयरटेल, आइडिया, वोडाफोन जैसी दिग्गज कम्पनियां आईयूसी में बढ़ौतरी की मांग कर रही थीं जबकि रिलायंस जियो जैसी नई कम्पनी आईयूसी को खत्म करने की मांग कर रही थी। पुरानी प्रतिष्ठित कम्पनियों ने ट्राई के इस फैसले को रिलायंस के पक्ष में बताया और कहा कि इससे दूसरी कम्पनियों की आमदनी पर असर पड़ेगा, इसलिए वह ट्राई के फैसले का विरोध करेंगी। आईयूसी की शुरूआत 2003 में हुई थी जब इनकमिंग कॉल फ्री होने के बाद ट्राई ने कॉल करने वाले ऑपरेटर से भुगतान करने का नियम बनाया था। शुरूआत में इसकी दर 15 पैसे प्रति मिनट में 50 पैसे प्रति मिनट तक थी। यह दर दूरी पर आधारित होती थी। इसके अलावा 20 पैसे से लेकर एक रुपये 10 पैसे प्रति मिनट तक कैरिज चार्ज भी रखा गया था। ट्राई ने फरवरी 2004 में इस दर को घटाकर 20 पैसे प्रति मिनट किया और फिर 2015 में इस दर को 14 पैसे प्रति मिनट किया था। ट्राई के आईयूसी की दर कम करने के फैसले के बाद दूरसंचार क्षेत्र की प्रमुख कम्पनियों के शेयरों में गिरावट का रुख देखा गया।
पुरानी कम्पनियों ने अपने मोबाइल नेटवर्क को मजबूत करने के लिए महानगरों, शहरों से लेकर देश के दूरदराज क्षेत्रों में अपने टॉवर लगाए जिनसे उनके उपभोक्ताओं में वृद्धि हुई। नई कम्पनियों ने इन कम्पनियों के नेटवर्क का सहारा लिया। पुरानी कम्पनियों के नेटवर्क से कॉल जोडऩे की एवज में मिलने वाली रकम उनके राजस्व का बड़ा हिस्सा हो गई लेकिन पिछले कुछ समय से नई कम्पनी रिलायंस जियो ने मुफ्त कॉल और इंटरनेट डाटा की पेशकश की तो उसके ग्राहकों की संख्या में अचानक वृद्धि हो गई। पुरानी कम्पनियों के ग्राहक तेजी से घट गए। टेलिकॉम क्षेत्र एक नई प्रतिस्पर्धा के दौर में प्रवेश कर गया। मुद्दा यह है कि नई कम्पनी के नेटवर्क का विस्तार ज्यादा नहीं है और उनकी मुफ्त कॉल पुरानी कम्पनियों के नेटवर्क के जरिये ही ग्राहकों तक पहुंचती है। स्पष्ट है कि आईयूसी दर कम होने से नई कम्पनी को सीधा फायदा होगा और पुरानी कम्पनियों को नुक्सान। अब इस क्षेत्र की दिग्गज कम्पनियों ने ट्राई के इस फैसले को चुनौती देने का मन बना लिया है। इन कम्पनियों ने ट्राई के फैसले को पक्षपातपूर्ण और नई कम्पनी रिलायंस जियो को फायदा पहुंचाने वाला बताया। यद्यपि ट्राई ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि उसका फैसला वैज्ञानिक गणना पर आधारित है और इससे एक कम्पनी को फायदा या दूसरी को नुक्सान का सवाल ही नहीं उठता।
ट्राई के फैसले से निराश पुरानी कम्पनियों का यह भी कहना है कि उद्योग पहले से ही वित्तीय दबाव झेल रहा है और दरों में कटौती से उद्योग और अधिक दबाव में आ जाएगा। भारत में टेलिकॉम नेटवर्क बदलाव के दौर से गुजर रहा है। 4जी तकनीक अपनाई जा रही है। सभी कम्पनियां नई-नई प्रौद्योगिकी अपनाने की दिशा में आगे बढ़ रही हैं। काल दरें कम होती हैं तो यह उपभोक्ताओं के हित में ही है लेकिन प्रतिस्पर्धा के दौरान टेलिकॉम क्षेत्र की कम्पनियां कुछ नए तरीके ढूंढ सकती हैं जिससे ग्राहकों पर कुछ बोझ नहीं बढ़े लेकिन ट्राई को देखना होगा कि उसके फैसले से किसी एक या दो कम्पनियों का ही बाजार में एकाधिकार स्थापित न हो जाए। ऐसा हुआ तो यह उपभोक्ताओं के लिए नुक्सानदेह ही होगा और बाजार के लिए भी घातक होगा।