मेरे पिता श्री अश्विनी कुमार अपने आपको कुल जमाती कहलवाने वाले हुर्रियत के अलगाववादी नेताओं को हमेशा एक संज्ञा देते थे। उन्होंने हमेशा उन्हें नाग ही कहा। पाकिस्तान परस्त लोगों की प्रतिक्रियाएं भी आती थीं। मुझे याद है कि पाकिस्तान के कुछ बुद्धिजीवियों ने कहा था कि ‘‘आप भले ही उन्हें नाग कहते हैं, नाग सिर्फ डंसता ही नहीं, यह तो आपके देवों के भी देव महादेव के गले का हार भी है। अतः आप तो उनकी पूजा करते हैं, बोलिये क्या कहना है तब पिताजी ने उन्हें यह जवाब दिया थाः
‘‘मैं यह अवश्य अनुभव करता हूं कि जिन औघड़दानी भगवान शंकर का जिक्र आप कर रहे हैं, उस जिक्र में नाग तो दिखाई दिया। परन्तु वह हलाहल काल कूट नामक जहर नहीं दिखाई दिया, जो उन्होंने पहले ही अपने गले में डाल रखा है। उसी विष के कारण तो उन्हें नीलकंठ की संज्ञा मिली। काश! मैं पाक परस्त मित्रों को समझा पाता कि नाग को धारण करने का अधिकार उसे ही है जो अपने कंठ में सारे जगत का विष धारण करने की क्षमता रखता हो, नहीं तो नाग अपना रंग दिखा देगा।
यह सही है कि हम भगवान शंकर की आराधना में भाव-विभोर होकर उनके साथ प्रतीकों का भी बड़ा आदर करते हैं, परन्तु उसकी भी कुछ वर्जनाएं हैं।’’
हम नाग को सिर्फ नाग पंचमी के दिन ही दूध पिलाते हैं लेकिन हमने हुर्रियत के नागों को रोज दूध पिलाया। भारत ने इन्हें सुरक्षा दी, सुविधाएं दीं कि शायद इनका हृदय परिवर्तित हो जाए लेकिन हुर्रियत के इन नागों ने न केवल भारत को बार-बार डंसा बल्कि कश्मीर के युवाओं के हाथों में किताबों की जगह पत्थर, बंदूकें थमा दीं। पाकिस्तान और मुस्लिम जगत से मनी लांड्रिंग के जरिये जो भी धन आता उसका कुछ हिस्सा आतंकवाद फैलाने के लिए खर्च किया जाता और काफी हिस्सा अपनी सम्पत्ति बनाने में लगाया जाता। हुर्रियत से जुड़े लोगों ने जम्मू-कश्मीर के बाहर अकूत सम्पत्ति बना ली। हुर्रियत के नेताओं के बच्चे विदेशों में पढ़ कर वहीं व्यापारी हो गए और कश्मीरी अवाम के बच्चों को मरने के लिए उकसाया। 1990 के दशक में घाटी में कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार किए गए। देखते ही देखते घाटी कश्मीरी पंडितों से खाली हो गई। इन हुर्रियत वालों की चारित्रिक समग्रता की परीक्षा तब होती जब वह कश्मीर घाटी में ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास करते ताकि तीन लाख कश्मीरी पंडित अपने घरों को लौटते। हुर्रियत और हुर्रियत समर्थकों की जुबां से एक शब्द नहीं निकला। कश्मीरी पंडित अपने ही देश में पराये हो गए, उन्हें अपने ही देश में शरणार्थी शिविरों में रहना पड़ा। उनके परिवार की दूसरी पीढ़ी भी युवा हो चुकी है लेकिन उनकी घर वापसी अभी भी सुनिश्चित नहीं हो सकी।
पंडित नेहरू से लेकर शास्त्री जी, इंदिरा जी, मोरार जी, चरण सिंह, राजीव गांधी, वी.पी. सिंह, चन्द्रशेखर, नरसिम्हा राव, देवेगौड़ा, इन्द्रकुमार गुजराल (पाकिस्तान डाक्टरीन वाले), अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह ने या तो हुर्रियत वालों से बातचीत की या फिर बातचीत की कोशिशें करते रहे। समूचा कश्मीर षड्यंत्रों और षड्यंत्रकारियों से भर उठा। वह वार करते रहे, हम खुद को बचाते रहे। इस दौरान कश्मीर में बड़े-बड़े जख्म दिए गए। आल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रैंस 1993 में बनी थी। तब गिलानी हुर्रियत के चेयरमैन बने थे। हुर्रियत कांफ्रैंस 2003 में दो फाड़ हो गई थी। एक गुट के चेयरमैन गिलानी रहे और दूसरे के चेयरमैन बने मीर वाइज उमर फारूक। उमर फारूक भारत के साथ संवाद के पक्षधर रहे, गिलानी पाकिस्तान का राग अलापते रहे।
-वह हमेशा पाकिस्तान की जुबान बोलते रहे।
-वह आईएसआई की जुबान बोलते रहे।
-वह मीर जाफरों की जुबान बोलते रहे।
-वह देशद्रोहियों की जुबान बोलते रहे।
हुर्रियत कांफ्रैंस के कट्टरपंथी धड़े का नेतृत्व कर रहे सैयद अली शाह गिलानी ने अब हुर्रियत कांफ्रैंस से इस्तीफा दे दिया। सारी उम्र तो मौज ली, कश्मीर की आजादी तो कभी कश्मीर की स्वायत्तता को लेकर अपनी नेतागिरी की दुकान चमकाई। बार-बार गिलानी अपने आका पाकिस्तान जाने को लालायित रहते थे। अब वृद्धावस्था में उन्हेेंने पद छोड़ा तो कुछ कारण भी गिनाए। जिनमें एक प्रमुख कारण यह रहा कि हुर्रियत कैडर ने ही नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह कर दिया। गिलानी कह रहे हैं कि हुर्रियत के लोग अनुशासनहीन हो चुके हैं। कोई किसी की नहीं मानता। गिलानी अब कुछ भी कहें लेकिन वास्तविकता यह है कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने और राज्य को जम्मू-कश्मीर और लेह-लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश बताए जाने के बाद हुर्रियत कांफ्रैंस का कोई औचित्य ही नहीं रह गया। वैसे भी हुर्रियत नेताओं की पोल खुल चुकी है। नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को एक झटके में हटा कर इतिहास रच दिया है। पाकिस्तान जिसने हमारे धर्मस्थलों पर, मुम्बई महानगर पर, लोकतंत्र के सर्वोच्च मंदिर संसद पर हमले करवाए , आज वह खुद उसी आतंकवाद से पीडि़त है। कराची के स्टॉक एक्सचेंज पर आतंकी हमला उसने सोमवार को भी झेला है। पाकिस्तान अब जम्मू-कश्मीर में हुर्रियत के नागों का हश्र देख ले। कछ मनी लांड्रिंग में फंसा है तो कोई जेल में है। आजादी के 73 वर्षों बाद हुर्रियत कांफ्रैंस का अध्याय खत्म हो गया। इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को जाता है। उन्होंने ही नागों को कुचलने का अहद लिया हुआ है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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