1986 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश अवध नारायण मुल्ला ने अपने एक फैसले में यह टिप्पणी लिखी थी, तब शायद उन्हें भी अहसास नहीं होगा कि उनकी टिप्पणी आगे चलकर पुलिस के कुछ अधिकारियों पर लागू होती दिखाई देगी। ‘‘हत्या, अपहरण, फिरौती वसूलने, जमीन, मकान हथियाने और सुपारी लेकर किसी को मारने का जो काम अब तक शातिर अपराधी किया करते थे, उन्हीं अपराधों में शामिल होने के आरोप अब पुलिस के उन नामी अफसरों पर लग रहे हैं जो कल तक एनकाउंटर स्पैशलिस्ट थे, जिनके नाम से अण्डर वर्ल्ड थरथर्राता था, अब वही मुजरिमों की तरह अदालतों के कठघरे और जेल की सींखचों में दिखाई दे रहे हैं या गोली का शिकार होकर मर रहे हैं।’’
दिल्ली से लेकर मुम्बई और गुजरात में दर्जनभर पुलिस अफसरों ने फिरौती वसूलने से लेकर हत्या करने और मुठभेड़ में लोगों को मारने के आरोप में सजा काटी है। कुछ अधिकारी ऐसे भी निकले जिन्होंने अपनी करोड़ों की अवैध कमाई जायदाद खरीदने में निवेश कर रखी थी। मुम्बई पुलिस के एक शार्प शूटर की जीवनी पर तो अब तक छप्पन जैसी फिल्म भी बन चुकी है। किसी को 56 मुठभेड़ें तो किसी को 107 मुठभेड़ें करने का श्रेय प्राप्त हुआ। जब उनके चेहरों पर से नकाब उतरा तो बहुत कुछ ऐसा निकला जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
अपराधियों का सफाया करने में जुटे पुलिस अधिकारी ही अपराध जगत का हिस्सा बन गए। बहादुरी का पदक और पदोन्नति पाने के साथ-साथ रात ही रात में अमीर बनने के लालच में कई पुलिस अधिकारी अपराध जगत के सरगनाओं का मोहरा बन गए। ऐसे पुलिस अफसर जो पहले जनता की नज़र में नायक थे वह खलनायक हो गए। दयानायक, प्रदीप शर्मा, रविन्द्र आंग्रे, प्रफुल्ल भोंसले, विजय सलस्कर, डी.डी. बंजारा, राजकुमार पांडियन, राजबीर सिंह, आर.के. शर्मा जैसे अफसरों पर आरोपों की बौछार हुई थी। इनमें से कुछ कानून की जद में आने से बच भी गए।
अब जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के साथ एक कार में धरे गए डीएसपी देवेन्द्र सिंह से पूछताछ में चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। डीएसपी देवेन्द्र सिंह ने आतंकवादियों को पहले चण्डीगढ़ और फिर दिल्ली पहुंचाने के लिए लाखों रुपए की डील की थी। संसद हमले के दोषी आतंकी अफजल गुरु से डीएसपी के कथित कनैक्शन की बात भी सामने आई थी। 13 दिसम्बर 2001 को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर भारतीय संसद पर जैश-ए-मोहम्मद के खूंखार आतंकवादियों ने हमले को अंजाम दिया था। इस आतंकी हमले में कुल 14 लोगों की जान गई थी।
हमले की साजिश में शामिल रहे आतंकी अफजल गुरु को दोषी ठहराया गया और फांसी की सजा दी गई थी। हाल ही में जम्मू-कश्मीर दौरे पर गए विदेशी राजनयिकों को श्रीनगर एयरपोर्ट पर डीएसपी देवेन्द्र सिंह ने ही रिसीव किया था। आतंकवाद के खिलाफ आपरेशन में अहम भूमिका निभाने के लिए उन्हें राष्ट्रपति पदक से नवाजा जा चुका है। देवेन्द्र सिंह एंटी टेरर ग्रुप का सदस्य भी था। वर्ष 2013 में अफजल गुरु के पत्र में डीएसपी देवेन्द्र का नाम लिया गया था। इस पत्र में दावा किया गया था कि तत्कालीन डीएसपी देवेन्द्र सिंह ने कहा था कि संसद के हमलावरों में शामिल मोहम्मद के लिए दिल्ली में फ्लैट किराए पर लेकर दे।
उसके लिए कार का प्रबन्ध भी करे लेकिन तब अफजल गुरु के आरोपों को पुख्ता करने के लिए सबूत नहीं मिल पाए थे। डीएसपी की गिरफ्तारी के बाद जांच एजेंसियों ने फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं। राष्ट्रपति पदक प्राप्त अफसर का आतंकवादियों का साथ देना काफी हैरान कर देने वाला है। कोई गरीब या बेरोजगार मजबूरीवश पैसे के लोभ में आतंकवादियों का साथ दे तो यह स्वीकार किया जा सकता है कि उसने ऐसा मजबूरीवश किया होगा लेकिन अपने शौर्य के लिए प्रसिद्ध अफसर का आतंकवादियों से डील करना न केवल पुलिस के लिए बल्कि देश के लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
डीएसपी देवेन्द्र सिंह जिन हिज्बुल आतंकवादियों को दिल्ली ले जा रहे थे वे भी खूंखार किस्म के हैं और उनमें से एक तो कई लोगों की हत्याओं के लिए जिम्मेदार है। इस बात की जांच की जानी चाहिए कि आतंकियों के मददगार इस पुलिस अफसर को पिछले वर्ष 15 अगस्त को राष्ट्रपति पदक का सम्मान कैसे मिला। जब पहले ही अफजल गुरु से सम्बन्धों का आरोप उछल चुका हो तो फिर उसे सम्मानित करने का काम किस आधार पर किया। आतंकवाद के चलते लोगों का खून बहाने वाले रक्तबीज हमारे भीतर ही हैं, इससे साफ है कि पुलिस की वर्दी पहनने वाला भी एक आतंकी ही है।
देवेन्द्र सिंह की गिरफ्तारी इस बात का संकेत है कि जम्मू-कश्मीर पुलिस के भीतर ही आंतक के रक्तबीज पड़े हुए हैं। जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाने के विरोध में दिल्ली और अन्य शहरों में बम धमाकों की साजिश की जा रही है तो गिरफ्तार डीएसपी का अपराध काफी बड़ा हो गया है। पुलिस की स्क्रीनिंग का समय आ गया है। इस बात का एक्स-रे होना ही चाहिए कि कौन-कौन आतंकियों का हमदर्द है कौन देशभक्त।
आदित्य नारायण चोपड़ा