अमेरिका से सटी कनाडा की सीमा पर एक नवजात शिशु समेत परिवार के चार सदस्यों की बर्फ के बीच मौत अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय बनी हुई है। मृत परिवार भारत के गुजरात का बताया जा रहा है। किसी परिवार को इस तरह मरते देखना बेहद त्रासद है। यद्यपि इस मामले में अमेरिका में रह रहे 7 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है लेकिन इससे कीमती जानें तो वापिस नहीं आ सकतीं। कनाडा अमेरिका से मिलकर अवैध तरीके से सीमा पार करने से रोकने के लिए हर सम्भव प्रयास कर रहा है लेकिन यह घटना असामान्य है क्योंकि अवैध प्रवासी आमतौर पर अमेरिका से कनाडा में घुसने की कोशिश करते हैं, न कि कनाडा से अमेरिका जाने की। किसी भी दुर्घटना में भारतीय की विदेशों में मौत हमारे लिए काफी दुखद होती है। रोजी-रोटी की तलाश में और अपना भविष्य स्वर्णिम बनाने के लिए भारतीय विदेश जाते हैं और फिर वहीं के हो कर रह जाते हैं लेकिन अवैध तरीके से किसी दूसरे देश में दाखिल होने के प्रयास में भारतीयों का मारा जाना बेहद गम्भीर तो है ही साथ ही यह घटना कई सवाल खड़े करती है। बेहतर जीवन की ख्वाहिश लोगों को मौत के कुएं में धकेल देती है। ऐसे दर्दनाक हादसे पहले भी हो चुके हैं लेकिन वैध-अवैध ढंग से विदेश जाने की लालसा आज भी जारी है। पाठकों को 25 दिसम्बर, 1996 में हुए माल्टा कांड की याद तो जरूर होगी।
समुद्र के रास्ते विदेश जा रहे जहाज के पानी में डूब जाने से 320 लोग लापता हुए थे, जिमें भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका के युवक शामिल थे। इस हादसे में भारत के करीब 170 युवक लापता हुए थे, इसमें लापता होने वाले पंजाबी युवकों की संख्या 52 थी, जिसमें पंजाब के दोआबा क्षेत्र के जिला होशियारपुर, नवांशहर, कपूरथला और जालंधर से संबंधित थे। काफी समय तक परिवार अपने बच्चों का इंतजार करते रहे और अंततः परिवारों ने अपने बच्चों को मृत मान लिया। इस हादसे के लिए जिम्मेदार माने गए 30 आरोिपयों के खिलाफ दिल्ली की रोहिणी कोर्ट में सुनवाई चलती रही। सुनवाई के दौरान कई आरोपियों की मौत भी हो गई। आज तक मानव तस्करी का शिकार हुए युवाओं के परिवारों की आंखों में आंसू हैं। आज भी स्टूडेंट वीजा के तहत लोगों को विदेश भेजने का धंधा जारी है और ट्रेवल एजैंट ऐसे लोगों से भारी-भरकम धन ऐंठते हैं। विदेश पहुंचने पर युवाओं को बस भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। उनका भविष्य सुनहरी बने या फिर वे तिल-तिल कर मरें या फिर वहां की जेलों में सड़ें, इससे ट्रेवल एजैंटों की कोई जिम्मेदारी नहीं होती। हजारों परिवार ट्रेवल एजैंटों की ठगी का शिकार हो चुके हैं लेकिन विदेश जाने की ललक खत्म नहीं हो रही।
दरअसल मानव तस्करी विश्व में एक गम्भीर और संवेदनशील समस्या बनकर उभर चुकी है। मानव तस्करी के कई कारण हैं, जिनमें मुख्यतः गरीबी, अशिक्षा, सामाजिक असमानता, क्षेत्रीय लैंगिक असंतुलन, बेहतर जीवन की लालसा और सामाजिक असुरक्षा इत्यादि। भारतीयों के विदेश जाने की लालसा के पीछे एक मुख्य कारण धन कमाना और अपने पीछे रह रहे परिवारों की जिन्दगी को सहज और सुविधापूर्ण बनाना ही है। कुछ वर्ष पहले विदेश जाने की इच्छा रखने वाले पंजाब के कई युवक मिन्सक में फंस गए थे। धोखाधड़ी का शिकार हुए 40-50 युवकों को एक कमरे में बंद रखा गया। योजना के अनुसार उन्हें तेल टैंकरों में छिपा कर सीमा पार कराई जाती थी लेकिन वे पहले ही पकड़े गए। उन्हें कई महीने जेल में बिताने पड़े थे। जहां उन्हें तीनों समय मोटे चावल खाने को दिए जाते, तब परिवारों ने बड़ी मुश्किल से युवाओं को बचाया। नशीली दवाओं और हथियारों के कारोबार के बाद मानव तस्करी दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है। भारत में भी इसकी जड़ें काफी गहरे फैल चुकी हैं। वेश्यावृत्ति के लिए युवतियों और महिलाओं की तस्करी की जाती है। मानव तस्करी एक ऐसा धंधा है जिसमें बेहद कम समय और बिना कोई व्यावसायिक शिक्षा या योग्यता हासिल किए भी लोगों को फायदा होता है। इस धंधे की तमाम बुराइयों के बावजूद बेरोजगारी से अटे पड़े समाज में कई लोगों को कमाई का मौका देती है।
विदेश मंत्रालय बार-बार एडवाइजरी जारी करता है कि विदेशों में नौकरी के लिए जाने वाले युवा सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एजैंटों और केन्द्रों से सम्पर्क करें लेकिन लोग गैर कानूनी रास्ते अपना रहे हैं और बहुत बड़ा जोखिम उठाते हैं। पिछले वर्ष जुलाई में मानव तस्करी रोकथाम, देखभाल और पुनर्वास विधेयक को पेश किया गया था। विधेयक में यह प्रावधान किया गया था कि मानव तस्करी के दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को कम से कम दस साल की सजा और 5 लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकेगा। तस्करी के गम्भीर रूप वर्गीकृत अपराधों के लिए भी कड़ी सजा का प्रस्ताव किया गया था। कानून तभी सार्थक होता है जब लोग इनका सहारा लें। लोग लाखों का धोखा खाकर भी खामाेश रहते हैं। लाखों परिवार कर्ज के बोझ तले दबे पड़े हैं। विदेशी लड़कों से शादी के नाम पर हजारों लड़कियों की जिन्दगी तबाह हो चुकी है, फिर भी लोग हथकंडे अपनाने से परहेज नहीं कर रहे, जबकि यह भी जानते हैं कि ऐसा करना कोई कम जोखिमपूर्ण नहीं है। इस जोखिम का शिकार गुजरात का परिवार कनाडा में हुआ। भारतीयों को इस त्रासदी से सबक लेना चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा