द केरल स्टोरी आधी हकीकत आधा फसाना - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

द केरल स्टोरी आधी हकीकत आधा फसाना

“Fietion is the lie through which we tell the truth” फ्रांस के 1957 के नोबल पुरस्कार विजेता लेखक, नाटक और पत्रकार अलबर्ट केमस ने फिक्शन की यही परिभाषा दी थी यानि कल्पना वह झूठ है जिसके माध्यम से हम सच दिखाते हैं।

“Fietion is the lie through which we  tell the truth” फ्रांस के 1957 के नोबल पुरस्कार विजेता लेखक, नाटक और पत्रकार अलबर्ट केमस ने फिक्शन की यही परिभाषा दी थी यानि कल्पना वह झूठ है जिसके माध्यम से हम सच दिखाते हैं। यह परिभाषा उन्होंने कहानियों और उपन्यासों को लेकर की थी। हमेशा यही कहा जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। अगर हम मुंशी प्रेमचंद की कहानियां पढ़ें तो उनमें भी हमें समाज का सच नजर आता है। जो कुछ समाज में घटित होता है वही साहित्य में दिखाई देता है। जहां तक फिल्मों का संबंध है उनमें भी समाज की घटनाओं का प्रभाव स्पष्ट नजर आता है। कहानियां हाें, उपन्यास हों या फिल्में होती तो वह कहानियां ही हैं। बॉलीवुड और फिल्मों में विवादों का गहरा संबंध है। बॉलीवुड में विवाद सिर्फ किसी अभिनेता या अभिनेत्री को लेकर नहीं होते बल्कि फिल्मों के टाइटल, कहानी और दृश्यों को लेकर विवाद उत्पन्न होते रहते हैं। हालांकि यह विवाद फिल्मों के लिए फायदे का सौदा ही साबित होते हैं क्योंकि विवाद पैदा होने के बाद दर्शकों की जिज्ञासा फिल्म के प्रति बढ़ जाती है। विडम्बना इस बात की है कि फिल्मों को अब धार्मिक दृष्टिकोण और चुनावी नफे-नुक्सान के तराजू में रखकर तोला जा रहा है।
हाल ही में ‘द केरला स्टोरी’ फिल्म को लेकर जमकर बवाल हुआ। फिल्म का प्रदर्शन रुकवाने के लिए मामला अदालतों तक जा पहुंचा लेकिन देश की शीर्ष अदालत ने भी फिल्म पर प्रतिबंध लगाने से इन्कार कर दिया और इस शुक्रवार फिल्म देशभर में प्रदर्शित भी हो गई। इससे पहले भी शाहरुख खान की फिल्म पठान, निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की द कश्मीर फाइल्स, आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्डा और अन्य कई फिल्मों पर विवाद होते रहे हैं। द केरला स्टोरी केरल से गायब हुई और इस्लाम धर्म अपनाने वाली लड़कियों पर आधारित फिल्म है। केरल से 32 हजार लड़कियों के गायब होने का दावा करने वाली इस फिल्म ने सियासत को दो दलों में बांट दिया है।
केरल में सत्तारूढ़ वामपंथी और विपक्षी दल कांग्रेस ने इस फिल्म का जमकर विरोध किया और इस फिल्म को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर समाज में जहर फैलाने का षड्यंत्र बताया। केरल के मुख्यमंत्री विजयन ने तो फिल्म का मकसद राज्य के खिलाफ प्रचार करना और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करार दिया। जबकि दक्षिणपंथी संगठनों ने इस फिल्म का पूरा समर्थन किया। अब तो कर्नाटक के चुनावों में भी इस फिल्म की एंट्री हो गई है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी आतंकवादी साजिशों पर बनी इस फिल्म का उल्लेख कर वामपंथियों और कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा है। वामपंथियों ने इस फिल्म को संघ परिवार का एजैंडा तक करार दे दिया है। जबकि दक्षिणपंथी संगठनों का कहना है कि यह फिल्म केरल में तेजी से हो रहे इस्लामीकरण और किस तरह से मासूम लड़कियों को इस्लामिक स्टेट (आईएस) में भर्ती करने के लिए फंसाया जा रहा है, उसे दर्शाती है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि कुछ वर्ष पहले लगभग दो दर्जन के करीब केरल के कुछ युवक जिनमें कुछ हिन्दू युवतियां भी शामिल थी, आईएस में भर्ती होने के लिए अपने मिशन पर भेजी गई। इन लड़कियों का धर्मांतरण किया गया और उन्हें चरमपंथी बनाया गया तब ‘लव जेहाद’ का मुद्दा काफी उछला था। तब लव जेहाद की जांच करने का काम एनआईए और अन्य जांच एजैंसियों को सौंपा गया था। जांच में भी लव जेहाद जैसा कुछ नहीं पाया गया था। हर समाज में अपवाद स्वरूप कई तरह की घटनाएं सामने आती हैं लेकिन इतना तय है कि केरल में हिन्दू लड़कियों का ब्रेन वॉश कर उन्हें जेहादी बनाने की घटनाओं के पीछे सच्चाई जरूर है। भले ही ऐसी लड़कियों का आंकड़ा 10-20 से ज्यादा न हो लेकिन ऐसा समाज में घटित जरूर हुआ इसलिए फिल्म में दिखाया गया 32 हजार लड़कियों के गायब होने का दावा अतिरिक्त ही है। क्योंकि फिल्म एक फिक्शन (परिकल्पना) है। इसलिए 32 हजार के आंकड़े का कोई अर्थ नहीं रह जाता। सिनेमा को लेकर राजनीति होना नई बात नहीं है। फिल्में कई बार समाज की हकीकत दिखाती रही हैं। हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड तक यह पैटर्न देखा गया है। बीते कई दशकों से दुनियाभर में ऐसी फिल्में बनती रही हैं जो ज्वलंत मुद्दों को उठाती हैं और कभी-कभी स्टैंड लेती भी नजर आती हैं। हकीकत यह भी है कि फिल्म मेकर्स पर राजनीति की मजबूत पकड़ रही है। क्या इसका मतलब यह है कि सभी फिल्में राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रोमेगेंडा के तहत बनती हैं? नहीं। हम इतिहास में पीछे मुड़कर देखें तो ऐसा पाते हैं कि सामाजिक-राजनीतिक कंटेंट को लेकर कई असरदार फिल्में बनी हैं। ऐसे में किसी राजनीतिक फिल्म के सही या गलत का फैसला दर्शकों पर छोड़ देना ही बेहतर माना जाता है। दर्शक फिल्म देखने और बहस करने के बाद उस पर अपनी राय बना सकते हैं। द केरला स्टोरी को दर्शकों ने कितना पसंद किया कितना नहीं, यह फैसला उन पर ही निर्भर करता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

3 + seventeen =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।